संवेदनहीनता की हद

मानवीय सवालों के प्रति संवेदनशील बनाने की खातिर अलग से प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने की जरूरत है!

Update: 2022-05-13 02:30 GMT

मध्यप्रदेश में भूख से तड़पते एक बच्चे के साथ एक पुलिसकर्मी ने जो किया, वह एकबारगी अविश्वसनीय घटना लगती है। मगर इससे संबंधित जो ब्योरा सामने आया, उसने हर संवेदनशील व्यक्ति को दहला दिया होगा। चार मई को दतिया जिले में छह साल का एक मासूम अपने पिता की दुकान से घर के लिए निकला, लेकिन रास्ता भटक गया और दूसरी जगह पहुंच गया। काफी देर हो जाने के बाद जब उसे भूख लगी तो एक जगह ड्यूटी पर तैनात हवलदार से उसने कुछ पैसे मांगे।

कायदे से उस पुलिसकर्मी को बच्चे से उसकी मुश्किल के बारे में अपनी ओर से पूछ कर मदद करनी चाहिए थी, उसे उसके घर पहुंचाना चाहिए था। यह न केवल मानवीय तकाजा था, बल्कि पुलिस महकमे में होने के नाते उसकी जिम्मेदारी भी थी। मगर इसके उलट हवलदार ने गला दबा कर बच्चे की हत्या कर दी और शव को ठिकाने लगाने ग्वालियर ले गया। सीसीटीवी में इस घटना के कैद होने की वजह से वह पुलिसकर्मी पकड़ में आ सका, वरना उसने मामले पर पर्दा डालने के लिए अपनी ओर से हर संभव कोशिश की।
घटना सामने के बाद आरोपी पुलिसकर्मी को गिरफ्तार कर उसे तुरंत बर्खास्त करने की कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ाई गई। लेकिन यह वाकया हमारे आसपास पल रही अमानवीयता के कई तकलीफदेह स्तरों को दर्शाता है। किसी भटके हुए मदद मांग रहे बच्चे के प्रति कोई भी व्यक्ति इतना संवेदनहीन कैसे हो सकता है? कई बार अपराधियों के भीतर भी मानवीय व्यवहारों के उदाहरण को अपवाद के रूप में पेश किया जाता है, लेकिन किसी आम इंसान के भीतर इस तरह की बर्बरता की कल्पना भी नहीं की जाती है।
ऐेसे तमाम मामले देखे जाते हैं जब कोई व्यक्ति अगर किसी की मदद नहीं करना चाहता है तो वह बहाना बना कर टाल देता है, अलग हट जाता है या सीधे शब्दों में मना कर देता है। यह उसकी संवेदना या परिस्थितियों के प्रति उसकी मानसिकता पर निर्भर करता है। लेकिन दतिया जिले की घटना में किसी औसत और सीमित समझ वाले व्यक्ति से इतर हवलदार के पद पर काम करने वाले व्यक्ति का संदर्भ है। कोई पुलिसकर्मी किसी बच्चे के पैसा मांगने से इतना परेशान कैसे हो जा सकता है कि वह गला दबा कर उसे मार डाले!
इंसाफ की आस में पुलिस के पास पहुंचने वाले कमजोर तबकों के लोगों के प्रति उपेक्षा से भरे और यहां तक कि अमानवीय बर्ताव करने के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। 'जरूरतमंदों की सहायता और सुरक्षा' के नारे के साथ काम का दावा करने वाली पुलिस की छवि पर ऐसी घटनाएं एक सवाल की तरह होती हैं। एक सभ्य समाज में सामान्य और आदर्श स्थिति यह होनी चाहिए कि मुश्किल स्थिति बता कर मदद मांगने वाले किसी व्यक्ति की वास्तविक स्थिति को समझ कर उसकी सहायता करने की मानसिकता आम हो।
हमारे देश में और दुनिया में कमोबेश यह सोच हर जगह एक बेहतर मानवीय मूल्य के तौर पर स्वीकार की जाती है। ज्यादातर लोग ऐसा करते भी हैं। लेकिन पुलिस महकमे से जुड़े व्यक्ति को तो इस तरह की मदद अपना दायित्व समझ कर करनी चाहिए! इस लिहाज से देखें तो इस घटना में आरोपी हवलदार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई जरूर की गई है, जिसमें घटना को अपराध की नजर देखा गया होगा। लेकिन समूचे पुलिस महकमे के लिए यह सोचने का मौका है कि क्या इस सेवा का चुनाव करने वाले सभी लोगों के लिए मानवीय सवालों के प्रति संवेदनशील बनाने की खातिर अलग से प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने की जरूरत है!

सोर्स : jansatta news 

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