समानता की पैरोकार: कमाल की कमला भसीन
कमला भसीन का 25 सितंबर को निधन हो गया, पर वह अपने व्यक्तित्व और अपने समाज के लिए योगदान के माध्यम से हमेशा हमारे बीच रहेंगी। (सप्रेस)
वह कहती थीं- 'सिर्फ महिलाओं के संसद में आने से चीजें बेहतर नही होंगी। मैं चाहती हूं कि अधिक नारीवादी महिलाएं संसद में पहुंचें। जब नारीवादी महिला स्त्री-पुरुष समानता की बात करेंगी, तो वे महिला कास्ट (जाति) के चक्कर में पीछे नहीं हटेंगी। मैं नारीवादी महिला ही नहीं, मैं नारीवादी पुरुष भी चाहती हूं, क्योंकि यह सोच, कोई जिस्मानी सोच नहीं है। नारीवाद से हमारा मतलब है-समानता और सिर्फ समानता।'
देखा जाए तो स्त्री-पुरुष समानता के लिए जो संघर्ष लगभग चार दशक पहले उन्होंने शुरू किया था, वह आज पर्याप्त विस्तार पा चुका है। उनका जन्म 1946 में मंडी बहाउ्दीन (पाकिस्तान) में हुआ था। वह अपने आपको पूरे दक्षिण-एशिया का नागरिक मानती थीं। यह बात और है कि वह आधिकारिक तौर पर भारत की नागरिक थीं। वह 75 साल की हो चुकी थीं, पर मैंने हमेशा उन्हें उत्साह और ऊर्जा से भरी एक 25 साल की युवती की तरह ही देखा। इस उम्र में भी काम करने की उनकी सक्रियता प्रेरणास्पद थी। इतनी उम्र के होने के बावजूद वह दिन में लगभग 16-18 घंटे सक्रिय रहतीं थीं। व्यक्ति की सकारात्मकता और दृढ़ लक्ष्य के लिए प्रतिबद्धता उसे सदैव गतिशील और ऊर्जावान बनाए रखती है, और वह इसका जीता जागता उदाहरण थीं।
मैं उन्हें तब से जानता था, जब वर्ष 2009-10 में मैंने चंबल क्षेत्र में लैंगिक समानता विषय पर काम करना शुरू किया था। इस विषय पर लिखना-पढ़ना अलग मसला है और चंबल जैसे स्त्री विरोधी इलाके में काम करना अलग बात है। यहां आपको एक व्यावहारिक दृष्टिकोण की जरूरत होती है। नारीवाद का यह व्यावहारिक दृष्टिकोण मुझे कमला दी (कमला भसीन) से ही मिला। कमला दी की लिखी, 'जागोरी' द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तिकाओं से ही मैंने जेंडर (स्त्री विमर्श) की अपनी समझ विकसित की। फिर मैंने सत्यमेव जयते में आमिर खान से बात करते हुए उन्हें देखा। दिल्ली और भोपाल के कुछ कार्यक्रमों में उन्हें सुना।
नारीवाद पर तमाम किताबों को पढ़ते हुए हमेशा लगता था कि जितने सरल ढंग से कमला दी नारीवाद की व्याख्या करती हैं, कोई दूसरा नहीं कर पाता। उनका कहना था कि जब तक आप पितृसत्ता, मर्दानगी और स्त्री-पुरुष की बराबरी संबंधी पारंपरिक और रूढि़वादी धारणाओं को नहीं समझेंगे, आप स्त्री-पुरुष की असमानता को समाप्त नहीं कर सकते। उनके विचार, गीत, चुटकुले और साथियों के बीच विशिष्ट पहचान रखने वाली उनकी हंसी सभी स्त्री-पुरुष की बराबरी के अस्त्र थे।
वह अपने जीवन की तमाम दुश्वारियों के बावजूद हमेशा हंसती रहती थीं। उनका कहना था कि स्त्री-पुरुष समानता की लड़ाई बहुत लंबी चलने वाली है। हम इसे दुःखी रहकर और गुस्से या नाराजी के साथ नहीं लड़ सकते, यह लड़ाई हंसते-मुस्कुराते हुए ही लड़ी जा सकती है। धर्मशाला (हिमाचल) में बना 'जागोरी' का प्रशिक्षण-केंद्र हर साल मई-जून के महीनों में जेंडर समानता की समझ विकसित करने के लिए पंद्रह दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित करता है। जिसका दारोमदार मुख्यतः कमला दी और उनकी सहयोगी आभा भैया पर ही रहता है।
कमला भसीन का कहना था कि पितृसत्ता ने पुरुषों को इस तरह से प्रशिक्षित किया है कि उन्हें सत्ता के चक्कर में इसके लाभ तो नजर आते हैं, परंतु इससे होने वाले नुकसान नजर नहीं आते। सत्ता के अहंकार में पुरुष अपने परिवारों में आत्मीय व्यवहार नहीं कर पाता और वह अपने परिवार में स्त्री और बच्चों के प्रेम और अपनेपन से वंचित हो जाता है। जो पुरुष, स्त्री पर हिंसा करता है वह सुखी कैसे रह सकता है? उसके अंदर बहुत कुछ अधूरा रह जाता है। उनका कहना था कि जिस परिवार में माता-पिता बराबरी के व्यवहार के साथ, एक-दूसरे का सम्मान करते हुए रहते हैं, उस परिवार के बच्चे भी यही भाव देखते और सीखते हैं। जिस परिवार में माता-पिता के बीच असमान व्यवहार, तनाव और हिंसा होती है, पिता रोज मां पर अत्याचार करता है उस परिवार के लड़के उसी तरह का व्यवहार सीखते हैं और लड़कियां हिंसा सहना सीखती हैं।
कमला दी ने लैंगिक समानता पर अनेक किताबें लिखीं, ढेरों गीत और लोकगीत लिखे। वह लैंगिक समानता के विषय को बहुत आसानी से समझाती थीं। पितृसत्ता, और महिलाओं पर होने वाली हिंसा जैसे विषयों पर लिखी उनकी पुस्तकें और गीत, लैंगिक समानता पर काम करने वाले देशभर के तमाम व्यक्तियों और संस्थाओं के लिये बेहद उपयोगी हैं। उनका एक गीत है:- 'सीना-पिरोना है धंधा पुराना, हमें दो ये दुनिया गर रफू है कराना।'
नाटक द वजाइना मोनोलॉग्स की लेखिका ईव एंस्लर द्वारा शुरू किए गए वैश्विक आंदोलन उमड़ते सौ करोड़ (वन बिलियन राइजिंग) की दक्षिण-एशिया में वे कर्ता-धर्ता थीं। गीत-संगीत और नृत्य के मिश्रण से बना उनका व्यक्तित्व इस विश्वव्यापी आंदोलन के लिए बहुत मुफीद था। 'संगत' और 'जागोरी' जैसे संगठनों के पीछे वह मुख्य प्रेरणास्रोत थीं। उनकी प्रेरणा से ही सावित्रीबाई फुले के जन्मदिन तीन जनवरी को प्रतिवर्ष 'भारतीय महिला दिवस' मनाने का निर्णय लिया गया है। निस्संदेह यह पहल भविष्य में बड़ा आंदोलन बनेगी। कमला भसीन का 25 सितंबर को निधन हो गया, पर वह अपने व्यक्तित्व और अपने समाज के लिए योगदान के माध्यम से हमेशा हमारे बीच रहेंगी। (सप्रेस)