बढ़ती जनसंख्या प्रकृति के विनाश का कारण
बढ़ती जनसंख्या प्रकृति के विनाश का कारण बनती जा रही है। प्राकृतिक संसाधनों की जिस वेग से मांग बढ़ रही है, उसकी आर्पूित के लिए प्रकृति के नियमों को नजरअदांज किया जा रहा है। अत: बढ़ती जनसंख्या के प्रति सभी को जागरूक होना जरूरी है, क्योंकि यह केवल परिवार का मुद्दा नहीं है, बल्कि प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों में द्रुत गति से हो रही कमी का भी मुद्दा है। जब तक बढ़ती आबादी नहीं रुकेगी, तब तक प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी भी नहीं रुकेगी। भारत में जिस वेग से जनसंख्या वृद्धि हो रही है, वह वास्तव में चिंतन का विषय है। अगर जनसंख्या वृद्धि इसी गति से होती रही तो यह हमारी जीवन प्रणाली और जीवन स्तर के लिए खतरनाक साबित होगी। जल, जलवायु, भोजन और प्राकृतिक संसाधनों पर ग्रहण लग जाएगा। अब हर भारतीय को बढ़ती जनसंख्या के प्रति जागरूक होना होगा, अन्यथा बहुत देर हो जाएगी। जनसंख्या वृद्धि कोई र्धािमक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह धरती का, पर्यावरण का, पानी का और प्राकृतिक संसाधनों की हो रही कमी का मुद्दा है। इसलिए उतने ही बच्चे पैदा करें जितनों का ठीक तरह से पालन-पोषण कर सकें। अन्यथा उन प्यारे बच्चों का बचपन ही नहीं, बल्कि जिंदगी भी नरक बन जाएगी। ज्यादा बच्चे होने पर न उन्हें उचित पोषण मिल पाता है, न शिक्षा और न ही अच्छा जीवन स्तर।
जनसंख्या वृद्धि होेती रही तो धरती पर न स्वच्छ जल होगा, न शुद्ध हवा
अगर इसी तरह से जनसंख्या वृद्धि होेती रही तो वह दिन दूर नहीं जब धरती पर न स्वच्छ जल होगा, न शुद्ध हवा, न जलवायु स्वच्छ होगी, न खाने को पर्याप्त अन्न होगा और न सुविधापूर्वक रहने को जमीन होगी। साथ ही बीमारी, बेरोजगारी और हिंसा भी बढ़ेगी। वर्तमान को ही देख लीजिए। कोविड-19 के समय हमारे देश और दुनिया का क्या हाल है? जिन्हें अस्पतालों में वेंटिलेटर पर होना चाहिए था, वे सड़कों पर दम तोड़ रहे थे। हमारे देश में कई परिवार ऐसे भी हैं, जिनके पास बच्चे तो हंै, पर खाने को रोटी नहीं है। इससे देश में कुपोषित बच्चों की संख्या में वृद्धि हो रही है। कुपोषण के कारण बच्चों के सोचने-समझने की शक्ति कमजोर होती है। उनके शरीर का पूर्ण रूप से विकास नहीं हो पाता। बेरोजगारी की समस्या के लिए जनसंख्या वृद्धि भी एक कारण है। बेरोजगारी और गरीबी के कारण परिवार और समाज स्तर पर धीरे-धीरे हिंसा बढ़ती जा रही है। इसके चलते भुखमरी और भिक्षावृत्ति में भी वृद्धि हो रही है। कई शहरों में सड़कों पर भीख मांगते बच्चे, फटेहाल नौनिहाल देखे जा सकते हैं। बच्चों को भिक्षा नहीं, शिक्षा चाहिए और शिक्षा भी संस्कार युक्त। वर्तमान में कई बच्चों के पास न तो उचित शिक्षा है और न चिकित्सा।
जल एवं भूमि के प्रभावी प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत
पर्यावरणविद् बार-बार कह रहे हैं कि हमें जल एवं भूमि के प्रभावी प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। भारत सहित विश्व के लगभग सभी देश अपने-अपने स्तर पर योजनाएं बना रहे हैं और धरती को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं। भू-विज्ञानियों का दावा है कि पृथ्वी पर संसाधन सीमित हैं इसलिए उनका उपयोग सोच-समझकर करना होगा। इस समय जल, जंगल और जमीन घटते जा रहे हैं। हम जल की ही बात करें तो पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल की लगभग 2.5 प्रतिशत मात्रा ही पीने योग्य है। इसमें से वर्ष 2030 तक पीने का पानी 50 प्रतिशत तक कम हो जाएगा। सोचो तब कहां से लाएंगे पानी। पानी नहीं तो जीवन कैसा? कहा भी गया है कि 'जल ही जीवन है, जल नहीं तो कल नहीं।' जाहिर है इस अनमोल संपदा का प्रबंधन ठीक से करना होगा। इसके अलावा हमारे जंगल भी तेजी से कट रहे हैं। नदियों का दम घुट रहा है। धरती पर लोगों को रहने के लिए पहले से ही जगह कम है और जनसंख्या का हाल यह है कि भारत में हर साल लगभग दो से ढाई करोड़ बच्चे जन्म ले रहे हंै। ऐसे में कैसा होगा आने वाली पीढ़ियों का भविष्य?
समय केवल सोचने का नहीं, बल्कि कुछ करने का है
सच तो यह है कि अब समय केवल सोचने का नहीं, बल्कि कुछ करने का है। इसका केवल एक ही उपाय है, जनसंख्या नियंत्रण कानून। हम दो, हमारे दो और सबके दो। चाहे राशनकार्ड हो या नौकरी हो या कोई भी सरकारी सुविधा, जिनके दो बच्चे हों उन्हीं को ये सुविधाएं दी जाएं। देश में एक परिवार के लिए दो बच्चों के जन्म का प्रविधान किया जाना चाहिए। दो से अधिक बच्चों वाले प्रत्येक व्यक्ति को देश के हर क्षेत्र में समानता के साथ अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। चाहे वे सरकारी कर्मचारी हों या राजनीति से जुड़े लोग हों। यह प्रविधान सभी पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। इसी से भविष्य के लिए सही राह निकलेगी।