किसानी के लिए

इससे किसानों को पूरा पानी नहीं मिल पाता है और वे लगातार आंदोलन करते रहते हैं। इसके साथ-साथ सिंचित भूमि में रासायनिक खादों का भी प्रयोग किया जाता है और वह भी किसानों को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाती।

Update: 2022-12-14 06:08 GMT

Written by जनसत्ता: इससे किसानों को पूरा पानी नहीं मिल पाता है और वे लगातार आंदोलन करते रहते हैं। इसके साथ-साथ सिंचित भूमि में रासायनिक खादों का भी प्रयोग किया जाता है और वह भी किसानों को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाती।

जब न तो सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी है और न ही पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध है तो फिर किसानों को सिंचित कृषि के बजाय असिंचित यानी बारानी खेती की ओर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सिंचाई सुविधाओं का विस्तार तभी होना चाहिए जब पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हो। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा ऐसी किस्में विकसित की जाएं जो बरानी खेती में भी अधिक उपज दें।

चुनाव में मतदान खत्म होने के बाद चुनाव आयोग मतदान खत्म करने की घोषणा के साथ मतदान के फीसद की भी घोषणा करता है। इसके बाद से ही 'एग्जिट पोल' के अनुमानित नतीजे आने शुरू हो जाते हैं। हालांकि कई लोग ऐसे नतीजों को सनसनी मानते हैं तो कुछ इसे विश्वसनीय भी मानते हैं। अनुमानित नतीजों मतदाताओं से बातचीत करके उनके रुझानों के जरिए निष्कर्ष निकालने की कोशिश की जाती है।

इसी के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि नतीजों का झुकाव आखिर किस ओर है। अब इसे आयोजित करने का काम कई बड़ी संस्थाएं कर रही हैं। हालांकि इन अनुमानों पर हमेशा ही संदेह रहता है। अनुमानित नतीजे हमेशा सही हों, यह जरूरी नहीं है। कई बार ऐसे अनुमान से अलग नतीजे आए हैं। इसलिए कई देशों में 'एग्जिट पोल' पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। दुनियाभर के कई देशों में इसे विश्वसनीय भी नहीं माना जाता है।

भारत में 'एग्जिट पोल' का इतिहास लगभग तीन दशक से पुराना है। भारत में अब चुनाव आयोग ने कड़े नियम और दिशानिर्देश जारी किए हैं। देश में अब ऐसे अनुमानित नतीजों का प्रसारण केवल अंतिम चरण के बाद ही हो सकता है। मतदान पूर्व सर्वेक्षण मतदाताओं की सोच और वे क्या कर सकते हैं, इसको जानने के लिए किए जाते हैं। इसमें उनके मन को टटोला जाता है। सवाल है कि इस तरह के आयोजन देश की राजनीति में लोकतंत्र की बुनियाद को कितना मजबूत या फिर कमजोर करेगा!

गुजरात, हिमाचल, विधानसभा और दिल्ली नगर निगम चुनाव तीन किले की तरह थे, जो जनता ने तीन पार्टियों क्रमश: भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को सौंपे। गुजरात में भाजपा की प्रचंड आंधी में कांग्रेस और आप उड़ गए, हिमाचल में कांटे की लड़ाई में कांग्रेस ने और दिल्ली नगर निगम चुनावों में, जहां हिमाचल के छप्पन लाख के मुकाबले उनासी लाख मतदाता हैं, आप को पूर्ण बहुमत मिला।

इन तीनों जगह अलग-अलग प्रवृत्तियां दिखाई पड़ीं। गुजरात में भाजपा ने लगातार सातवीं बार चुनाव जीतकर रिकार्ड बनाया, जो बंगाल में वाम मोर्चा के 1977 से 2006 तक लगातार सात बार सरकार बनाने के बराबर है। हिमाचल में 1990 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के शांता कुमार द्वारा कांग्रेस को विस्थापित कर सत्ता परिवर्तन का जो क्रम शुरू हुआ, वह भी बना रहा। बत्तीस वर्षों में हिमाचल में भाजपा और कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता में आती है। यह प्रवृत्ति तमिलनाडु में देखी जाती रही है।


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