Goa Election: क्या चुनाव के पहले ही गोवा में कांग्रेस पार्टी ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली है?
गोवा में कांग्रेस पार्टी
अजय झा.
पहले तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने और अब कांग्रेस पार्टी (Congress Party) ने चुनाव के पहले ही लगता है कि गोवा में अपनी हार मान ली है. गोवा के 40 सदस्यों वाली विधानसभा चुनाव (Goa Assembly Election) में मतदान अगले सोमवार को निर्धारित है. कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी चिदंबरम का एक अजीबोगरीब बयान सामने आया है. चिदंबरम गोवा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के पर्यवेक्षक हैं. सोमवार को चिदंबरम दक्षिण गोवा के नुवेम चुनाव क्षेत्र में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को दलबदलुओं की पार्टी की संज्ञा दी और कहा कि तृणमूल कांग्रेस या आम आदमी पार्टी को वोट देने की बजाय मतदाता NOTA बटन का प्रयोग करें.
कोई भी नेता जनसभा में अपनी पार्टी के उम्मीदवार के लिए वोट मांगने जाता है तो वह नोटा दबाने को नहीं कहता. पर पहली बार ऐसा देखा या सुना गया कि प्रचार करने गए एक केन्द्रीय नेता जनता से NOTA बटन दबाने की अपील कर रहे हैं. 2017 के चुनाव में इस क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी विल्फ्रेड डी'सा की जीत हुई थी. डी'सा उन 10 कांग्रेसी विधायकों में शामिल थे जो 2019 में बीजेपी में शामिल हो गए थे. नुवेम में ईसाई मतदाता बड़ी संख्या में हैं. डी'सा को डर सताने लगा कि अगर वह बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे तो उनकी हार पक्की है. लिहाजा उन्होंने निर्णय लिया कि वह एक आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे.
तृणमूल कांग्रेस ने गोवा में अपनी हार मान ली है
पहले खबर थी कि बीजेपी नुवेम से अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करेगी और पर्दे के पीछे से डी'सा को समर्थन देगी. पर बीजेपी ने वहां दत्ता विष्णु बोरकर को अपना उम्मेदवार घोषत कर दिया. कांग्रेस पार्टी ने जहां पूर्व मंत्री एलेक्सो सिकेरा को मैदान में उतारा है, वहीं आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार मरिअनो गोदिन्हो हैं. एलेक्सो सिकेरा को हल्के में नहीं आंका जा सकता है, पर चिदंबरम ने जनता से उनके पक्ष में मत डालने की जगह NOTA बटन दबाने की अपील करके यह संकेत दे दिया है कि पार्टी को एलेक्सो सिकेरा की जीत का भरोसा नहीं है.
पिछले महीने तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव की घोषणा होने के ठीक एक दिन पहले कांग्रेस पार्टी से गोवा में विपक्षी दलों की एकता और साथ मिल कर चुनाव लड़ने की गुहार लगायी थी, जिसे कांग्रेस पार्टी ने ख़ारिज कर दिया था. तृणमूल कांग्रेस का कहना था कि विपक्षी एकता गोवा में बीजेपी को हराने के लिए अनिवार्य है.
पर कांग्रेस पार्टी इसके लिए राजी नहीं हुई और चुनाव आते-आते अब यह आलम है कि जहां तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेताओं का पहले गोवा में जमघट लगा होता था, पार्टी अध्यक्ष ममता बनर्जी गोवा का दो बार दौरा कर चुकी थीं, अब वहां से पार्टी के बड़े नेता नदारत हैं. चुनाव के ठीक पहले विपक्षी एकता की बात करना और फिर बड़े नेताओं का गोवा से मुंह मोड़ लेना साफ़ दर्शाता है कि तृणमूल कांग्रेस ने गोवा में अपनी हार मान ली है और अब कांग्रेस पार्टी भी उसी राह पर अग्रसर दिख रही है.
गोवा में कांग्रेस के जीत की सम्भावना नहीं के बराबर है
कांग्रेस पार्टी की तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से नाराज़गी समझी भी जा सकती है. पहले पार्टी के 18 में से 14 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए और बाकी के बचे चार विधायकों में से दो तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए. तृणमूल कांग्रेस का गोवा में कोई आधार नहीं होता था. सितम्बर के महीने में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस विधायक लुइज़िन्हो फलेरियो को पार्टी में शामिल करके तृणमूल कांग्रेस गोवा के चुनावी जंग में कूद गयी और कांग्रेस के नेताओं, कार्यकर्ता और पूर्व विधायकों को शामिल करके चुनाव जीतने का सपना देखने लगी. कांग्रेस के कई नेता आम आदमी पार्टी में भी शामिल हो गए. पहले बीजेपी ने और बाद में तृणमूल कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को तोड़ कर जिस तरह अपनी शक्ति बढ़ाई उससे कांग्रेस काफी कमजोर और लाचार दिखने लगी. और अब चिदंबरम के बयान के बाद तो लगने लगा है कि कांग्रेस पार्टी ने मान लिया है कि गोवा में उसकी जीत की सम्भावना नहीं के बराबर है.
अगर प्रदेश में बीजेपी की जीत होती है तो इसका कारण यह नहीं होगा कि गोवा की जनता बीजेपी सरकार के कामकाज से काफी खुश है, बल्कि सबसे बड़ा कारण होगा गैर-बीजेपी मतों का विभाजन. तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी कांग्रेस के बचे खुचे वोट बैंक में सेंध मारने की कोशिश कर रही है. आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और पार्टी के अन्य बड़े नेता बार-बार एक ही बात कहते दिखे कि कांग्रेस पार्टी को वोट देने का मतलब होगा बीजेपी को वोट देना, क्योंकि चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी के विधायक एक बार फिर से बीजेपी में शामिल हो जाएंगे.
यह अपने आप में हास्यास्पद है कि गोवा में विपक्षी दल बीजेपी पर हमला करने की जगह एक दूसरे की जड़ काटने में व्यस्त हैं, जिस कारण चुनाव आते आते बीजेपी के जीत की सम्भावना बढ़ती जा रही है. गोवा में कई बार अप्रत्यासित परिणाम भी देखने को मिलता है, क्योंकि छोटा राज्य होने के कारण मतदाता और नेता के बीच सीधा संपर्क होता है और कई बार वोट पार्टी की जगह उम्मीदवार को दिया जाता है. पर ऐसा पहली बार हो रहा है कि चुनाव के पहले ही दो प्रमुख दलों ने हथियार डाल दिया हो.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)