विलायती प्रेम

भारतीय संस्कृति कभी किसी संस्कृति की पिछलग्गू नहीं बनी। हमारी संस्कृति तो अन्य सभी संस्कृतियों को खुद में समाहित करने वाली रही है। यही कारण है

Update: 2022-02-14 05:24 GMT

Written by जनसत्ता: भारतीय संस्कृति कभी किसी संस्कृति की पिछलग्गू नहीं बनी। हमारी संस्कृति तो अन्य सभी संस्कृतियों को खुद में समाहित करने वाली रही है। यही कारण है लगातार प्रहार होने के बावजूद यह जीवंत बनी हुई है। आधुनिक होना गलत बात नहीं है, लेकिन आधुनिकता के बंधन में बंध कर अपनी संस्कृति और रीति-रिवाजों को भूल जाना गलत बात है। हमें अपने संस्कारों से बंधे रहते हुए बस विचारों से आधुनिक होने की जरूरत है।

फरवरी आते ही एक विलायती प्रेम गाथा और उसकी आड़ में वेलेंटाइन उत्सव और उसका सार्वजनिक प्रदर्शन दिखाई देने लगता है। आधुनिक प्रेमियों को अपने इतिहास से जुड़ी महत्त्वपूर्ण तिथियां भले ही न याद हों, लेकिन फरवरी माह का पूरा कैलेंडर जुबान पर होता है। यह प्रेम नहीं, महज एक स्टेशन होता है जहां पहुंचते ही यात्री बदलते रहते हैं। एक समय था जब प्रेम एक बड़ा जीवन मूल्य था। उस प्रेम में न कोई बंधन हुआ करता था न ही दिखावा। अब तो यह विलायती किस्म का प्रेम ही हावी है।

महिला कहां सुरक्षित है? एक यक्ष प्रश्न है। बेटी बढ़े, बेटी पढ़े, लेकिन बेटियों की इज्जत कैसे बचे? विचारणीय है। ट्रेन में अकेली सफर कर रही महिला को सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए। अकेली सफर कर रही महिला का टिकट कन्फर्म होना चाहिए। आए दिन महिलाओं के साथ दरिंदगी की वारदातें सामने आती रहती हैं। ऐसा ही एक मामला फिर सामने आया है, जहां संपर्क क्रांति एक्सप्रेस में महिला के साथ दुष्कर्म किया गया। युवती को ट्रेन में जगह नहीं मिली थी, जिसके बाद गाड़ी सहायक उसे रसोई बोगी में ले गए और वारदात को अंजाम दिया। ऐसे दरिंदों को त्वरित अदालतों में दस दिनों के अंदर कठोरतम सजा होना चाहिए।


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