बोली पर हावी बदजुबानी

कम बोलें, धीरे बोलें, अच्छा बोलें। इसके उलट गौतम बुद्ध, कबीर और गांधी के देश में एक पढ़ा-लिखा इंसान गाली देने पर उतारू हो जाए तो बहुत ही अशोभनीय लगता है। हर व्यक्ति के आसपास ऐसे दृश्य आम होंगे, जब कोई व्यक्ति अपनी बात कहने के बजाय बदजुबानी या गालियों का सहारा लेता है।

Update: 2022-11-16 05:50 GMT

पूनम पांडे; कम बोलें, धीरे बोलें, अच्छा बोलें। इसके उलट गौतम बुद्ध, कबीर और गांधी के देश में एक पढ़ा-लिखा इंसान गाली देने पर उतारू हो जाए तो बहुत ही अशोभनीय लगता है। हर व्यक्ति के आसपास ऐसे दृश्य आम होंगे, जब कोई व्यक्ति अपनी बात कहने के बजाय बदजुबानी या गालियों का सहारा लेता है। ऐसी कुंठित मानसिकता का प्रदर्शन करके वह क्या हासिल करता है? गाली बोल कर किसी को नीचा दिखाना कोई नागरिक संस्कृति नहीं है। उस तरह गाली बोलने से शरीर की सहनशक्ति बढ जाती है, यह एक पुरानी लोककथा में कहीं पढ़ा था।

कथा इस तरह थी कि कुछ हानिकारक कीट-पतंगों से परेशान वनवासी उनको सुबह से शाम तक खूब गालिया बकते और जब उन कीट-पतंगो का हमला होता तो उसे भी झेल जाते। एक बार कुछ दूसरे वनवासी उस जगह आए जो खुद को योद्धा कहते थे। मगर जब कीट हमला हुआ तो गाली देने वालों के मुकाबले उन योद्धा वनवासियों की सहनशीलता जल्दी ही जवाब दे गई। पता नहीं, इसका सच से क्या वास्ता है! इसी तरह कुछ लोक गीत ऐसे हैं, जिनमें हंस-हंस कर गाली बकी जाती है, पर वे इतनी कठोर गालियां नहीं होतीं, फिर भी होती गालियां ही हैं।

दूसरी ओर, यह भी कहा जाता है कि गालियां सहने की क्षमता बड़े-बड़ों में नहीं होती। तलवारें खिंच जाती हैं, खून-खराबा हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगर परिवार के लोग गालियां देने को लेकर सहज हैं तो बच्चा वही सीखेगा और भविष्य में गाली देने में उसे कुछ गलत नहीं लगेगा। समाज से तो वह ग्रहण करेगा ही, परिवार की पाठशाला से भी वह सीखेगा। एक और मान्यता यह है कि अगर कोई हजार गाली खाकर भी शांत है तो इसका साफ मतलब है कि वह अहंकार से शून्य है।

ब्रिटेन के लैंकेस्टर विश्वविद्यालय में हजारों लोगों के बीच बातचीत पर केंद्रित शोध के मुताबिक, आज पढ़े-लिखे अमीर तबके के लोग ज्यादा गालियां देते हैं, बनिस्बत कम पढ़े-लिखे और गरीब लोगों के। ऐसे लोगों को गाली-गलौज करने से अपनी छवि पर पड़ने वाले असर की भी परवाह नहीं होती। लेखिका मेलिसा मोर कहती हैं कि जरा कल्पना कीजिए कि किसी जगह सब पढ़े-लिखे समझदार लोग बैठे हैं और अचानक गाली-गलौज करने लगें।

तब माहौल अजीब-सा हो जाएगा। मनोवैज्ञानिक और लेखक रिचर्ड स्टीफंस का कहना है कि हमारी जुबान को नियंत्रित करने वाले दिमाग का हिस्सा अलग है, जो इंसान के विकास की प्रक्रिया में बाद में विकसित हुआ। वहीं दिमाग के जिस हिस्से से गालियां निकलती हैं, वह इंसान के दिमाग का शुरुआती, पुराना इलाका है। स्टीफंस बताते हैं कि जिन लोगों को आम जुबान बोलने में दिक्कत होती है, वे भी फर्राटे से गालियां दे लेते हैं, गाना गा लेते हैं।

कई लोगों को तो गालियां निकालने का खब्त होता है। इसका सीधा ताल्लुक हमारे दिमाग की बनावट से है। अलग-अलग जुबान में गालियों को लेकर अलग-अलग सोच भी है। जैसे अंग्रेजी में पहले गाली-गलौज या कोसने का सीधा ताल्लुक धार्मिक भावनाओं से था। मध्य युग में अंग्रेज धार्मिक बातों का मजाक उड़ाने या कोसने को बहुत बुरा मानते थे। उन्हें गालियां देने के बराबर ही माना जाता था। यों व्यवहार मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि किसी भी बुरी आदत की तरह गालियां देने की आदत भी आसानी से लग जाती है और बहुत मुश्किल से छूटती है। कभी-कभी तो आपको पता भी नहीं चलता कि आप यह कर रहे हैं।

वैसे यह भी सच है कि यह एहसास करके कि यह एक समस्या है और ईमानदारी से इसे सही करने के प्रयासों से इस आदत को बदला भी जा सकता है। अपनी भाषा और विचार को स्वच्छ करने के लिए। प्रत्येक के अपने कारण होते हैं जिनकी वजह से उसकी गालियां देने की अदम्य इच्छा जागृत हो जाती है। कुछ लोग सड़क पर सफर के दौरान मामूली असुविधा के कारण गाली देना शुरू कर सकते हैं, कुछ दुकान में भुगतान की लंबी पंक्ति के कारण और कुछ तो गली-मोहल्ले में भी बहुत साधारण-सी बात पर गाली-गलौज और मारपीट कर सकते हैं।

पर गालियां किसी भी समस्या का समाधान नहीं हैं। इसके उलट गालियां कई स्तरों पर समस्या पैदा करती हैं। सामने वाले को अपमानित करने से लेकर अपने व्यक्तित्व को दूषित करने तक। इसलिए गालियों से अपने दिमाग और जुबान को मुक्त करना बेहद जरूरी है। अगर गाली देना किसी के लिए गुस्सा दिखाने का प्रतीक बन गया हो तो कोई वाद्य बजाना सीखना चाहिए। वाद्य बजाना सीखने के लिए बहुत धैर्य चाहिए, लेकिन इससे गाली-गलौज की आदत कम हो सकती है। साथ ही, मानसिक संतुलन बना कर, संगीत सुन कर, ध्यान योग बागवानी आदि में डूब कर भी इस आदत से बचा जा सकता है। एक अच्छी और सभ्य छवि को मनुष्य बनना किसे अच्छा नहीं लगेगा?


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