लापरवाही की आग
दिल्ली के मुंडका इलाके में बीते शुक्रवार को हुए भयानक अग्निकांड ने एक बार फिर आग से बचाव के इंतजामों की पोल खोल दी है। इससे यह भी साफ हो गया है कि पिछले कुछ वर्षों में हुए ऐसे तमाम हादसों के बाद भी हमारी आंखें खुली नहीं हैं।
Written by जनसत्ता: दिल्ली के मुंडका इलाके में बीते शुक्रवार को हुए भयानक अग्निकांड ने एक बार फिर आग से बचाव के इंतजामों की पोल खोल दी है। इससे यह भी साफ हो गया है कि पिछले कुछ वर्षों में हुए ऐसे तमाम हादसों के बाद भी हमारी आंखें खुली नहीं हैं। अग्नि सुरक्षा को लेकर आज भी हद दर्जे की लापरवाही जारी है, लोगों के स्तर पर भी और सरकार के स्तर पर भी। इसी का नतीजा समय-समय पर ऐसे बड़ी घटनाओं के रूप में सामने आता रहा है। मुंडका में हुए अग्निकांड के कारण जो भी रहे हों, इतना तो साफ है कि अगर इमारत में बचाव के इंतजाम होते तो लोगों की जान न जाती। जैसा कि जांच में पता चला है इमारत में प्रवेश करने और बाहर निकलने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता बनाया गया था, वह भी बेहद छोटा और संकरा।
इसलिए आग लगने पर लोग बाहर नहीं निकल पाए। कई लोग तो कूद कर जान बचाने की कोशिश में जख्मी हो गए। जो नहीं निकल पाए वे आग की लपटों और धुएं में घुट कर मर गए। गौरतलब है कि यह हादसा जिस चार मंजिला इमारत में हुआ, उसमें सीसीटीवी और राउटर बनाने की कंपनी चल रही थी। यहीं इन उत्पादों के निर्माण और इनकी पैकिंग का काम भी होता था। इमारत की एक मंजिल पर ही इसका गोदाम भी था। बताया गया है कि घटना के वक्त सौ से ज्यादा लोग कंपनी की एक बैठक में शामिल होने आए थे।
इस अग्निकांड ने एक बार फिर उन्हीं सवालों को सामने ला दिया है जो ऐसे हर बड़े हादसे के बाद उठते रहे हैं। लेकिन विडंबना यह है कि पिछले हादसों से किसी ने कोई सबक नहीं सीखा। वरना बार-बार ऐसे हादसे क्यों होते हैं? याद किया जाना चाहिए कि ढाई साल पहले दिसंबर 2019 में दिल्ली की एक अनाज मंडी में आग से तेंतालीस लोगों की मौत हो गई थी। सवा तीन साल पहले करोल बाग के एक होटल में आग ने सत्रह लोगों को लील लिया था।
शायद ही कोई साल गुजरता हो जब ऐसे दहला देने वाले बड़े अग्निकांड न हो जाते हों। जांच हर घटना की होती है। रिर्पोटें भी आती हैं, पर उसके बाद सब कुछ पुराने ढर्रे पर लौट आता है। इससे तो यही लगता है कि ऐसे हादसों के कारणों को लेकर जो सवाल खड़े होते हैं, उनका जवाब और समाधान खोजने के बजाय सरकार उन्हें फाइलों में दफन कर देना बेहतर समझती है। वरना कैसे एक चार मंजिला इमारत जो लालडोरा के दायरे में आती है, उसे व्यावसायिक काम के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा, वहां सामान बनता रहा, गोदाम भी था, लेकिन आग से बचाव के कोई साधन नहीं थे? इस इमारत के मालिक और कंपनी के संचालक के पास अग्निशमन विभाग की एनओसी भी नहीं थी।
आग की घटनाओं को लेकर दिल्ली की हालत बेहद चिंताजनक है। महानगर में बेहद घनी आबादी वाले इलाके हैं। बिजली के तारों के लटकते गुच्छे तो आम बात हैं। रिहायशी इलाकों में ही बड़ी संख्या में ऐसी इमारते हैं जहां किसी न किसी प्रकार के उद्योग और दफ्तर चल रहे हैं। गर्मी के मौसम में एअरकंडीशनर भी अपेक्षाकृत ज्यादा चलते हैं। जनरेटरों का भी उपयोग होता है। ऐसे में जरूरी है कि बिजली से होने वाले हादसों को रोकने के पर्याप्त बंदोबस्त हों। ऐसे हादसों से बचना है तो लोगों के साथ सरकार को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि हर इमारत का सुरक्षा आडिट हो। अगर अग्निशमन विभाग के अनापत्ति प्रमाणपत्र के बिना कहीं कोई गतिविधि चलती है और इसकी वजह से जानमाल का नुकसान होता है तो इसका पहला दोषी तो वही है जिस पर इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है।