जी-20 से उम्मीदः आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन पर चर्चा
आईएसआई के चंगुल से मुक्त होते देखते।
19 देशों और यूरोप का एक अंतरसरकारी समूह जी-20 का जन्म कई वित्तीय संकटों की शृंखला मैक्सिकन पेसो संकट, 1997 के एशियाई वित्तीय संकट, 1998 के रूसी वित्तीय संकट और अमेरिकी हेज फंड-लार्ज कैपिटल मैनेजमेंट के पतन के बाद आर्थिक संकटों से बचने के लिए वैश्विक वित्तीय प्रणाली को स्थिर करने और सुधारने के लिए हुआ था। यह जी-7 के इस एहसास को दर्शाता है कि वे आर्थि क प्रभाव वाले कुछ मध्यम आय वाले देशों को शामिल किए बिना ऐसी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते। माना जाता है कि इसकी परिकल्पना पूर्व अमेरिकी विदेशमंत्री लैरी समर्स और पूर्व कनाडाई वित्तमंत्री पॉल मार्टिन ने की थी। जर्मनी के पूर्व वित्तमंत्री हैंस आइचेल भी, जिन्होंने दिसंबर, 1999 में वित्त मंत्री स्तर के जी-20 के उद्घाटन बैठक की मेजबानी की थी, इसके वास्तुकारों में एक थे।
जी-20 वैश्विक जीडीपी के 85 फीसदी, वैश्विक व्यापार के 75 फीसदी और वैश्विक जनसंख्या के 60 फीसदी का प्रतिनिधित्व करता है। पिछले कुछ वर्षों में इसके विचार-विमर्श के एजेंडे का विस्तार हुआ है; वैश्विक वित्तीय प्रणाली और आर्थिक विकास के अलावा अब यह जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, बुनियादी ढांचे, निवेश, ऊर्जा, रोजगार, भ्रष्टाचार, कृषि, नवाचार आदि मुद्दों को संबोधित करता है। हालांकि द्विपक्षीय विवाद और आंतरिक राजनीतिक घटनाक्रम गैर-सरकारी क्षेत्र हैं, लेकिन भाग लेने वाले नेता ऐसे मुद्दों पर ध्यान देते हैं। यह अकल्पनीय है कि कल बाली में शुरू हो रहे शिखर सम्मेलन में यूक्रेन संकट का उल्लेख नहीं होगा।
भारत तब इसकी अध्यक्षता कर रहा है, जब 'दुनिया सदी में एक बार होने वाली महामारी, संघर्षों और बहुत सारी आर्थिक अनिश्चितता के विघटनकारी प्रभावों से गुजर रही है।' जी-20 शिखर सम्मेलन का लोगो लॉन्च करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'जी-20 लोगो में कमल का प्रतीक अभी आशा का प्रतिनिधित्व करता है। परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों, कमल फिर भी खिलता है। यहां तक कि अगर दुनिया गहरे संकट में है, तब भी हम प्रगति कर सकते हैं और दुनिया को एक बेहतर जगह बना सकते हैं।' वह भारत की सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत की ओर ध्यान दिलाते हुए उम्मीद और सकारात्मकता की एक कहानी गढ़ रहे थे। 'भारतीय संस्कृति में ज्ञान और समृद्धि, दोनों की देवी कमल पर विराजमान हैं। यह वही है, जिसकी दुनिया को आज सबसे ज्यादा आवश्यकता है- दुनिया को आज सबसे अधिक साझा ज्ञान की आवश्यकता है, जो हमें हमारी परिस्थितियों से उबरने में मदद करता है, और साझा समृद्धि, जो मील के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचता है।
मोदी ने आगे विस्तार से कहा, 'कमल की सात पंखुड़ियां विश्व के सात महाद्वीपों और संगीत के सात स्वरों का प्रतिनिधित्व करती हैं।' प्रधानमंत्री की टिप्पणी उदात्त आदर्शवाद और विश्व में जी-20 की भूमिका के बारे में प्रेरक दृष्टि व्यक्त करती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत की सदियों पुरानी अवधारणा : वसुधैव कुटुम्बकम दुनिया के प्रति भारत की करुणा को दर्शाती है और कमल भारत की सांस्कृतिक विरासत और दुनिया को एक साथ लाने में भारत की आस्था को दर्शाता है। इसलिए भले ही सरकार के आलोचक यह आरोप लगाएं कि यह दुनिया में भाजपा को बढ़ावा देने का एक सूक्ष्म तरीका था, पर दुनिया को एक साथ लाने के बारे में प्रधानमंत्री के शब्दों का सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। 'एक सूर्य, एक विश्व और एक ग्रिड' जैसी भारत की पहल और शिखर सम्मेलन के लिए उसकी थीम : 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने आशा व्यक्त की है कि जी-20 वैश्विक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगा। यह दुनिया को सद्भाव के लिए एकजुट करेगा। कोई भी समझदार व्यक्ति ऐसी नेक इच्छाओं की जरूरत पर विवाद नहीं करेगा। आइए, प्रार्थना करें कि ये इच्छाएं पूरी हों!
हालांकि, कुछ हद तक यथार्थवाद और सावधानी बरती जाएगी। जी-20 में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका और दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन के संबंध तनावपूर्ण हैं, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर मतभेद हैं और दोनों वैश्विक प्रभुत्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। विवाद का एक प्रमुख कारण ताइवान रहा है; अमेरिकी कांग्रेस के अध्यक्ष, नैन्सी पेलोसी और अन्य अमेरिकी सांसदों के ताइवान दौरे ने तनाव को बढ़ा दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन, जिन्होंने चीन और रूस को अमेरिका का रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी कहा है, चीन को मात देना चाहते हैं और गंभीर प्रतिबंधों के साथ रूसी अर्थव्यवस्था को पंगु बनाना चाहते हैं। यूक्रेन अकेला ऐसा मुद्दा नहीं है, जिस पर वह सहमत नहीं हैं; जी-20 के अधिकांश सदस्यों का मानना है कि खाद्यान्न, उर्वरक, तेल और गैस की मौजूदा कमी और कीमतों एवं मुद्रास्फीति में भारी वृद्धि के लिए यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत की चीन के साथ अपनी समस्याएं हैं, जिसमें गलवान घाटी में चीनी आक्रामकता और पाकिस्तान को समर्थन शामिल है।
अमेरिका यूरोपीय संघ, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे अन्य सहयोगियों पर चीन के हुआवे 5जी का बहिष्कार करने और चीन को सेमी कंडक्टरों की आपूर्ति बाधित करने का दबाव बना रहा है। दुनिया को एक साथ लाने की बात कहना आसान है, पर ऐसा होना मुश्किल। सतत विकास पर मोदी का जोर और यह विश्वास, कि विकास और पर्यावरण एक साथ चल सकते हैं, गलत नहीं हो सकता, हालांकि हालांकि शर्म अल-शेख में सीओपी-27 में नुकसान और क्षति तथा अनुकूलन के लिए धन आवंटन के मुद्दों पर बहस चल रही है। इसी तरह मोदी के इस दावे में बहुत दम है कि लोकतंत्र की संस्कृति बनने पर संघर्ष की गुंजाइश खत्म हो सकती है। लेकिन क्या लोकतंत्र को बाहर से रोपा जा सकता है? यदि ऐसा होता, तो हम इराक, अफगानिस्तान, लीबिया, सीरिया में लोकतंत्र को फलते-फूलते और पाकिस्तानी समाज को उनकी सेना और आईएसआई के चंगुल से मुक्त होते देखते।
सोर्स: अमर उजाला