खेती-किसानी : खरीफ सीजन पर वैश्विक संकट, खाद की किल्लत और मार्च-अप्रैल की रिकॉर्ड गर्मी का नतीजा
अब देखना है कि हम इस संकट से कितनी गंभीरता से निपटते हैं।
खादों की किल्लत और मार्च-अप्रैल की रिकॉर्ड गर्मी का नतीजा गेहूं की पैदावार पर पड़ा है। इस वर्ष न केवल गेहूं की पैदावार कम हुई है, बल्कि दाने भी कमजोर हुए हैं। दुनिया का तीसरा गेहूं उत्पादक देश रूस और आठवां उत्पादक यूक्रेन परस्पर युद्ध में उलझे हैं। ऐसे में गेहूं की वैश्विक किल्लत नजर आ रही है। शायद इसी आशंका को देखते हुए सरकार ने गेहूं निर्यात पर रोक लगा दी है। वर्ष 2021-22 में भारत से 72.15 लाख मीट्रिक टन गेहूं का रिकॉर्ड निर्यात हुआ था, जबकि अप्रैल, 2022 में केवल 14.63 लाख मीट्रिक गेहूं का निर्यात हो सका।
खाद संकट के चलते आगामी जून से शुरू हो रहे खरीफ सीजन के लिए चिंता बढ़ रही है। वैश्विक स्थिति को देखते हुए खाद की भयंकर कमी का अंदेशा होने लगा है। ऐसे में रबी के बाद यदि खरीफ की फसल अच्छी नहीं हुई, तो खाद्यान्न संकट पैदा हो सकता है। भारत अपनी कुल जरूरत का 40-45 प्रतिशत फास्फेटिक खाद चीन से आयात करता रहा है। कोरोना काल में चीन का उत्पादन घटने और यूरोप, अमेरिका, ब्राजील और दक्षिण-पूर्व एशिया में मांग बढ़ने से स्थिति और बिगड़ी है।
भारत में डी.ए.पी. खाद की बहुत आवश्यकता है और इसकी कमी लगातार बनी हुई हैं। इफको द्वारा मांग की तुलना में केवल चालीस प्रतिशत के करीब डी.ए.पी. (डी-अमोनियम फास्फेट) और एन.पी.के. (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम) खादों की आपूर्ति हो पा रही है। डी.ए.पी. की कमी कई वर्षों से बनी हुई है। हमने इसका कोई स्थायी हल नहीं निकाला है। सरकार ने डी.ए.पी. आपूर्ति हेतु विगत अक्तूूबर में रूस के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, मगर अब युद्ध के चलते वहां से कोई आपूर्ति नहीं होने वाली है।
जॉर्डन, चीन तथा मोरक्को से आयात में अलग समस्या पैदा हो गई है, क्योंकि मोरक्को भी डी.ए.पी. उत्पादन हेतु कच्चा माल रूस से प्राप्त करता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में डी.ए.पी. खादों के दाम पहले से ही आसमान छू रहे थे। फरवरी, 2021 में आयातित डी.ए.पी. की कीमत 383 डॉलर प्रति टन थी, जो अप्रैल 2021 में 515 डॉलर प्रति टन हो गई। यानी कीमत में पैंतीस प्रतिशत की वृद्धि मात्र दो महीने में हो गई।
आगामी खरीफ सीजन, जून से अक्तूबर 2022 तक के लिए करीब 354.34 लाख टन खाद की आवश्यकता होगी, पर खाद सचिव, राजेश कुमार चतुर्वेदी के अनुसार, 125.5 लाख टन खाद ही उपलब्ध है। सरकार का अनुमान है कि खरीफ सीजन में देश में खाद का उत्पादन 254.79 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच सकता है। वैसे ऐसा संभव नहीं दिखता। खाद की कमी की आशंका के बीच डीजल की कीमतों में वृद्धि से ढुलाई की कीमत में वृद्धि हो चुकी है।
ऐसे में यह आशंका प्रबल है कि आगामी खरीफ सीजन में डी.ए.पी. खाद के लिए हाहाकार मचेगा। देश में भी जो डी.ए.पी. का उत्पादन होता है, उसके लिए कच्चा माल ज्यादातर विदेशों से ही आता है, जिनमें यूक्रेन, रूस, मोरक्को और चीन मुख्य हैं। विदेशों में दाम बढ़ने के कारण इफको की डी.ए.पी. की कीमत में भी जबदस्त वृद्धि संभव है। खादों के दामों में वृद्धि का सीधा असर कृषि लागत पर पड़ता है।
खरीफ सीजन में खादों के दाम को नियंत्रित करने के लिए सरकार की ओर से न्यूट्रिएन्ट बेस्ड सब्सिडी में वृद्धि करने का विचार है। सरकार द्वारा 2.5 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी भार वहन करने का अनुमान है। संभव है कि सरकार सऊदी अरब और ईरान से खाद प्राप्त करे। खरीफ सीजन हेतु 19.81 लाख मीट्रिक टन पोटाश की भी जरूरत होगी, जबकि केवल पांच लाख मीट्रिक टन पोटाश खाद की ही उपलब्धता है।
जाहिर है, यह कमी आयात से पूरी हो सकती है। पर अगर युद्ध लंबा खिंचता है, तो खाद संकट के गहराने से कृषि उत्पादन प्रभावित होगा। ऐसे में, चौतरफा महंगाई के बीच, रबी सीजन में कम उत्पादन की पूर्ति खरीफ सीजन से न होने पर स्थिति और विकट होगी, जिससे गरीबी उन्मूलन योजनाओं पर संकट बढ़ेगा। डीजल के दामों की वृद्धि ढुलाई खर्च बढ़ाएगी और खाद की कीमतें किसानों को रुलाएंगी। अब देखना है कि हम इस संकट से कितनी गंभीरता से निपटते हैं।
सोर्स: अमर उजाला