Happy Birthday: PM मोदी सीधे और बेलाग संवाद में माहिर, आकाशवाणी को दी नई जिंदगी
नई तकनीक के घोड़े पर सवार होकर मीडिया का जब भी कोई नया माध्यम आता है
उमेश चतुर्वेदी। नई तकनीक के घोड़े पर सवार होकर मीडिया का जब भी कोई नया माध्यम आता है, पुराने और प्रचलित माध्यमों के भविष्य पर संकट मंडराने लगता है. पिछली सदी के आखिरी दशक में भारतीय परिदृश्य पर जब टेलीविजन का विस्तार होने लगा, लोगों के ड्राइंग रूम तक रूपहले पर्दे का प्रसार बढ़ने लगा, तो अपनी तकनीकी दक्षता के साथ तब तक मीडिया परिदृश्य पर राज करते रहे रेडियो की जैसे शामत आ गई.
तब, शॉर्ट वेब और मीडियम वेब जैसी पुरानी तकनीक की सवारी कर रहा रेडियो जैसे धचकोले खाने लगा था. हालांकि इसी बीच, फ्रीक्वेंसी मॉड्यूल यानी एफएम की तकनीक आई, तो जैसे रेडियो के फिर से पंख मिल गए. रेडियो फिर से जिंदा होने लगा, इसी बीच इंटरनेट का जैसे धमाका हुआ और रेडियो एक बार फिर पारंपरिक माध्यमों के खांचे में फिट होकर अतीत की वस्तु बनता प्रतीत होने लगा.
राजनीति के क्षितिज पर नरेंद्र मोदी का उदय
इसी बीच भारतीय राजनीति के क्षितिज पर नरेंद्र मोदी का उदय हुआ. लोगों से सीधे और बेलाग संवाद की कला की वजह से जनमानस के बीच उनकी जबरदस्त पैठ बनी. राजनेता की ऐसी छवि और लोगों से सीधे जुड़ने की ताकत चुनावी मैदान में उसकी सफलता की वजह बनती है. आधुनिक लोकतंत्र में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता जिस मुकाम पर पहुंच गई है, विभाजनकारी नैरेटिव का जिस तरह बोलबाला बढ़ा है. इसी वजह से, लोकप्रिय से लोकप्रिय राजनेता के जरिए किसी मीडिया या माध्यम की पहुंच बढ़ने की उम्मीद करना बेमानी है. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके अपवाद हैं.
नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर 2014 में एक नायाब फैसला लिया. उस बार गांधी जयंती के दिन उन्होंने खुद फावड़ा उठाकर स्वच्छता अभियान की शुरूआत की. अगले दिन दशहरा था. दशहरे के दिन उन्होंने देश की सार्वजनिक रेडियो प्रसारण सेवा के जरिए लोगों से सीधे संवाद की शुरूआत की. 'मन की बात' नामक इस कार्यक्रम की विपक्षी दल कई बार आलोचना करते हैं, उस पर तंज कसते हैं. लेकिन महीने के आखिरी रविवार की सुबह 11 बजे रेडियो पर प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम ने हिचकोले खाकर आगे बढ़ती नजर आती आकाशवाणी में जैसे जान डाल दी.
यह ठीक है कि अब रेडियो पारंपरिक ट्रांजिस्टर के जरिए नहीं सुना जाता. हमारे हाथों में मोबाइल रूपी जो जादू का बक्सा है, उसमें क्या नहीं है. रेडियो, टीवी, सोशल मीडिया, अखबार, पत्रिका सब कुछ इस पंडोरा बॉक्स में ही उपलब्ध है. अब तक लोग इस बॉक्स के जरिए रेडियो तकनीक का इस्तेमाल करते थे, तो उनमें ज्यादा लोगों की संख्या निजी एफएम चैनलों के जरिए गाने या टिटबिट्स टाइप मनोरंजक कार्यक्रम सुनने में मसरूफ रहती थी. लेकिन सीधे आम लोगों के दिल तक पहुंचने की कला की वजह से 'मन की बात' को सुनने के लिए लोग एक बार फिर रेडियो पर लौटने लगे.
इसका असर यह हआ कि मजबूरी में आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाले इस कार्यक्रम को निजी एफएम चैनल के साथ ही टेलीविजन के निजी समाचार चैनल तक प्रसारित करने लगे. जाहिर है कि उनका ध्यान मोदी के जरिए अपने स्रोताओं और दर्शकों तक अपनी पकड़ बनाए रखने पर था. इस पूरी कवायद में आकाशवाणी जैसे जिंदा हो गया.
गांधी जी और आकाशवाणी
गांधी जी आकाशवाणी, जो तब ऑल इंडिया रेडियो कहा जाता था, उससे प्रभावित नहीं थे. उसे संवाद का सहज माध्यम नहीं मानते थे. हालांकि 12 नवंबर 1947 को वे पहली बार दिल्ली के प्रसारण भवन में पहुंचे और सीधे प्रसारण के जरिए लोगों, खासकर बंटवारे की वजह से शरणार्थी बनने को मजबूर हुए लोगों को संबोधित किया था. इस प्रसारण के जरिए पता नहीं रेडियो की पहुंच कितनी बढ़ी, लेकिन सुविधाओं की कमी के चलते आक्रोशित शरणार्थियों के दिलों तक गांधी जी बात सीधे पहुंची थी. इसके बाद उनका गुस्सा कम हुआ था. इसके बाद गांधी जी भी रेडियो के मुरीद हो गए थे.
गांधी की तमाम बातों का मोदी अनुसरण करते हैं. गांधी के नाम से दर्ज इतिहास की यह घटना प्रधानमंत्री मोदी के दिमाग में रही होगी. शायद इसी वजह से उन्होंने रेडियो को लोगों से संवाद का जरिया बनाया. इस संवाद कार्यक्रम को लेकर विरोधी भले ही तंज कसते हों, लेकिन सरकार का नजरिया स्पष्ट है. प्रधानमंत्री कार्यालय मानता है कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य दिन-प्रतिदिन शासन के मुद्दों पर अपने नागरिकों के साथ संवाद स्थापित करना है.
इस कार्यक्रम का फॉर्मेट ऐसा है कि इसके जरिए लोग भी अपनी राय प्रधानमंत्री से साझा करते हैं और प्रधानमंत्री भी सीधे लोगों से कभी फोन के जरिए जुड़ते हैं तो कभी किसी व्यक्ति के सवाल या सुझाव पर प्रतिक्रिया भी देते हैं. दोतरफा संवाद की वजह से लोग इस कार्यक्रम से सीधा जुड़ा महसूस करते हैं, जो उनकी प्रतीक्षा और ललक में झलकता है.
मन की बात की वजह से आकाशवाणी की दर्शक संख्या में हुआ इजाफा बताता है कि अगर प्रधानमंत्री का कार्यक्रम नहीं होता तो चमकीले-रूपहले पर्दे और उस पर प्रस्तुत होने वाली ग्लैमरस छवियों की वजह से रेडियो की टेलीविजन के सामने कोई वकत नहीं होती. लेकिन कह सकते हैं कि कम से कम मन की बात कार्यक्रम के दौरान रूपहले पर्दे का ग्लैमरस संसार भी मन की बात जैसे दृश्यहीन कार्यक्रम के सामने झुकने को मजबूर हो जाता है.
आकाशवाणी की बढ़ती लोकप्रियता
'मन की बात' की वजह से आकाशवाणी की बढ़ती लोकप्रियता और उसके राजस्व में हुई बढ़ोतरी के आंकड़ों से समझा जा सकता है. संसद के मानसून सत्र में सरकार ने संसद को आकाशवाणी और मन की बात को लेकर जो आंकड़े दिए थे, उन्हें यहां देखा जाना जरूरी है. सरकार के मुताबिक 'मन की बात' ने अकेले 2014 में अपनी शुरूआत से लेकर जुलाई 2021 तक राजस्व के रूप में 30.80 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की है.
दिलचस्प यह है कि सबसे ज्यादा करीब 10.64 करोड़ रूपए की कमाई साल 2017-18 में हुई. इस दौरान आकाशवाणी के स्रोताओं की संख्या में भी रिकॉर्ड इजाफा हुआ. ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च कौंसिल यानी बार्क के आंकड़ों के अनुसार अकेले 'मन की बात' कार्यक्रम को साल 2018 से 2020 के बीच हर हफ्ते करीब 6 करोड़ से 14.35 करोड़ लोगों ने सुना. माना जाता है कि यह संख्या मुख्य प्रसारण के स्रोताओं की है. यहां यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि इस कार्यक्रम की सफलता से प्रेरित होकर आकाशवाणी अपने नेटवर्क पर 23 भाषाओं और 29 बोलियों में इसका प्रसारण करता है.
इसके अलावा प्रसार भारती के टेलीविजन चैनलों पर भी हिंदी और दूसरी भाषाओं में इस कार्यक्रम को विजुअल के साथ प्रसारित करता है. इस कार्यक्रम की लोकप्रियता ही वजह है कि इसे 'एंड्रॉयड' और 'आईओएस मोबाइल प्रयोक्ताओं के लिए 'न्यूज ऑन एयर' एप्लीकेशन के जरिए भी प्रसारित किया जा रहा है. इतना ही नहीं, प्रसार भारती के तमाम यूट्यूब चैनलों पर भी इसे श्रोताओं और दर्शकों का जो प्यार मिला है, वह भी जबरदस्त है. स्पष्ट है कि आकाशवाणी की लोकप्रियता में बढ़त की वजह प्रधानमंत्री का कार्यक्रम ही है.