इलेक्ट्रिक वाहनों को मिले बढ़ावा, बेलगाम बढ़ रहे प्रदूषण पर लगाम लगाने में होंगे मददगार

नार्वे ने एक अहम फैसला किया है

Update: 2021-09-21 03:59 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नार्वे ने एक अहम फैसला किया हैकि वर्ष 2025 के बाद वहां केवल और केवल इलेक्ट्रिक कारें ही चलेंगी। डेनमार्क और नीदरलैंड ने इसकी मियाद 2030 तय की है। इंग्लैंड ने इसके लिए 2035 की समय सीमा निर्धारित की है। अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया भी बिल्कुल इंग्लैंड के नक्शेकदम पर है। इन संकेतों से स्पष्ट है कि दुनिया भर में इलेक्ट्रिक कारों की ओर झुकाव बढ़ रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यही है कि इलेक्ट्रिक कार से प्रदूषण कम होता है। हालांकि, इसका एक दूसरा पहलू भी है। वह यह कि अमूमन शहरों में तो बिजली बनती नहीं, लेकिन जिन इलाकों में बिजली का उत्पादन होता है वहां के पर्यावरण पर जरूर इसका कुछ असर पड़ेगा। फिर भी इलेक्ट्रिक कार शहरों में बेलगाम बढ़ रहे प्रदूषण पर लगाम लगाने में मददगार होंगी। चूंकि कामकाजी आबादी का एक बड़ा वर्ग शहरों में ही रहता है तो पर्यावरण को मिलने वाले फायदे से समग्र अर्थव्यवस्था को लाभ मिलना बहुत स्वाभाविक है। इस हिसाब से देखा जाए तो इलेक्ट्रिक कारों से एक साथ कई फायदे मिल सकते हैं। खासतौर से भारत जैसे देश के लिए तो ये और भी उपयोगी होंगी, जो पेट्रो उत्पादों के लिए एक बड़ी हद तक आयात पर ही निर्भर है।

किसी भी उत्पाद की स्वीकार्यता एवं लोकप्रियता में उसकी कीमत एक अहम कारक होती है। इलेक्ट्रिक कारों के मामले में सुकून की बात यही है कि उसमें लगने वाली बैटरी के दाम घटने पर हैं। यही बैटरी इलेक्ट्रिक कार की लागत का एक बड़ा हिस्सा होती है। बैटरी के दाम घटने का असर इलेक्ट्रिक कार की कीमत पर भी दिख रहा है। विश्व आर्थिक मंच के एक अध्ययन के अनुसार, 2019 में पेट्रोल की कार का दाम 24 हजार डालर था जो 2021 में 25 हजार डालर हुआ और 2025 में उसके 26 हजार डालर होने का अनुमान है। इसके उलट इलेक्ट्रिक कार के दाम में कमी आई है। 2019 में इलेक्टिक कार का मूल्य 50 हजार डालर था जो 2021 में 39 हजार डालर रह गया और 2025 में पेट्रोल कार से भी सस्ता 18 हजार डालर होने का अनुमान है।

इसलिए आश्चर्य नहीं कि चीन में इस वर्ष की पहली तिमाही में पांच लाख इलेक्ट्रिक कारें बिकी हैं और यूरोप में साढ़े चार लाख कारों की बिक्री हो चुकी है। वहीं भारत में केवल 60,000 इलेक्ट्रिक कारें बिकने का अनुमान है। इस दौड़ में हम पीछे हैं वह भी तब जब इलेक्ट्रिक कारों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सब्सिडी दी जा रही है। ऐसी सब्सिडी से इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री में कुछ तेजी अवश्य आई है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। बेहतर होगा कि इलेक्ट्रिक कार पर सब्सिडी देने के बजाय पेट्रोल वाहनों पर टैक्स लगाने की दिशा में विचार किया जाना चाहिए। तभी देश में इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री में आशातीत बढ़ोतरी संभव हो सकेगी

बीते दिनों आस्ट्रेलिया में हुए एक अध्ययन के अनुसार, कई अर्थशास्त्रियों ने इलेक्ट्रिक कार को बढ़ावा देने का समर्थन किया। उनमें से 10 प्रतिशत ने सब्सिडी की जगह पेट्रोल वाहनों पर कार्बन टैक्स की वकालत की। इन दोनों तरीकों से पेट्रोल कार की तुलना में इलेक्ट्रिक कार सस्ती हो जाती है। अंतर इतना ही है कि इलेक्ट्रिक कार पर सब्सिडी देने से सरकार को खर्च करना पड़ेगा, जबकि पेट्रोल कार पर कार्बन टैक्स लगाने से सरकार को राजस्व मिलेगा। प्रश्न है कि जो कार्य आय अजिर्त करते हुए संभव है उसी कार्य को खर्च करके क्यों किया जाए? इसलिए पेट्रोल कार पर टैक्स लगाना उचित लगता है।

कुछ लोग दलील दे सकते हैं कि पेट्रोल कार पर टैक्स लगने से कार के दाम बढ़ेंगे, जिसका उपभोक्ता पर प्रभाव पड़ेगा। मैं ऐसा नहीं मानता। दरअसल, जब सरकार सब्सिडी देती है तो उसके लिए जनता से किसी न किसी रूप में कोई टैक्स वसूल करती ही है। प्रश्न यह है कि पेट्रोल पर टैक्स लगाकर जनता पर भार डाला जाए अथवा इलेक्टिक कार पर सब्सिडी देकर उसी जनता पर भार डाला जाए। फर्क यही है कि जब हम पेट्रोल कार पर टैक्स लगाएंगे तो उस विशेष उपभोक्ता पर ही प्रभाव पड़ेगा जो पेट्रोल कार खरीदता है। इसकी तुलना में जब हम इलेक्ट्रिक कार पर सब्सिडी देते हैं, तो आम जनता पर टैक्स का भार पड़ता है। इसलिए यही उचित प्रतीत होता है कि सरकार पेट्रोल कार पर टैक्स लगाए जिससे कि अधिक प्रदूषण फैलाने वालों पर सीधा भार पड़े और आम आदमी इसके बोझ से बचा रहे।

इलेक्ट्रिक कार को बढ़ावा देने के लिए एक और नीति में परिवर्तन जरूरी है। तमाम देशों में समय के अनुसार यानी सुबह, दोपहर और शाम को बिजली की अलग-अलग दरें निर्धारित होती हैं। जैसे मध्य रात्रि में बिजली का दाम दो रुपये प्रति यूनिट हो सकता है तो दिन में बढ़ी हुई मांग के दौरान आठ रुपये प्रति यूनिट। वहीं, किसी देश में दिन के दौरान सौर ऊर्जा से बिजली मिल रही हो, तो उसकी दर दो रुपये यूनिट हो सकती है, जबकि रात में उत्पादन की लागत बढ़ने पर आठ रुपये यूनिट। इसलिए आवश्यक है कि अपने देश में समयानुसार बिजली का मूल्य निर्धारित किया जाए। ऐसा करने से इलेक्ट्रिक कार वाले अपनी सुविधा के हिसाब से कार को चार्ज कर सकेंगे। इससे इलेक्ट्रिक कार और किफायती हो जाएंगी। वहीं बिजली की खपत का परिदृश्य भी सुधरेगा। स्पष्ट है कि सरकार अगर इलेक्ट्रिक कारों का चलन बढ़ाना चाहती है, तो उसे दो नीतिगत परिवर्तन करने होंगे। पहला यही कि इलेक्ट्रिक कार पर सब्सिडी देने के स्थान पर पेट्रोल कार पर टैक्स लगाए। दूसरा यह कि समय के अनुसार, बिजली की दरों को निर्धारित करे।

फिर भी हमें इस बात का संज्ञान लेना चाहिए कि इलेक्ट्रिक कार से प्रदूषण का सिर्फ स्थान परिवर्तित होता है। यह बिजली खपत वाले इलाकों से बिजली उत्पादक क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित होता है। यदि 100 पेट्रोल कारों के स्थान पर 500 इलेक्टिक कारें चलने लगीं तो प्रदूषण कम नहीं होगा। सिर्फ उसका स्थान बदल जाएगा। प्रदूषण को कम करने के लिए मनुष्य को पृथ्वी पर बोझ कम करना होगा। इसलिए सरकार को सार्वजनिक यातायात सुविधाओं में भी तेजी से सुधार करना चाहिए। जिस प्रकार तमाम शहरों में मेट्रो रेल चलाई जा रही है, उसी के समानांतर छोटे शहरों में बस की व्यवस्था को सुदृढ़ करें, तो लोगों की व्यक्तिगत कार में यात्रा करने की जरूरत कम हो जाएगी।


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