रोजगार का संकट, 7 साल में सालाना सिर्फ 10 लाख नौकरियों के अवसर ही बन पाए

केंद्रीय श्रम मंत्रालय की ओर से इसी सप्ताह जारी तिमाही रोजगार सर्वे की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून 2021) में चुनिंदा नौ गैरकृषि क्षेत्रों में रोजगार 29 फीसदी बढ़कर 3.08 करोड़ हो गया।

Update: 2021-09-30 01:56 GMT

केंद्रीय श्रम मंत्रालय की ओर से इसी सप्ताह जारी तिमाही रोजगार सर्वे की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून 2021) में चुनिंदा नौ गैरकृषि क्षेत्रों में रोजगार 29 फीसदी बढ़कर 3.08 करोड़ हो गया। पहली नजर में प्रभावी लगने वाले इस आंकड़े की चमक थोड़ी कम तब पड़ती है, जब स्पष्ट होता है कि यह संख्या 2013-14 के आर्थिक सेंसस के दौरान दिए गए आंकड़ों की तुलना में है। तब रोजगार की संख्या 2.37 करोड़ दर्ज हुई थी। यानी अगर आंकड़ों द्वारा बताई जा रही सचाई पर गौर करें तो सटीक निष्कर्ष यह नहीं है कि रोजगार में 29 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। उपयुक्त निष्कर्ष यह होगा कि इन सात वर्षों के दौरान सालाना दस लाख रोजगार ही सृजित किए जा सके।

वैसे भी भारतीय अर्थव्यवस्था साल 2017-18 से ही स्लोडाउन का शिकार रही है। लगातार तीन सालों तक जीडीपी की रफ्तार कम होती रही और फिर पिछले साल की भयंकर गिरावट। ऐसे में स्वाभाविक ही मन में सवाल उठता है कि आखिर हमारे जॉब मार्केट का क्या हाल है। सरकारी रिपोर्ट से कुछ हद तक इसका जवाब मिलता है, लेकिन इसमें कई सारे गैप हैं। सो इस मांग आधारित अनुमान को केंद्र सरकार के हाउसहोल्ड सर्वे पर आधारित लेबर सप्लाई के अनुमान से मिलाते हैं और तब तस्वीर गैर कृषि रोजगार की किल्लत की उभरती है। पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) की सालाना और तिमाही दोनों रिपोर्टों से जॉब की क्वॉलिटी में गिरावट की पुष्टि होती है। हालांकि कायदे से डिमांड और सप्लाई साइड के अनुमानों की आपस में तुलना नहीं होनी चाहिए क्योंकि इनकी अवधि अलग-अलग हैं, लेकिन फिर भी इनसे यह अंदाजा मिल जाता है कि रोजगार के मोर्चे पर क्या सीन है।
पीएलएफएस की सालाना रिपोर्ट (जुलाई 2019 से जून 2020) दर्शाती है कि 2018 से रोजगार के पैटर्न में कृषि और अनौपचारिक क्षेत्रों की ओर झुकाव आया है। पीएलएफएस की तिमाही रिपोर्टों में सिर्फ शहरी ट्रेंड कवर किए जाते हैं। ताजा रिपोर्ट (अक्टूबर से दिसंबर 2020) इस बात की पुष्टि करती है कि निश्चित वेतन वाले जॉब में कमी आई है। अक्टूबर से दिसंबर 2020 की अवधि में सैलरीड जॉब 48.7 फीसदी दर्ज की गई, जो सख्त लॉकडाउन वाली अप्रैल से जून 2020 की अवधि के 52.7 फीसदी से कम थी। अक्टूबर से दिसंबर 2020 के बीच बेरोजगारी दर भी 10.3 फीसदी थी, जो 2019 की उसी अवधि (7.9 फीसदी) के मुकाबले कहीं ऊंची थी। इन सबसे स्पष्ट है कि भारत में रोजगार का संकट है। इसके मद्देनजर पहली जरूरत यह है कि सारे डेटा नियमित रूप से जारी किए जाएं। इनके बगैर नीतियां बनाना अंधेरे में तीर मारने जैसा हो जाता है। दूसरी बात यह कि हमें कहीं ज्यादा बड़े इंडस्ट्रियल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की जरूरत है। सरकार इस दूसरी बात को स्वीकार करती है। उसे पहली आवश्यकता को भी स्वीकार करना चाहिए।


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