सम्पादकीय: यह एक अच्छा संकेत तो है कि भूजल दोहन में कमी दर्ज की गई है, लेकिन इस कमी से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता, क्योंकि देश के कुछ राज्यों में अभी भी भूजल का जमकर दोहन हो रहा है। राजस्थान, पंजाब और हरियाणा भूजल का दोहन करने में सबसे आगे हैं। वहां इसके दुष्परिणाम भी दिखने लगे हैं। जलशक्ति मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच साल के मुकाबले भूजल दोहन 63 प्रतिशत से सुधरकर 60 प्रतिशत के स्तर पर आ गया है। इसका अर्थ है कि भूजल के दोहन में मात्र तीन प्रतिशत की ही कमी आई है।
स्पष्ट है कि अभी इस मामले में और अधिक काम करने की आवश्यकता है। जहां ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल का दोहन सिंचाई के लिए हो रहा है, वहीं शहरी क्षेत्रों में कारखाने यह काम कर रहे हैं। इसके अलावा ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में पेयजल के लिए भी भूजल का दोहन हो रहा है। यह इसीलिए हो रहा है, क्योंकि सरकारें पाइपलाइनों के जरिये पीने का पानी उपलब्ध नहीं करा पाई हैं। यह ठीक है कि हर घर नल से जल योजना तेजी से आगे बढ़ रही है और देश के कई हिस्सों में पाइपलाइन के जरिये पानी पहुंचाया जाने लगा है, लेकिन कहीं-कहीं पानी की गुणवत्ता संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इनका भी समाधान करना होगा।
भूजल का दोहन प्रभावी रूप से कम करने के लिए जल के प्राकृतिक स्रोतों का संरक्षण आवश्यक है। यह एक तथ्य है कि समय के साथ जल के प्राकृतिक और परंपरागत स्रोतों में या तो कमी आई है या फिर उनका जल प्रदूषित हुआ है। हमारी अनेक नदियां प्रदूषित हैं। कहीं-कहीं तो वे गंदा नाला बनकर रह गई हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं कि ग्रामीण इलाकों में तालाब अतिक्रमण का शिकार हो गए और कई स्थानों पर तो वे पूरी तरह गायब ही हो गए। यह स्थिति कुओं की भी है। यह तो भला हो कि मोदी सरकार ने तालाबों की सुध ली और अमृत सरोवर नामक योजना प्रारंभ की। इस योजना के तहत प्रत्येक राज्य के हर जिले में 75 तालाबों का निर्माण होना है।
यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि राज्य सरकारें और ग्राम पंचायतें अमृत सरोवर योजना को सफल बनाने के लिए कमर कसें। जो नए तालाब बन रहे हैं, उनकी देखभाल आवश्यक है, अन्यथा उनका भी वही हश्र होगा, जो पुराने तालाबों का हुआ। आम लोगों को भी यह समझना होगा कि जल के परंपरागत स्रोतों का संरक्षण आवश्यक है। केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही भूजल पुनर्भरण योजना के प्रति भी राज्य सरकारों और उनकी विभिन्न एजेंसियों को गंभीरता दिखानी होगी। वर्षा काल में बारिश का बहुत सारा पानी व्यर्थ हो जाता है। यदि इस पानी का संचयन करने के साथ भूजल पुनर्भरण पर ढंग से काम किया जाए तो जल की कमी दूर करने में सफलता मिल सकती है।