मुश्किल में फुटबाल

विश्व फुटबाल की सर्वोच्च नियामक संस्था फीफा ने अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ (एआइएफएफ) को निलंबित कर इस बात का कड़ा संदेश दिया है कि खेल महासंघ को उसके नियमों का पालन करना ही होगा।

Update: 2022-08-18 03:59 GMT

Written by जनसत्ता: विश्व फुटबाल की सर्वोच्च नियामक संस्था फीफा ने अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ (एआइएफएफ) को निलंबित कर इस बात का कड़ा संदेश दिया है कि खेल महासंघ को उसके नियमों का पालन करना ही होगा। फीफा की यह कार्रवाई मामूली नहीं है। भारतीय फुटबाल के पचासी साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब भारतीय फुटबाल महासंघ के साथ इस किस्म का बर्ताव किया गया हो। इसका मतलब साफ है कि अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ फीफा के निर्धारित नियमों का पालन नहीं कर रहा था और संस्था चलाने की जिम्मेदारी संभालने वाले अपनी मनमर्जी चलाते रहे।

ऐसे में फीफा के सामने शायद कोई चारा रह भी नहीं गया होगा। फीफा के इस कठोर कदम ने भारतीय खेल महासंघों की कार्य-संस्कृति को भी उजागर किया है। जाहिर है, इससे देश का फुटबाल जगत, खिलाड़ी और इस खेल के प्रेमी-प्रशंसक सबको धक्का लगा है। चिंता की बात यह भी है कि फीफा के इस फैसले से भारतीय फुटबाल के सामने कई संकट खड़े हो जाएंगे। अक्तूबर में होने वाले अंडर-17 महिला विश्व कप की मेजबानी भारत के हाथ से छिन गई है। जब तक फीफा निलंबन वापस नहीं ले लेता, तब तक भारत की पुरुष और महिला फुटबाल टीम किसी भी देश के साथ कोई खेल नहीं खेल सकेगी। भारत के फुटबाल क्लब भी किसी भी अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में हिस्सा नहीं सकेंगे। भारतीय फुटबाल का यह भारी नुकसान है।

दरअसल, अखिल भारतीय फुटबाल महासंघ लंबे समय से जिस रास्ते पर चल रहा था, उसमें एक न एक दिन यह होना ही था। कहना न होगा कि विवाद की जड़ इस पर कब्जे को लेकर रही है। दिसंबर 2020 में जब इसके अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल का कार्यकाल खत्म हो गया था, तो कायदे से उन्हें पद छोड़ देना चाहिए था। लेकिन वे पद पर डटे रहे। जबकि वे अपने तीन कार्यकाल पूरे कर चुके थे। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद इस साल मई में पटेल ने इस कुर्सी को छोड़ा। सवाल तो इस बात का है कि राजनेता खेल संघों की कुर्सी से चिपके क्यों रहना चाहते हैं?


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