वैधव्य से मुक्ति

विधवा होना पाप नहीं है, यह तो एक हादसा है, जिसकी अनुभूति जीवन भर साथ लेकर नहीं चली जा सकती। बीते दिनों महाराष्ट्र में सरकार ने सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी परंपरा को समाप्त कर एक सराहनीय कदम उठाया है।

Update: 2022-05-30 05:14 GMT

Written by जनसत्ता; विधवा होना पाप नहीं है, यह तो एक हादसा है, जिसकी अनुभूति जीवन भर साथ लेकर नहीं चली जा सकती। बीते दिनों महाराष्ट्र में सरकार ने सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी परंपरा को समाप्त कर एक सराहनीय कदम उठाया है। इक्कीसवीं सदी के भारत में हम इन रूढ़िवादी परंपराओं को कब तोड़ेंगे। भारत में सात करोड़ विधवाएं हैं, जो अधिकतर मथुरा, वृंदावन, काशी आदि जगहों पर देखने को मिलती हैं।

इनका न कोई परिवार है, न इनकी सामाजिक पहचान है। जो घरों में रहती हैं उन पर तमाम पाबंदियां लगाई गई हैं कि वे किसी शुभ काम में भाग नहीं लेंगी। अगर गलती से भी किसी अनजान मर्द से हंस कर बात कर ली, तो समाज उसे बदचलन करार दे देता है। सरकार ने तमाम प्रयास किए हैं, और कर रही है, लेकिन अब भी यह दकियानूसी परंपरा जारी है। स्त्री विधवा हो या सधवा, समाज में सम्मान से जीने का अधिकार सभी को है।

पाकिस्तान से निपटने के पहले भारत को देश गद्दारों से निपटने के तौर-तरीके अमल में लाने चाहिए। खासकर उन अलगाववादियों के लिए, जो खाते तो भारत का हैं, लेकिन गुणगान पाकिस्तान का करते हैं। भारत के प्रति जहर उगलने से बाज नहीं आ रहे हैं। कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक बहुत से बेकसूर लोगों की मौत का कसूरवार और इंसानियता का दुश्मन है। उसे सजा मिलने से उन परिवारों को इंसाफ मिला, जिनका कोई अपना प्यारा इसके हाथों मारा गया था। इसकी सजा से जम्मू-कश्मीर का माहौल खराब करने वालों को सबक लेना चाहिए कि अब वे दिन गए जब वे अपनी नापाक हरकतों को आसानी से अंजाम दे देते थे।

यह कहना भी उचित होगा की जो अलागवादी पाकिस्तान के उकसावे में आकर घाटी का माहौल खराब किए हुए हैं, उन्हें सबसे पहले घाटी की समस्याओं और इतिहास पर दिल-दिमाग से सोचना चाहिए। पाकिस्तान के जुल्मों से अपना और अपनी प्रजा को बचाने के लिए महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद की गुहार लगाई थी और भारत ने कुछ शर्तों के साथ मदद भी की थी। अगर भारत ने उस समय भी मदद न की होती, तो आज घाटी के लोगों की जिंदगी नरक बनी होती।

अमेरिका के टेक्सास राज्य में एक छात्र ने अपनी दादी की गोली मारकर हत्या कर दी। बाद में उसने स्कूल पहुंच कर अंधाधुंध गोलीबारी करके कई छात्रों और अध्यापकों को भी मौत के घाट उतार दिया। गोलीबारी में पुलिसकर्मी एवं अन्य कर्मी भी घायल हुए हैं। अमेरिका में पहले भी इस प्रकार की कई घटनाएं हो चुकी हैं। इस साल वहां अब तक सत्ताईस स्कूलों में गोलीबारी की घटनाएं हो चुकी हैं। वर्षवार आंकड़ों पर गौर किया जाए, तो प्रतिवर्ष इस प्रकार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

विचारणीय प्रश्न है कि युवा किस मन:स्थिति में इस प्रकार की हिंसक वारदात को अंजाम देता है? निस्संदेह इसके पीछे नशाखोरी, एकाकीपन, पारिवारिक उपेक्षा, हिंसक वीडियो गेम और संस्कारहीन शिक्षा जैसे कारण जिम्मेदार हैं। शैक्षणिक और पारिवारिक ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन किए बिना, इस प्रकार के विध्वंसक और विनाशकारी घटनाक्रम को रोक पाना संभव नहीं होगा। इससे पहले कि हमारे देश में भी हिंसा का यह जहर फैले, हमें सावधान हो जाने की आवश्यकता है।


Tags:    

Similar News

-->