फर्जी आज़ादी…लीज़ पर आज़ादी..ऐसा ज्ञान मिलता कहां है?

कंगना रनौत कहती हैं कि 1947 में आज़ादी भीख में मिली थी

Update: 2021-11-13 09:15 GMT

अंकुर झा.

कंगना रनौत कहती हैं कि 1947 में आज़ादी भीख में मिली थी. असली आज़ादी 2014 में मिली. रूचि पाठक दावा करती हैं कि 1947 में लीज़ पर आज़ादी मिली थी. और ये दोनों कैमरों पर देश के दो बड़े जहीन पत्रकारों के सामने बोल रही थीं. दोनों उस आज़ादी को लेकर दावा कर रही थीं जिसके लिए 90 बरस तक अखंड हिंदुस्तान लड़ता रहा. हजारों लोगों ने कुर्बानी दी. लाखों लोगों ने जेल की सजा काटी. प्रताड़ना सही. इसलिए कंगना और रूचि के आज़ादी को लेकर दावों पर जितनी हंसी आती है, उससे ज्यादा मन कोफ्त होता है. क्योंकि दोनों युवा हैं. कैमरों पर बोलती हैं. और दोनों को देश सुनता है.


एक देश की मशहूर अभिनेत्री हैं. दूसरी सत्ताधारी पार्टी की नेत्री हैं. कंगना रनौत को 4 बार नेशनल अवॉर्ड मिल चुका है. 34 बरस की कंगना जानी-पहचानी एक्ट्रेस हैं. पद्म श्री से सम्मानित हैं. रानी लक्ष्मीबाई पर फिल्म कर चुकी हैं. इसके बावजूद उन्होंने देश की आज़ादी पर इतनी सस्ती बात कही है, जो कोई नहीं सुनना चाहेगा. जबकि कंगना रनौत जानती हैं कि वो रोल मॉडल हैं कई लोगों की. वहीं रूचि पाठक तो बीजेपी की यूथ विंग की प्रवक्ता हैं. पढ़ी लिखी हैं. फिर भी मूर्ख की तरह तर्क दे रही हैं. वो भी देश की अखंड स्वतंत्रता पर.
इस तरह की सोच आती कहां से है?
देश की आज़ादी को लेकर दो हफ्ते में दो युवाओं ने ये दो आपत्तिजनक बातें सरेआम कही हैं. लेकिन बहुतेरे हैं जो बात-बात में गांधीजी पर सवाल उठाते हैं. पंडित नेहरू की निष्ठा पर शक करते हैं. कुछ लोग वीर सावरकर की देश के प्रति श्रद्धा पर संदेह करते हैं. सवाल उठता है कि लोगों में ऐसी सोच बन कैसे रही है? हो सकता है कि गांधीजी या नेहरू या फिर सावरकर के कुछ फैसले सैद्धांतिक तौर पर गलत हों, लेकिन आज़ादी को लेकर ऐसे सवाल किसी के मन में कैसे आ सकता है? जिसके लिए 90 साल तक हमारे पुरखों ने लड़ाई लड़ी, उस आज़ादी के लिए ऐसी सोच कहां से आती है?

वो भी तब जबकि जिस बीजेपी की छात्र नेता रूचि पाठक को लगता है कि स्वतंत्रता लीज़ पर मिली है, उसी बीजेपी की सरकार आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रही है. जिस कंगना रनौत को लगता है कि असली आज़ादी नरेंद्र मोदी के देश की सत्ता में आने के बाद मिली है, वही प्रधानमंत्री आज़ादी के अमृतमोहत्सव की शुरूआत उसी दिन करते हैं जिस दिन गांधी जी ने नमक सत्याग्रह शुरू किया था. 15 अगस्त, 2022 को देश की आजादी के 75 साल पूरे होने जा रहे हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए 75वीं वर्षगांठ से एक साल पहले यानि 15 अगस्त 2021 से अमृत महोत्सव की शुरूआत हुई है. ऐसा भव्य कार्यक्रम कांग्रेस के शासनकाल में भी शायद नहीं हुआ.

व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी का ज्ञान खतरनाक होता है
इसीलिए सवाल उठता है कि कंगना रनौत और रूचि पाठक सरीखे लोगों को आज़ादी पर फर्जी ज्ञान कहां से मिलता है? बिना हिचकिचाहट क्यों और कैसे इस तरह के विवादित बात बोलते हैं? इतना आत्मविश्वास इन्हें कहां से मिलता है? जाहिर है कि फर्जी बातें करने वाले लोग सोशल मीडिया से दीक्षित होते हैं. जिन्हें बोलचाल की भाषा में व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी कहते हैं. क्योंकि ये सब जानते हैं कि व्हाट्सएप्प पर मैसेज गढ़े जाते हैं. अपनी-अपनी विचारधारा के मुताबिक कहीं से ईंट और कहीं से रोड़ी को लेकर जोड़ते हैं. और उसे धाराप्रवाह प्रसारित करते हैं. ज्यादातर लोग इसी तरह के मैसेज से प्रभावित होते हैं. अति आत्मविश्वास के साथ बहस करते हैं. कंगना रनौत और रूचि पाठक सरीखे लोग बहस करते हैं. ट्विटर पर ट्रोल होने के बाद रूचि पाठक ने तो ये बकायदा स्वीकार भी किया कि सोशल मीडिया पर मिली जानकारी के बाद उन्होंने फर्जी आज़ादी का दावा किया था. रूचि पाठक ने सफाई देते हुए कहा कि 'हमने कुछ ब्लॉग और राजीव दीक्षित के बयान के आधार पर यह बात कही है'.

बीजेपी ने न तो रूचि पाठक के बयान का बचाव किया था न ही कंगना रनौत की बेतुकी बातों का समर्थन किया है. कंगना के बयान पर बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने तो बकायदा यहां तक पूछा कि इस सोच को मैं पागलपन कहूं या फिर देशद्रोह? कांग्रेस और NCP वाले कंगना रनौत से पद्म श्री छीनने की मांग कर रहे हैं. देशभर में कंगना रनौत के खिलाफ प्रदर्शन भी हुआ. जयपुर और जोधपुर में केस भी दर्ज किये गये हैं. उनकी गिरफ्तारी की भी मांग की जा रही है.

इससे पहले भी कई बार कंगना ने ऊल जलूल बयान दिया है
हालांकि ये कोई पहली बार नहीं है जब कंगना रनौत बोलते-बोलते आउट ऑफ कंट्रोल हुई हैं. इससे पहले वो किसानों को आंतकी बता चुकी हैं. फिल्म इंडस्ट्री के कुछ लोगों के देशद्रोही बता चुकी हैं. महाराष्ट्र की तुलना पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से की थी. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ तू-तड़ाक का इस्तेमाल किया था. और तो और पंडित नेहरू को कम बुद्धि वाला आदमी तक बता दिया था. लेकिन इस बार तो सीधे सवाल देश की स्वतंत्रता पर है.जाहिर है कि कंगना हों या रूचि पाठक या फिर दूसरा शख्स. जो भी तथ्यात्मक मुद्दों पर बोलता है या फिर बहस करता है, उसे ज्यादा से ज्यादा किताबें पढ़नी चाहिए. बुद्धिजीवियों से बातें करनी चाहिए. क्योंकि तर्कपूर्ण और सच्चा ज्ञान वहीं मिलता है. सोशल मीडिया पर मनमुताबिक जानकारी तो मिलती है, मगर ज्यादातर फर्जी होती है. और ऐसी फर्जी जानकारी आज़ादी पर सवाल खड़े करती है.


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