इंसाफ की धज्जियां

दो दिन की चुप्पी के बाद बुधवार को आखिर गुजरात के एक बहुचर्चित गैंगरेप केस की विक्टिम ने बयान जारी कर कहा कि रेपिस्टों को रिहा करने के फैसले ने इंसाफ में उसके यकीन को हिला दिया है।

Update: 2022-08-19 03:14 GMT

नवभारत टाइम्स: दो दिन की चुप्पी के बाद बुधवार को आखिर गुजरात के एक बहुचर्चित गैंगरेप केस की विक्टिम ने बयान जारी कर कहा कि रेपिस्टों को रिहा करने के फैसले ने इंसाफ में उसके यकीन को हिला दिया है। यह 2002 के गुजरात दंगों से जुड़ा मामला है जिसमें सामूहिक हत्या और गैंगरेप के 11 अपराधियों को राज्य सरकार की माफी नीति के तहत जेल से मुक्त कर दिया गया। वैसे यह बात सही है कि सुप्रीम कोर्ट ने, केस के मेरिट में गए बगैर, राज्य सरकार से कहा था कि वह इस मामले में 1992 की अपनी माफी नीति के आधार पर फैसला करे जो इन्हें सजा सुनाते समय लागू थी। यह नीति आजीवन कारावास की सजा भुगतते हुए जेल में 14 साल पूरा कर लेने वाले कैदियों की रिहाई की इजाजत देती है।

लेकिन नीति जो भी गुंजाइश छोड़ती हो गुजरात सरकार को फैसला अपने विवेक से करना था। और, सरकार चाहती तो अपने विवेक का इस्तेमाल दूसरी तरह से भी कर सकती थी। इसके ठोस आधार मौजूद थे। लक्ष्मण नासकर बनाम केंद्र सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट का ही फैसला है कि माफी देने से पहले सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि अपराध एक खास व्यक्ति के खिलाफ है जिसका समाज के व्यापक हिस्से पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला। इस मामले में अपराध का जो खौफनाक स्वरूप है- कुछ महिलाओं और इस विक्टिम की तीन साल की बेटी सहित 14 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था और फिर प्रेग्नेंट विक्टिम के साथ गैंगरेप किया गया था- उसे देखते हुए लक्ष्मण नास्कर केस यहां पूरी तरह प्रासंगिक था।

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यही नहीं, केंद्रीय गृह मंत्रालय की ताजा गाइडलाइन भी साफ कहती है कि आजीवन कारावास पाए कैदियों और बलात्कारियों को माफी नहीं दी जानी चाहिए। इसके बावजूद गुजरात सरकार ने इन अपराधियों को छोड़ने का फैसला किया जो प्राकृतिक न्याय की अवधारणा को तगड़ा झटका है। ध्यान रहे इस मामले में पीड़िता को घटना के बाद इंसाफ पाने की जद्दोजहद में भी प्रताड़ना के लंबे दौर से गुजरना पड़ा था। बाकायदा साक्ष्य मिटाने के भी प्रयास किए गए थे जिनमें पुलिसकर्मियों और डॉक्टरों को दोषी पाया गया था। केस को गुजरात से मुंबई शिफ्ट किया गया था ताकि विक्टिम निडर होकर गवाही दे सके। आश्चर्य नहीं कि विक्टिम और उसका परिवार इस फैसले से सदमे में हैं। फैसले पर पुनर्विचार की संभावना बनती नहीं दिख रही क्योंकि खुद सुप्रीम कोर्ट ने मामला राज्य सरकार के विवेक पर छोड़ा था, लेकिन बात जहां तक इंसाफ के तकाजे की है तो इसमें संदेह की रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं कि यही उचित रास्ता है।


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