तालिबान के तरफदार: तालिबान की तारीफ और तरफदारी करने वाले सभ्य समाज के हितैषी नहीं कहे जा सकते

अफगानिस्तान के आम लोग और खासकर महिलाएं किस तरह खौफ के साये में हैं?

Update: 2021-08-19 03:09 GMT

काबुल पर कब्जा जमाने के बाद तालिबान नेताओं ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में भले ही यह जताने की कोशिश की हो कि वे बदल गए हैं, लेकिन उन पर यकीन नहीं किया जा सकता। इसका प्रमाण खुद अफगानिस्तान के वे तमाम लोग हैं, जो उनके भय से देश छोड़ने के लिए बेकरार हैं। जो अफगानी देश छोड़कर जाने में सक्षम नहीं, वे तालिबान के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। सबसे ज्यादा दहशतजदा वहां की महिलाएं हैं और इसका कारण यही है कि तालिबान ने उन पर सख्त किस्म की पाबंदियां लगानी शुरू कर दी हैं। तालिबान नेता कथनी और करनी में अंतर दिखाने के साथ जिस तरह पुराने तौर-तरीकों पर चलते दिख रहे हैं, उससे यही लगता है कि वे सुधरने का स्वांग भर कर रहे हैं और उनका इरादा दुनिया की आंखों में धूल झोंकना है। तालिबान की हरकतें यह भी बयान करती हैं कि वे उसी धार्मिक कट्टरता और कबीलाई मानसिकता से ग्रस्त हैं, जिससे दो दशक पहले तब थे, जब अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज थे। जब तालिबान के तेवरों से करीब-करीब पूरी दुनिया सशंकित है और कई देश साफ तौर पर यह कह रहे हैं कि उन पर आसानी से भरोसा नहीं किया जा सकता, तब यह हैरान और परेशान करने वाली बात है कि भारत में कुछ लोग उन पर फिदा हुए जा रहे हैं।

पहले संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे की तुलना भारत के स्वाधीनता संग्राम से कर दी। फिर मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने न केवल तालिबान की जीत पर खुशी जताई, बल्कि भारतीय मुसलमानों की ओर से उन्हें सलाम भी भेज दिया। यह महज एक बेहूदा बयान ही नहीं, भारतीय मुसलमानों को असहज करने वाली ओछी हरकत है। इसकी जितनी भी कड़ी निंदा की जाए, कम है, क्योंकि तालिबान सदियों पुरानी उस विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका आज के युग में कहीं कोई स्थान नहीं हो सकता। तालिबान की तरफदारी करने वाले बेतुके बयान यही संकेत करते हैं कि भारत में भी कुछ लोग उसी तालिबानी सोच से ग्रस्त हैं, जो अफगानिस्तान के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए खतरा बन गई है। तालिबान की तारीफ और तरफदारी करने वाले सभ्य समाज के हितैषी नहीं कहे जा सकते। इसमें कोई संदेह नहीं कि ऐसे लोग उस सड़ी-गली व्यवस्था के हिमायती हैं, जिसमें महिलाओं के लिए कोई सम्मान नहीं और जो सभ्य समाज के लिए किसी नरक से कम नहीं। यह समझना कठिन है कि ऐसे लोग यह क्यों नहीं देख पा रहे हैं कि अफगानिस्तान के आम लोग और खासकर महिलाएं किस तरह खौफ के साये में हैं?


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