भयरहित परिवेश : पुलिस बल में महिलाओं की हिस्सेदारी
स्त्रियों की यह हिस्सेदारी महिला सुरक्षा का पूरा परिदृश्य बदलने वाली बात है।
देश का कोई भी हिस्सा हो, महिलाओं के लिए सशक्त और सहज जीवन जीने की स्थितियां, उनकी सुरक्षा से जुड़ा सबसे प्रमुख पहलू है। साथ ही भयरहित परिवेश से संबंधित अधिकतर चीजें पुलिस बल से जुड़ी हैं। सुरक्षित महसूस करने से लेकर शिकायत करने और जांच के दौरान संवेदनशील व्यवहार से जुड़ी अनगिनत बातें या तो पुलिस बल में भरोसा बढ़ाती हैं या असुरक्षित महसूस करवाती हैं।
ऐसे में हाल ही में उठाए गए एक कदम की ओर ध्यान जाता है। पुलिस-प्रशिक्षण, आधुनिकीकरण और सुधार के लिए बनी संसद की स्थायी समिति ने पुलिस बल में महिलाओं की भागीदारी तैंतीस फीसदी करने की सिफारिश की है। पुलिस बलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ना मानवीय संवेदनाओं से जुड़े मोर्चों पर प्रभावी बदलाव ला सकता है।
समिति ने यह भी सुझाया है कि सिर्फ पुरुषों के खाली पदों को महिलाओं से भरने का काम ही नहीं किया जाए, बल्कि महिलाओं के लिए अलग से नए पद भी सृजित किए जाएं। गौरतलब है कि अभी पुलिस बलों में महिलाओं की संख्या 10.30 फीसदी ही है। जबकि देश की आबादी का 48 प्रतिशत हिस्सा महिलाएं हैं। यही नहीं, घर हो या बाहर अधिकतर आपराधिक घटनाएं भी महिलाओं के साथ ही होती हैं। यही वजह है कि लंबे समय से पुलिस में महिलाओं को कम से कम एक तिहाई हिस्सेदारी दिए जाने की बात हो रही है।
पुलिस बलों में महिलाओं का सीमित प्रतिनिधित्व यकीनन चिंता का विषय है। पुलिस बलों में महिलाओं की भागीदारी का कम होना देश की आम स्त्रियों के मन-जीवन को गहराई से प्रभावित करने वाला पक्ष है। उनकी सुरक्षा और स हजता पर असर डालने वाला मामला है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश में 11 फीसदी अपराध महिलाओं के खिलाफ होते हैं। कई घटनाओं में महिला अपराधियों की भी गिरफ्तारी की जाती है। कहना गलत नहीं होगा कि बच्चों से जुड़े मामले भी महिला पुलिसकर्मियों को सौंपे जाएं, तो बेहतर ढंग से हल किए जा सकते हैं।
रिपोर्ट में हर थाने में तीन महिला सब-इंस्पेक्टर के अलावा 10 महिला कांस्टेबल की तैनाती के साथ ही हर जिले में महिला थाना बनाने की बात भी कही गई है। संसदीय समिति के सुझाव वाकई गौर करने लायक हैं, क्योंकि हमारी सामाजिक-पारिवारिक रूपरेखा और इंसानी व्यवहार को समझने वाले विशेषज्ञ भी पुलिस में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने की बात कहते रहे हैं। उनका भी मानना है कि पुलिस बलों में महिलाओं की संख्या बढ़ाकर इसे और ज्यादा मानवीय बनाया जा सकता है। समाजशास्त्री तो यह भी कहते हैं कि कानून-व्यवस्था को बनाए रखने में भी स्त्रियों की भागीदारी बढ़ाना सीधे-सीधे काम की कुशलता और शिकायतकर्ताओं की सहजता से जुड़ा पक्ष है।
सुखद यह है कि इस मोर्चे पर कोशिशें जारी हैं। साल की शुरुआत में ही जम्मू-कश्मीर पुलिस में महिलाओं के लिए 15 फीसदी आरक्षण के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। राज्य पुलिस बल में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने का यह प्रयास जरूरी भी था, क्योंकि राज्य में केवल तीन फीसदी महिलाएं ही पुलिस बल में हैं। समिति ने इस ताजा रिपोर्ट में भी कहा है कि राज्य पुलिस बलों में 26,23,225 की स्वीकृत संख्या के मुकाबले 5,31,737 रिक्तियां ही भरी गई हैं।
बीते साल आई इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2020 के मुताबिक, बिहार में दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा महिला पुलिसकर्मी तैनात हैं। राज्य के पुलिस बल में 25.3 फीसदी महिलाएं हैं। इसी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर दस पुलिसकर्मियों में मात्र एक महिलाकर्मी है। समझना जरूरी है कि पुलिस फोर्स में महिलाओं की भागीदारी केवल आधी आबादी के रोजगार पाने या किसी एक क्षेत्र विशेष में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने भर की बात नहीं है। स्त्रियों की यह हिस्सेदारी महिला सुरक्षा का पूरा परिदृश्य बदलने वाली बात है।
सोर्स: अमर उजाला