Gujarat Riots: टूलकिट राजनीति और इकोसिस्टम का खेल, सूत्रधारों ने पर्दे के पीछे से न्यायिक प्रक्रिया का किया दुरुपयोग

टूलकिट राजनीति और इकोसिस्टम का खेल

Update: 2022-06-27 17:36 GMT
कर्नल राज्यवर्धन राठौड़। नेहरू काल से ही सत्ता का दुरुपयोग कर अनुच्छेद 356 के माध्यम से राजनीतिक प्रतिद्वंदियों से प्रतिशोध लेने की कांग्रेसी परंपरा से लेकर इंदिरा गांधी द्वारा थोपे गए आपातकाल में विरोधियों पर अत्याचार की कहानियां तो बहुत हैं। इस पर चर्चा भी बहुत हुई है। पर जिस प्रकार दशकों से कांग्रेसी सत्ता के संरक्षण में संगठित गिरोह तैयार कर नरेन्द्र मोदी जी पर प्रहार किया जाता रहा है, उस पर कम ही बात हुई है। इसका सबसे चिन्ताजनक पक्ष यह है कि इसके सूत्रधारों ने पर्दे के पीछे रहकर इन गिरोहों को तैयार किया और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग कर खतरनाक षडयंत्र रचा।
इसकी गंभीरता ऐसे समझिए कि उच्चतम न्यायालय ने मार्च 2017 में एक प्रकरण में निर्णय सुनाते हुए न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को न्यायिक प्रशासन के लिए घातक बताया था। शीर्ष न्यायालय ने कहा था ऐसी याचिकाएं डालने वालों से कठोरतापूर्वक निपटना चाहिए। किस प्रकार प्रक्रियाओं का दुरुपयोग कर किसी व्यक्ति अथवा संस्था के विरुद्ध संगठित प्रहार किया जाता है, यह समझना हो तो गुजरात दंगा प्रकरण में पिछले 18-20 वर्ष से न्यायालय के भीतर और न्यायालय के बाहर चल रही गतिविधियों को देखना चाहिए। इससे यह भी समझने में सहायता मिलेगी कि किसी व्यक्ति के विरुद्ध षडयंत्र रचने और निराधार बातों के आधार पर उसे मानसिक और सामाजिक रूप से प्रताड़ित करने के लिए यह खेल कैसे चलता है।
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा अभी दो दिन पूर्व 2002 के गुजरात दंगा प्रकरण में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और 63 अन्य लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका को निरस्त करते हुए जो टिप्पणी की गई है, उसे पढ़ना और समझना चाहिए। यह याचिका कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की बीवी जाकिया जाफरी ने दायर की थी। इस एसआईटी का गठन उच्चतम न्यायालय ने किया था, तब भी इसके निष्कर्षों पर जाफरी द्वारा प्रश्न उठाया गया था। लंबी सुनवाई के पश्चात उच्चतम न्यायालय ने याचिका निरस्त करते हुए याचिकाकर्ता, एसआईटी के प्रतिवेदन पर प्रश्न उठाने और इस पर आरोप लगाने वाले व्यक्तियों पर कठोर टिप्पणी की है।
शीर्ष न्यायालय ने कहा, गुजरात सरकार का यह तर्क ठोस है कि प्रकरण को सनसनीखेज बनाने और इसके राजनीतिकरण के लिए गलत गवाहियां दी गईं। गुजरात सरकार के असंतुष्ट अधिकारियों के साथ-साथ अन्य लोगों ने मिलकर सनसनी उत्पन्न करने के लिए झूठी गवाही और मनगढंत बयान दिए थे। न्यायालय ने यह भी कहा कि अपने गुप्त उद्देश्य से इस प्रकरण को जीवित रखने के लिए न्यायिक प्रक्रिया का गलत प्रयोग किया गया, गलत मंशा से ऐसा करने वाले अधिकारियों को कानून के दायरे में लाना चाहिए और उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए। उच्चतम न्यायालय के निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि जाकिया जाफरी किसी और के निर्देश पर काम करती थी और ये सब केवल मोदी जी की छवि धूमिल करने के लिए किया गया, उनको झूठे आरोपों में फंसाने का हर संभव प्रयास किया गया। इकोसिस्टम तैयार कर मोदी जी पर झूठे आरोप लगाए गए और उन्हें प्रचारित किया गया, जिससे कि लोग उस झूठ को ही सच मान लें। पर सत्य को दबाया नहीं जा सकता है, इसलिए मोदी जी हर बार निष्कलंक निकलते हैं।
षडयंत्रकारियों पर कानून अपना काम करेगा, किंतु सोचने वाली बात यह है कि इतने लंबे समय तक ये लोग क्या किसी राजनीतिक सहयोग या समर्थन के बिना इतना खतरनाक खेल खेलते रहे? न्याय प्रणाली के साथ छल करके इस षडयंत्र को रचने वालों में तीस्ता सीतलवाड़ का नाम प्रमुख है। यह वही तीस्ता सीतलवाड़ है जो कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की गुडबुक में थी। कांग्रेस से इसकी निकटता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि यूपीए शासन के समय मनमोहन सरकार को रिमोट कंट्रोल से चलाने के लिए सोनिया गांधी ने राष्ट्रीय परामर्शी परिषद (एनएसी) बनाई थी और सीतलवाड़ को इस परिषद का सदस्य बनाया था। यूपीए शासन के समय इसने अपने पति से साथ मिलकर एनजीओ के माध्यम से करोड़ों रुपए के वारे-न्यारे किए थे। इसके अतिरिक्त यह तथ्य भी किसी से छिपा नहीं है कि यूपीए शासन के समय भगवा आतंकवाद का झूठा एजेंडा तैयार करने के लिए कांग्रेस व तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदम्बरम की क्या भूमिका रही थी।
गोधरा में 60 कारसेवकों को जीवित जलाकर मार डाला गया था, किंतु कांग्रेस या इस गिरोह ने कभी उस घटना की निंदा तक नहीं की, किंतु इन्हीं लोगों ने दंगों के लिए बहुसंख्यक समुदाय व भाजपा सरकार को फंसाने के लिए झूठ के बड़े-बड़े महल खड़े किए। ऐसे में यह कहना गलत नहीं है कि इस गिरोह के पीछे कांग्रेस थी और इसका पोषण यूपीए सरकार ने किया था। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की अगुवाई में केंद्र सरकार ने सेना को आधुनिक अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित करने के लिए राफेल सौदा किया था, तो इसको लेकर कांग्रेस के दुष्प्रचार की घटना भी बहुत पुरानी नहीं है। पूरे देश ने देखा था कि कांग्रेस ने किस प्रकार हर हथकंडा अपनाकर प्रयास किया था कि सेना को आधुनिक युद्धक विमान न मिले। अटकाने के लिए कांग्रेस इस प्रकरण को उच्चतम न्यायालय भी लेकर गई थी, जहाँ माननीय न्यायालय के निर्णय से कांग्रेस का षडयंत्र विफल हो गया था।
इन घटनाओं को गहराई से देखने पर पता चलता है कि कुछ राजनैतिक दलों, कुछ नकारात्मक विचारधाराओं, पत्रकारों और एनजीओ के संगठित गिरोहों ने मोदी जी की छवि धूमिल करने की मंशा से पूर्वनियोजित एजेंडा चलाया। ये लोग आज भी राष्ट्र को सशक्त करने के किसी भी प्रयास को फेल करने के लिए किसी भी सीमा तक चले जाते हैं। इन गिरोहों द्वारा कश्मीर से धारा 370 और 35-ए हटाने को विरोध करते हुए, सीएए और कृषि कानूनों का विरोध करते हुए, अंतरराष्ट्रीय टूलकिट सक्रिय करना हो अथवा हाल ही में राहुल गांधी द्वारा लंदन में भारत की बुराई कर अंतरराष्ट्रीय पटल पर देश की छवि मलिन करने का प्रयास हो, ये घटनाएं निरंतर हो रही हैं।
भारतीय सेना की लंबे समय की माँग को पूरा करते हुए मोदी सरकार सैन्य सुधार के लिए अग्निपथ योजना लाई तो इस पर कांग्रेस व गिरोह में शामिल अन्य राजनीतिक दल विरोध, हंगामा और भड़काऊ बयानबाजी कर रहे हैं। इससे समझा जा सकता है कि कैसे ये लोग किसी विषय पर देशवासियों को भ्रमित करने का प्रयास करते हैं। किंतु इन संगठित गिरोहों द्वारा अपनी कुंठित मंशा की पूर्ति के लिए न्याय प्रक्रिया के दुरुपयोग का प्रयास करने की घटनाएं और भी चिंताजनक हैं। यद्यपि माननीय न्यायालय द्वारा ऐसे लोगों पर कठोर कार्रवाई के निर्देश से इन तत्वों के इस प्रकार के कृत्यों पर अंकुश लगने की आशा बढ़ी है। देशवासियों को भी इस प्रकार के षडयंत्रों को समझना चाहिए और देश के भीतर उपस्थित राष्ट्र-विरोधी तत्वों का पहचानना चाहिए।
(लेखक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं।)

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