पंजाब बना देश का पहला राज्य: किसानों के कृषि विवरण सरकार के डिजिटल लॉकर में हैं
नए कानून के मुताबिक सरकार ने किसानों को अनाज खरीद नामक पोर्टल पर रजिस्टर किया। पंजाब देश का पहला राज्य बन गया है, जहां किसानों के कृषि उत्पादन संबंधी विवरण जे फार्म में भरकर सरकार के डिजिटल लॉकर में रखा गया है। पंजाब में 35 लाख हेक्टेयर रकबे में गेहूं की खेती होती है, जिसमें 1.7 से 1.8 करोड़ टन उत्पादन होता है। राज्य में कुल उत्पादन का 75 प्रतिशत गेहूं मंडियों में बिकने के लिए आता है। पंजाब में अब तक सरकारी एजेंसियां जैसे भारतीय खाद्य निगम किसानों से सीधे अनाज खरीद न करके आढ़तियों-बिचौलियों के जरिये करती थीं। राज्य में 1850 मंडियां हैं, जिनमें 32,000 कमीशन एजेंट गेहूं और 28,000 कमीशन एजेंट धान की खरीद-बिक्री से जुड़े हैं। इस खरीद बिक्री के एवज में आढ़तियों-बिचौलियों को सरकारी खरीद एजेंसियां कमीशन देती रही हैं। आढ़ती-बिचौलिये इसी प्रकार का कमीशन किसानों से भी लेते थे। इस प्रकार बिना कुछ किए-धरे हर साल सैकड़ों करोड़ रुपये आढ़तियों-बिचौलियों की जेब में पहुंच जाते थे। राजनीतिक दलों से जुड़े इन आढ़तियों-बिचौलियों ने पंजाब में एक सशक्त लॉबी बना रखी है, जिन्हें नजरअंदाज करने का साहस कोई राजनीतिक दल या सरकार नहीं उठाती थी।
गेहूं खरीद की अदायगी सीधे किसानों के बैंक खातों में पहुंची
इस साल शुरू में ही केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि गेहूं खरीद की अदायगी सीधे किसानों के बैंक खातों में की जाएगी। इस फैसले से आढ़तियों-बिचौलियों की लॉबी में हलचल मच गई। उन्होंने पंजाब सरकार पर दबाव बनाया कि वह केंद्र के इस फैसले को न माने, लेकिन केंद्र सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए स्पष्ट कर दिया कि यदि किसानों को सीधे भुगतान की अनुमति नहीं दी गई तो सरकार पंजाब से गेहूं खरीद नहीं करेगी। इसके बाद ही पंजाब सरकार किसानों के बैंक खातों में सीधे अदायगी पर तैयार हुई। उपज के सीधे भुगतान में एक समस्या यह पैदा हो रही है कि उत्पादन से जुड़े ऐसे किसान छूटे जा रहे हैं, जो भूमिहीन हैं। इस समस्या का समाधान सरकार ओडिशा की तर्ज पर निकालने पर विचार कर रही है, जहां सभी किसानों का डाटाबेस है। पंजाब में अगले छह माह में भूमिहीन किसान और ठेके पर खेती करने वाले किसानों का रिकॉर्ड बन जाएगा।
पंजाब की तरह 1980 के दशक में एमपी में अनाज की सीधी खरीद शुरू हुई थी
पंजाब की तरह 1980 के दशक में मध्य प्रदेश में सभी प्रमुख मंडियों से आढ़तियों के वर्चस्व का खात्मा करते हुए अनाज, तिलहन, दाल की सीधी खरीद शुरू हुई थी। पंजाब की तरह मध्य प्रदेश में भी सरकार के फैसले का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ, लेकिन आगे चलकर किसान सीधे सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एजेंसियों को अपनी उपज बेचने लगे। 2008 में मध्य प्रदेश सरकार ने गेहूं की खरीद नीति को विकेंद्रित किया, जिससे निजी क्षेत्र के बड़े खरीदार एमएसपी से भी अधिक कीमत पर गेहूं खरीदने लगे जैसे आइटीसी ई-चौपाल।
विकेंद्रित खरीद नीति में सरकार के समानांतर निजी क्षेत्र की भी मौजूदगी रहेगी
मोदी सरकार सूचना प्रौद्योगिकी आधारित ऐसी विकेंद्रित खरीद नीति लागू कर रही है, जो क्षेत्र विशेष और फसल विशेष तक सीमित न होकर समूचे देश में लागू हो। इससे न केवल गेहूं-चावल के पहाड़ से मुक्ति मिलेगी, बल्कि तिलहनी, दलहनी, मोटे अनाजों, बागवानी और औषधीय महत्व वाली खेती को बढ़ावा मिलेगा। इस खरीद नीति में सरकार के समानांतर निजी क्षेत्र की भी मौजूदगी रहेगी ताकि कीमतों के प्रतिस्पर्धी होने से उसका अधिकाधिक लाभ किसानों को मिले। इसी नीति का नतीजा है कि इस साल तुअर, मूंग और सरसों की कीमतें पिछले साल के मुकाबले 35 से 75 प्रतिशत तक उछल चुकी हैं। पिछले साल औसतन 4400 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाली सरसों इस साल 7500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रही है।
मोदी सरकार की बिचौलिया मुक्त व्यवस्था लागू
मोदी सरकार का लक्ष्य हर स्तर पर बिचौलिया मुक्त व्यवस्था लागू करने की है। इसके लिए सरकार देश भर के किसानों का डिजिटल रिकॉर्ड बना रही है। इसके साथ-साथ मंडी व्यवस्था का आधुनिकीकरण किया जा रहा है, ताकि किसान देश भर में ई-नाम के जरिये अपनी उपज बेच सकें। इतना ही नहीं सरकार शीघ्र नष्ट होने वाले कृषि उत्पादों के वातानुकूलित परिवहन की व्यवस्था कर रही है जैसे किसान रेल, किसान उड़ान, कोल्ड चेन, कोल्ड स्टोरेज। मोदी सरकार की यही कवायद बिचौलियों और उन्हें संरक्षण देने वाले राजनीतिक दलों की नींद हराम किए हुए है। इसीलिए वे सरकार के खिलाफ मिथ्या प्रचार करने में जुटे हैं।
( लेखक कृषि मामलों के जानकार एवं केंद्रीय सचिवालय सेवा के अधिकारी हैं )