आकलन : मौसम की भट्ठी में भुनते शहर, वैश्विक जलवायु में बदलाव से मानसून की टूटती आस

एसी की संख्या में कमी आदि ऐसे प्रयास हैं, जो गर्मी की तीव्रता को कम करने में मददगार हो सकते हैं।

Update: 2022-06-07 01:43 GMT

गर्मी के मौसम में शहर गर्म तो होते हैं, परंतु पिछले कुछ वर्षों में आकलन किया गया है कि वे ज्यादा गर्म होकर भट्ठी के समान तपते जा रहे हैं। पिछले 10-12 वर्षों में विश्व के प्रदूषित शहरों में हमारे देश के शहरों को संख्या सर्वाधिक रही, परंतु अब विश्व के गर्म शहरों में भी हमारे देश के शहरों की संख्या बढ़ती जा रही है। वर्ष 2019 के जून के प्रथम सप्ताह में विश्व के 15 सर्वाधिक गर्म शहरों में 10 हमारे देश के थे। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, इस वर्ष शीतकाल के बाद मार्च में ही गर्म हवाएं चलनी शुरू हो गई थीं एवं वसंत का एहसास ही नहीं हो पाया था।


मई के मध्य में (15 मई के आसपास) विश्व के 15 सबसे गर्म शहरों में 12 हमारे देश के थे एवं उत्तर प्रदेश के बांदा में तापमान 41 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया था। मौसम वैज्ञानिकों एवं पर्यावरणविदों के अनुसार, वर्ष 2021-22 में वातावरण की कुछ असामान्य घटनाओं के कारण भी तापमान बढ़ा, जैसे-लंबे समय तक शुष्क मौसम बने रहना, कई क्षेत्रों में वर्षा की कमी, शीतकाल की वर्षा (मावठा) में गड़बड़ी एवं मार्च, 22 में उच्च दबाव का क्षेत्र बनकर अप्रैल तक यथावत रहना आदि।

शहरों के भट्ठी के समान तपने के वैश्विक जलवायु बदलाव, ग्लोबल वार्मिंग, 'अलनीनो प्रभाव' से ज्यादा स्थानीय कारण जिम्मेदार बताए गए हैं। इन कारणों में पक्के निर्माण कार्य (मकान, सड़क, फुटपाथ, बाजार, डिवाइडर आदि), हरियाली में कमी- विशेषकर पेड़ों की संख्या, नम-भूमि (वेटलेंड्स) एवं जलस्रोतों की कमी या समाप्ति, वाहनों की बढ़ती संख्या, वातानुकूलन (एअरकंडीशनर) का बढ़ता प्रचलन, वायु-प्रदूषण एवं आग लगने की बढ़ती घटनाएं आदि प्रमुख हैं। विभिन्न निर्माण कार्यों से पेड़ों की संख्या घटती जा रही है।
इसी वर्ष मार्च में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने लोकसभा में बताया था कि देश में वर्ष 2021-22 में विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण हेतु 31 लाख पेड़ काट गए हैं। देश के सबसे साफ शहर इंदौर में नौ लाख पेड़ों का 'नौलखा-क्षेत्र' भी अब नाम का ही रह गया है। 'सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट' (वाशिंगटन डीसी) ने पांच वर्ष पूर्व अपने एक अध्ययन के आधार पर बताया था कि ज्यादातर शहरों में निर्माण कार्य 20 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं एवं हरियाली औसतन दो प्रतिशत पर सिमट गई है।
पक्के निर्माण कार्यों से भूजल की मात्रा में भी कमी आई है। आजादी के समय देश में 24 लाख तालाब-जोहड़ थे, जिनकी संख्या सन 2000 तक घटकर पांच लाख के करीब रह गई थी। भूजल के अधिक गहराई पर जाने एवं सतही जलस्रोतों की कमी से मिट्टी में नमी कम होने लगती है एवं धरती की सतह का तापमान बढ़ने लगता है। पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों की बढ़ती संख्या एवं उनके गर्म इंजन से पैदा गर्मी भी शहरों के तापमान को बढ़ाने में भारी योगदान देती है।
गर्मी से निपटने हेतु लगाए जाने वाले वातानुकूलक (एअर-कंडीशनर) का बढ़ता चलन घर को ठंडा रखने के बदले में बाहर गर्म हवा छोड़ते हैं, जिससे तापमान में वृद्धि होती है। ज्यादा संख्या में एसी के उपयोग से फीनिक्स शहर के रात के तापमान में लगभग एक डिग्री वृद्धि का आकलन किया गया है। ब्रिटिश मौसम विभाग ने हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि जलवायु बदलाव के प्रभाव से उत्तर एवं पश्चिमी भारत में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ेगी एवं ज्यादातर शहरों के तापमान गर्मी के मौसम में 40 से 50 डिग्री के आसपास बने रहेंगे।
शहरों के बढ़ते तापमान की रोकथाम हेतु सबसे ज्यादा आवश्यक है कि वहां की भौगोलिक स्थिति, मौसम एवं वायु-प्रवाह का ठीक तरह से नियोजन किया जाए। साथ ही मकानों की छत पर सफेदी, हरियाली संरक्षण एवं विस्तार, जलस्रोतों की सुरक्षा, सतह के पक्कीकरण में कमी, वर्षा जल संचय, वाहनों एवं एसी की संख्या में कमी आदि ऐसे प्रयास हैं, जो गर्मी की तीव्रता को कम करने में मददगार हो सकते हैं।

सोर्स: अमर उजाला 

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