बाइडेन की ताकत को ग्रहण

अमेरिका में हुए मध्यावधि चुनाव के परिणामों पर दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। इन चुनावों में परिणामों का असर 2024 में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनावों पर पड़ना तय है।

Update: 2022-11-11 03:39 GMT

आदित्य नारायण चोपड़ा: अमेरिका में हुए मध्यावधि चुनाव के परिणामों पर दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। इन चुनावों में परिणामों का असर 2024 में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनावों पर पड़ना तय है। मध्यावधि चुनावों को सत्तारूढ़ राष्ट्रपति जो बाइडेन और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच अग्नि परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है। इन चुनावों में अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा के सभी 435 सीटों और सीनेट की 35 सीटों के लिए हुए चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी बढ़त बनाती दिख रही है। रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदें इससे कहीं ज्यादा थीं। वे इस चुनाव में बड़े मुकाबले में जीत हासिल करना चाहते थे। लेकिन फिलहाल ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। रिपब्लिकन पार्टी को ऐसी कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ रहा है जिन्हें हारने की उम्मीदें नहीं थी। अब तक के नतीजों में साफ है कि इन चुनावों में डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी की भले ही कोई लहर नहीं है लेकिन ट्रम्प का साया साफ नजर आया। कुल मिलाकर अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को इन चुनावों से बड़ा झटका लगा है, क्योंकि उनकी डेमोक्रेट पार्टी ने अपनी पारम्परिक सीटें भी गवां दी हैं। प्रतिनिधि सभा में रिपब्लिकन पार्टी के बहुमत हासिल करने की उम्मीद है। बहुमत कितना भी हो रिपब्लिकन इस स्थिति में तो रहेंगे कि वे डेमोक्रेटिक पार्टी के लाए विधेयकों में रोड़ा अटका सकें और बाइडेन सरकार पर दबाव बना सकें।इसका अर्थ यही है कि बाइडेन के करीब दो साल के बचे हुए कार्यकाल में विधायिका की ताकत उनके सा​थ नहीं होगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि जो बाइडेन कमजोर राष्ट्रपति सिद्ध हुए हैं और उनकी लोकप्रियता काफी कम हुई है। इन चुनावों में सबसे बड़ा मुद्दा महंगाई का रहा। इसके अलावा इस साल में ही इमीग्रेशन, अपराध भी बड़े मुद्दे रहे। गर्भपात के अधिकार का मुद्दा भी इन चुनावों में छाया रहा। अमेरिका इस समय मंदी की ओर बढ़ रहा है। महंगाई के चलते लोगों का जीना मुश्किल हो रहा है। देशवासियों की आर्थिक मुश्किलों से जल्द राहत मिलने के भी कोई संकेत नजर नहीं आ रहे। यही कारण रहा कि रिपब्लिकन पार्टी ने ट्रम्पवाद को जोरशोर से अपनाया है।मध्यावधि चुनाव परिणामों के बाद डोनाल्ड ट्रम्प के 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी उम्मीदवारी का ऐलान किए जाने की संभावना जताई जा रही है। अगर ट्रम्प राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का ऐलान करते हैं तो यह अमेरिका ही नहीं दुनिया के बड़े लोकतांत्रिक देशों को देखा जाए तो ट्रम्प ऐसे नेता के रूप में सामने आए हैं, जिन्होंने चुनाव में पराजय का मुंह देखने के बाद भी हार नहीं मानी और वह सत्ता के लिए संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। ट्रम्प अगर 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में उतरने की घोषणा करते हैं तो उन्हें बहुत सावधानीपूर्वक कदम उठाने होंगे। अमेरिका के लोग महसूस करते हैं कि जो बाइडेन प्रशासन न तो यूक्रेन-रूस युद्ध मसले को हल कर सके हैं और न ही क्लाइमेट क्राइसिस पॉलिसि​स को लेकर कुछ ज्यादा कर सके हैं। अमेरिका में जो बाइडेन की ताकत पर ग्रहण लग चुका है। दूसरी तरफ ट्रम्प संपादकीय :मतदान को तैयार हिमाचलरुपये में विश्व व्यापार!दुर्लभ मूर्तियों की चोरी!भारत की ताकत का एहसासजयशंकर की रूस यात्राजय शंकर की रूस यात्राअपराधिक मामलों का सामना करने के बावजूद इन चुनावों में खुद को रिपब्लिकन नेता के तौर पर पेश करने में जुटे रहे। चुनावी लड़ाई के नतीजों से साफ है कि अमेरिका बहुत तेजी के साथ दो ध्रुवों में बंटता नजर आ रहा है। उम्रदराज बाइडेन की कार्यशैली को लेकर भी लोग सवाल उठा रहे हैं। ट्रम्प पर भी राष्ट्रपति भवन खाली करते समय कई गोपनीय फाइलें साथ ले जाने और 6 जनवरी 2020 को कैपिटल हिल पर हुए हमले के लिए लोगों को उकसाने के गंभीर आरोप हैं। ट्रम्प इन सब आरोपों से बेपरवाह दिखाई दिए और उन्होंने बेखौफ होकर इन चुनावों में अपनी भूमिका निभाई। मध्यावधि चुनावों में भारतवंशियों ने एक ​बार ​फिर अपना डंका बजाया। मूलरूप से हैदराबाद की रहने वाली अरुणा ​मिलर डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार के तौर पर मैरीलैंड राज्य की लेफ्टिनेंट गवर्नर बन गई हैं। भारतीय मूल की वंदना, नबीला और आयोवा असेंबली में मेगन श्रीनिवास भी चुनाव जीत गई है। इनके अलावा डेमोक्रेटिक भारतवंशी राजा कृष्णमूर्ति , रो खन्ना, प्रमिला जयपाल और श्री थानेदार भी चुनाव जीत गए हैं। इन मध्यावधि चुनावों का मायना स्पष्ट है।कांग्रेस पर किसका कंट्रोल होगा ये मिड टर्म इलेक्शन से तय होता है। जिस किसी का भी कांग्रेस पर नियंत्रण होता है, उसका अमेरिकी कानून पर भी इफेक्ट होता है। वह संघीय कानूनों को बनाने, बहस करने और पारित करने का प्रभारी होता है। मध्यावधि चुनाव आगामी दो सालों में राष्ट्रपति बाइडेन के एजेंडे के लिए दृष्टिकोण भी निर्धारित करेंगे। इसे जनमत संग्रह के तौर पर देखा जाता है। इतिहास से पता चलता है कि सत्ता में मौजूद पार्टी अक्सर हार जाती है। 1934 के बाद से केवल फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट, 1998 में बिल क्लिंटन और 2002 में जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने मध्यावधि में अपनी पार्टियों को सीटें हासिल करते देखा था। अमेरिका की सियासत क्या मोड़ लेती है, यह कहना मुश्किल है लेकिन रिपब्लिकन पार्टी में कुछ नेता ऐसे भी हैं जो अगले राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए इच्छुक हैं। अगर वे चुनाव लड़ना चाहते हैं तो उन्हें पहले सबसे कद्दावर रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रम्प से होकर गुजरना पड़ेगा।

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