सरकार का मिशन पाॅम ऑयल
पिछले कुछ समय से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों के दामों में काफी तेजी चल रही है और भारत में भी खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों से जनता को परेशान कर रही हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा: पिछले कुछ समय से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों के दामों में काफी तेजी चल रही है और भारत में भी खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों से जनता को परेशान कर रही हैं। भारत में हर साल 200 लाख टन खाद्य तेल की खपत होती है। इसमें 150 लाख टन के लिए हम आयात पर निर्भर है यानि हम सिर्फ 25 प्रतिशत उत्पादन अपने देश में करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों में कीमतों में उतार-चढ़ाव का प्रभाव भारतीय बाजारों पर भी पड़ता ही है। पाॅम ऑयल एक खाने का तेल है जो ताड़ के पेड़ बीजों से निकाला जाता है। इसका उपयोग सबसे ज्यादा होटलों, रेस्तराओं में बतौर खाद्य तेल किया जाता है। इसके अलावा नहाने के साबुन और टॉफी-चाकलेट में और अन्य कई उत्पादों में किया जाता है। भारत अपनी जरूरत के मुताबिक इंडोनेशिया और मलेशिया से पाॅम ऑयल निर्यात करता है। जुलाई 2021 में पॉम आॅयल का आयत पहले से घटा है।2018 में तो भारत पॉम Bका आयात करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया था। खाद्य तेलों के आयात को कम करने के िलए केन्द्र सरकार ने तिलहन और ताड़ की खेती पर काम करना शुरू किया और वर्ष 2014-15 में नेशनल मिशन आन ऑयल सीड्स और पॉम योजना की शुरुआत की जिसे वर्ष 2018-19 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के साथ जोड़ दिया गया था। खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने अब पॉम ऑयल मिशन को मंजूरी दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में इस मिशन पर मुहर लगाई गई है। मशीन के लिए कुल 11040 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया है, जिससे राज्य सरकारों की भी हिस्सेदारी होगी। सरकार पॉम के साथ-साथ तिलहन की खेती पर जोर देगी। पॉम ऑयल की कीमत सरकार तय करेगी ताकि जब किसान खेती करें तो उन्हें अपनी फसल की कीमत पता हो। कई बार बाजार में उतार-चढ़ाव के कारण किसानों को सही कीमत नहीं मिल पाती, ऐसे में अगर पॉम की कीमत बाजार में कम हुई तो तय कीमत के अनुसार जो अंतर होगा उसका भुगतान सीधे किसानों के खाते में किया जायेगा। मिशन के तहत उत्तर पूर्वी राज्यों में 3.28 लाख हैक्टेयर और देश के दूसरे हिस्सों में 3.22 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में पाॅम की खेती की जाएगी। पाम ऑयल से जुड़ी इंडस्ट्री लगाने पर 5 करोड़ की सरकारी सहायता भी देगी। अभी तक देश में 3.5 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में पाॅम की खेती हो रही है, जिसे आगे बढ़ाकर दस लाख हैक्टेयर तक ले जाने की योजना है।खाद्य तेलों की तेजी का मुख्य कारण चीन भी है। पिछले एक वर्ष में चीन ने अपनी खपत से चार गुना अधिक तेल खरीदा। कोरोना की वजह से भी इंडोनेशिया और मलेशिया में पाॅम का उत्पादन प्रभावित हुआ। अमेरिका और अर्जेंटीना से सोयाबीन का तेल आता है। वहां भी मौसम खराब रहा। लम्बे समय तक बंदरगाहों पर हड़ताल रही, जिससे आपूर्ति में काफी देरी हुई। पिछले दस महीनों में देश में पॉम ऑयल की कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं। इसकी बड़ी मार गरीब और मध्यम वर्गीय परिवार झेल रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि हम स्वयं पाॅम की खेती में आत्मनिर्भर बनें। हम विदेशी निर्भरता से मुक्त होंगे तो ही लोगों को तेल मिलेगा।संपादकीय :कश्मीर में हुर्रियत का चेहरा75 वर्ष बाद दलितों की स्थितितालिबान की हिमायत का 'कुफ्र'राखी प्यार का त्यौहारखौफ के बीच बच्चों का टीकाविपक्षी एकता की चुनौतियांपैट्रोल-डीजल के दामों और महंगाई ने पहले से ही लोगों का तेल निकाला हुआ है। सरकार की योजना से किसानों को रोजगार मिलेगा। छोटे और मध्यम वर्गीय व्यापारियों को काम मिलेगा। अभी तक देश में सरसों, सोयाबीन और बिनौला तेल ही मुख्य फसल हैं। खाद्य तेलों के व्यापारियों को प्रोत्साहन मिलेगा। पॉम ऑयल मिशन के तहत सरकार ने इस बात का ध्यान रखा है कि इसकी खेती से किसानों का घाटा न हो। पहले प्रति हैक्टेयर 12 हजार रुपए दिए जाते थे, जिसे बढ़ाकर 29 हजार प्रति हेक्टेयर कर दिया गया है। पाॅम ऑयल के आयात पर केन्द्र सरकार 50 करोड़ रुपए सालाना खर्च करती है। सरकार इस खर्च को कम करना चाहती है। अन्य तिलहनों की तुलना में प्रति हैक्टेयर के हिसाब से ताड़ के तेल का उत्पादन प्रति हैक्टेयर 10 से 46 गुना अधिक होता है। एक हैक्टेयर की फसल से लगभग चार टन तेल निकलता है। एक बार खेती करने पर 30 साल तक इन पेड़ों से फल मिलते रहते हैं, इस वजह से इसे फायदे का सौदा माना जाता है।डीजल और पैट्रोल में जो बायोफ्यूल के अंश शामिल होते हैं जो मुख्य तौर पर पाॅम तेल से ही मिलते हैं। सरकार को पाॅम की खेती को बढ़ावा देने के लिए इस बात का ध्यान रखना होगा कि पर्यावरण पर इसका प्रभाव न पड़े। जंगलों को काटकर इसकी खेती न की जाए बल्कि जो खाली पड़ी जमीन है, वहां ही इसकी खेती की जाए। पूर्वोत्तर राज्य में जंगल बहुत हैं यह भी जरूरी है कि कैमिकल का इस्तेमाल कम से कम किया जाए। ताड़ के पेड़ में फल कटने के बाद तेल निकालने के लिए 24 घण्टे के भीतर ही उसे प्रोसेसिंग में डालना होता है। इसलिए पूर्वोत्तर में प्रोसेसिंग केन्द्रों को प्राथमिक स्तर पर स्थापित करना होगा। सरकार की योजना को सही ढंग से लागू किया जाए तो आम आदमी की दिक्कतें कम हो सकती हैं।