न्यायिक सुधारों को संसद में आगे बढ़ाकर पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई देश से किया वादा पूरा करें
अनेक जजों ने संस्मरण और आत्मकथाएं लिखी हैं
विराग गुप्ता। अनेक जजों ने संस्मरण और आत्मकथाएं लिखी हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की आत्मकथा 'जस्टिस फॉर द जज' विशेष चर्चा में है। गोगोई का यह कहना सही है कि न्यायिक फैसले खुद ही बोलते हैं, इसलिए अब उनके फैसलों पर विवाद खड़ा करना ठीक नहीं है। दूसरा विवाद उनकी संसद सदस्यता पर है। एमसी छागला, कृष्ण अय्यर, बहरुल इस्लाम और हिदायतुल्लाह जैसे जजों ने दलीय राजनीति में खुलकर हिस्सा लिया थान्यायिक सुधारों को संसद में आगे बढ़ाकर पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई देश से किया वादा पूरा करें
इस लिहाज से गोगोई का राज्यसभा सदस्य बनना गलत नहीं माना जा सकता। उनकी किताब का खास पहलू और पीड़ा यह है कि जज भी अन्याय का शिकार होते हैं। तीन साल पहले गोगोई ने 3 अन्य वरिष्ठ जजों के साथ मिलकर प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था। उसमें उन्होंने कहा था कि अगर न्यायपालिका को नहीं बचाया गया तो लोकतंत्र संकट में आ जाएगा। उस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद गोगोई 13 महीने तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे, जिसे भारत में सबसे ताकतवर व्यक्ति माना जाता है।
आत्मकथा में दिए गए तथ्यों और प्रसंगों के आलोक में पांच अहम् मुद्दों पर बहस जरूरी है, जिनमें चीफ जस्टिस के नाते गोगोई संस्थागत सुधार नहीं ला सके। पहला, यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद, एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में सनसनीखेज हलफनामा फाइल किया था। उसके अनुसार चीफ जस्टिस को हटाने और न्यायपालिका को अस्थिर करने के लिए फिक्सरों द्वारा बड़े पैमाने पर साजिश हो रही थी। उसमें स्टाफ, वकील, जज और उद्योगपतियों की मिलीभगत के आरोप थे।
सुप्रीम कोर्ट ने आनन-फानन में सीबीआई और आईबी के डायरेक्टर के साथ दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को तलब कर लिया। न्यायिक जांच के लिए पूर्व जज पटनायक समिति का गठन किया गया। उसके एक साल बाद आरोप लगाने वाली महिला की बहाली हो गई। सीलबंद लिफाफे में कमेटी की रिपोर्ट से फरवरी 2021 में उस जांच का भी पटाक्षेप हो गया।
अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल ने भी सुसाइड नोट में जजों और उनके बच्चों पर गंभीर आरोप लगाए थे। उस मामले में गोगोई समेत सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों को कारवाई के लिए पत्र लिखने के बावजूद कोई जांच नहीं हुई। वोहरा कमेटी से लेकर जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिस्टम की सड़ांध के बारे में गंभीर आरोपों से सनसनी बढ़ती है। लेकिन शिखर में पहुंचने पर सिस्टम की सफाई और दोषियों को दंडित करने के बारे में ठोस पहल क्यों नहीं होती?
दूसरा, पूरे देश में चपरासी, क्लर्क और अफसर सभी स्तर की सरकारी नौकरियों के लिए भयानक मारामारी है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में तो एक महिला ने अपने लेखपाल ससुर की इसलिए हत्या करवा दी जिससे कि उसके प्रेमी को अनुकंपा नियुक्ति से सरकारी नौकरी मिल जाए। अधिकांश सरकारी नौकरियों में भर्ती की परीक्षाएं धांधली की वजह से रद्द हो रही हैं। ऐसे दौर में बगैर विवाद के जजों की भर्ती होना काबिले तारीफ ही है।
किताब में गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट के 14 जज, हाईकोर्ट के 28 चीफ जस्टिस और हाईकोर्ट के 127 नए जजों की नियुक्ति करवाने का दावा किया है। लेकिन इस तस्वीर का स्याह पहलू यह है कि ये नियुक्तियां उस कॉलेजियम व्यवस्था से हुईं, जिसे सुप्रीम कोर्ट के ही पांच जजों ने सन 2015 में अपारदर्शी और सड़ांध भरा बताया था। गोगोई जी की आत्मकथा के अनुसार सीनियर एडवोकेट बनाने के लिए जजों के पास बड़े पैमाने पर सिफारिशें आती हैं तो फिर जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर के लिए कितनी सिफारिशें आती होंगी?
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ने न्यायपालिका को सामंती तंत्र से मुक्त करने का आह्वान किया है। जिसके लिए जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर व्यवस्था को पारदर्शी और तर्कसंगत बनाना होगा। इसके लिए मेमोरेंडम आफ प्रोसीजर (एमओपी) में संस्थागत बदलाव करवाने में रंजन गोगोई विफल रहे। तीसरा, जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा था कि चीफ जस्टिस प्रथम होने के बावजूद सर्वेसर्वा नहीं हैं।
अन्य जजों के बीच मुकदमों का आवंटन, रोस्टर, मुकदमों की लिस्टिंग, सीनियर वकीलों की मेंशनिंग पर जल्द सुनवाई के फैसले जैसे मसलों पर सुप्रीम कोर्ट के नियमों में बदलाव हो जाएं तो व्यक्ति विशेष की मनमर्जी को रोका जा सकता है। गोगोई ने रिटायरमेंट के पहले आगामी चीफ जस्टिस के लिए दो बड़े बंगलों को मिलाकर बड़ा काम्प्लेक्स बनाने और ऑफिशियल काम के लिए विशेष हवाई जहाज की सुविधा जैसे वीआईपी मामलों के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजे। लेकिन भावी चीफ जस्टिस की मनमर्जी को रोकने के लिए नियम और कानून में बदलाव के लिए उन्होंने ठोस पहल नहीं की।
चौथा, जमानत जैसे मामलों को एक जज की पीठ सुन सके इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 145 के तहत गोगोई के कार्यकाल में नियमों में बदलाव हुआ। उसके अनुसार ही रिया चक्रवर्ती के मामले को एक जज की बेंच ने सुना था। पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कार्रवाई के प्रसारण के लिए न्यायिक आदेश दिया था।
उसके बाद अयोध्या मामले की सुनवाई के सीधे प्रसारण और सुरक्षित तकनीक के इस्तेमाल के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली गई। फिर लॉकडाउन के बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मनमर्जी तरीके से ऑनलाइन सुनवाई शुरू हो गई। लेकिन सुरक्षित तकनीकी व्यवस्था अपनाने और नियमों में समुचित बदलाव के लिए गोगोई और परवर्ती चीफ जस्टिस ने ठोस फैसले नहीं लिए।
पांचवां, आत्मकथा के अनुसार जजों के आचरण और नैतिकता का मूल्यांकन समाज के अनुसार ही होना चाहिए। लेकिन जजों की नियुक्ति व्यवस्था तो बड़ी सरल है पर उनके खिलाफ कार्रवाई, एफआईआर या निकालने की प्रक्रिया असंभव जैसी है। इसीलिए कई स्तरों पर जांच के बाद भ्रष्ट आचरण की पुष्टि के बावजूद एक जज को इलाहबाद हाईकोर्ट से नहीं निकाला जा सका
नेताओं और अफसरों के खिलाफ सख्ती दिखाने वाली न्यायपालिका, अपने जजों के कदाचरण और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संस्थागत सिस्टम बनाए, तो कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार जजों का मान ज्यादा बढ़ेगा। इस बारे में भी गोगोई के कार्यकाल में ठोस पहल नहीं हुई।
तीन साल पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में गोगोई और अन्य जजों ने आत्मा की आवाज को नहीं दबाने और देश का कर्ज चुकाने की बात कही थी। जस्टिस गोगोई अब लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर यानी संसद के सदस्य हैं। न्यायिक सुधार और जजों की जवाबदेही से जुड़े इन मसलों पर वे संस्थागत बदलाव की सार्थक पहल करें तो विशिष्ट जजों के साथ आम जनता को भी न्याय मिल सकेगा।
'जस्टिस फॉर द जज' चर्चा में
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की आत्मकथा 'जस्टिस फॉर द जज' विशेष चर्चा में है। गोगोई का यह कहना सही है कि न्यायिक फैसले खुद ही बोलते हैं, इसलिए अब उनके फैसलों पर विवाद खड़ा करना ठीक नहीं है। दूसरा विवाद उनकी संसद सदस्यता पर है। एमसी छागला, कृष्ण अय्यर, बहरुल इस्लाम और हिदायतुल्लाह जैसे जजों ने दलीय राजनीति में खुलकर हिस्सा लिया था। इस लिहाज से गोगोई का राज्यसभा सदस्य बनना गलत नहीं माना जा सकता। उनकी किताब का खास पहलू और पीड़ा यह है कि जज भी अन्याय का शिकार होते हैं।