दूसरा निर्णय पंचायत/निकाय चुनावों और विधानसभा/ लोकसभा चुनावों की मतदाता सूचियों को एक करने का है। उल्लेखनीय है कि कई राज्यों में पंचायत/निकाय चुनावों और विधानसभा/ लोकसभा चुनावों में अलग-अलग मतदाता सूचियों का प्रयोग किया जाता है। पंचायत/निकाय चुनावों की मतदाता सूचियों का निर्माण संबंधित राज्य का निर्वाचन आयोग करता है, जबकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव की मतदाता सूचियों का निर्माण केंद्रीय निर्वाचन आयोग करता है। राज्य चुनाव आयोगों के पास केंद्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा बनाई गई सूची को पंचायत/निकाय चुनाव के लिए प्रयोग करने का अधिकार होने के बावजूद कई राज्यों में ऐसा नहीं किया जाता था। मतदाता सूची का नवीनीकरण अत्यंत जटिल, श्रमसाध्य और चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसलिए इस कार्य को दो बार करने की जगह एक बार ही ठीक से कराना अधिक तर्कसंगत है। एक ही मतदाता सूची को पंचायत/निकाय चुनावों, विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों के लिए प्रयोग करने से धन और मानव श्रम की बचत हो सकेगी। इस बचत को अन्य उत्पादक कार्यों में लगाया जा सकता है। इस बात को समझते हुए ही अनेक राज्य केंद्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार मतदाता सूची को ही पंचायत/निकाय चुनावों के लिए प्रयोग करते हैं। अब यह कार्य देश भर में अनिवार्यत: हो सकेगा। पंचायत/निकाय चुनावों में वार्ड प्रतिनिधियों का भी चुनाव होता है। इसलिए निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार कराई जाने वाली मतदाता सूची में वार्ड का कालम बढ़ाकर वार्ड प्रतिनिधियों का चुनाव भी सफलतापूर्वक कराया जा सकता है।
अभी तक प्रत्येक वर्ष की एक जनवरी को 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले युवाओं को मतदाता सूची में शामिल किया जाता था। इससे दो जनवरी से लेकर 31 दिसंबर के बीच 18 वर्ष के होने वाले मतदाताओं को एक वर्ष तक अपना नाम मतदाता सूची में शामिल कराने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने 18 वर्ष की आयु निर्धारण के लिए एक जनवरी के अलावा संबंधित वर्ष की एक अप्रैल, एक जुलाई और एक अक्टूबर की तिथियां भी तय की हैं। निश्चय ही केंद्र सरकार के ये तीन निर्णय चुनाव सुधार का मार्ग प्रशस्त करेंगे और भारतीय लोकतंत्र को मजबूती देंगे, लेकिन ये पर्याप्त नहीं हैं।
आज पैसे के बल पर चुनाव जीतने वालों और आपराधिक प्रवृत्ति वालों ने भारतीय लोकतंत्र को बंधक सा बना लिया है। उसे उनके पंजों से मुक्त करने के लिए कठोर प्रविधान करने की आवश्यकता है। एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स की एकाधिक रपटों में ग्राम पंचायतों से लेकर संसद में धनपतियों और दागी नेताओं की भरमार पर चिंता व्यक्त की गई है। आज साफ-सुथरे और सीधे-सच्चे आदमी का चुनाव लडऩा और जीतना संभव नहीं है। इसीलिए संसद और विधानसभाएं दागी नेताओं की आरामगाह बन रही हैं। गलत शपथ पत्र देने वाले और अपराधियों के चुनाव लडऩे पर रोक या कार्यकाल पूरा होने से पहले ही दूसरा चुनाव लडऩे पर रोक, राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता, भड़काऊ बयान देने और लोकलुभावन घोषणाएं करने वाले प्रत्याशियों/दलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई, चुनावी घोषणापत्र को शपथपत्र की तरह न्यायिक दस्तावेज बनाने, दलबदल करने वालों और उनके परिजनों के लिए पांच साल तक नई पार्टी/सरकार में पद लेने पर रोक जैसे प्रविधान भी अति आवश्यक हैं। न सिर्फ दलबदल करने वाले प्रत्याशी, बल्कि उसके परिवार के लिए भी पांच साल का कूल-इन पीरियड अनिवार्य किया जाना चाहिए। संपत्ति के विवरण और कूल इन पीरियड संबंधी प्रविधानों के लिए परिवार का अर्थ संयुक्त परिवार किया जाना चाहिए।
मतदाताओं के नाम और मतदाता सूचियों के दोहराव को रोकने के लिए किए गए प्रविधानों की तरह चुनाव-प्रक्रिया के दोहराव को रोकने की दिशा में भी काम किया जाना चाहिए। एक देश-एक चुनाव इस दोहराव का सही समाधान है। लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराकर श्रम, समय और संसाधनों की बड़ी बचत की जा सकती है। भारत में समय-समय पर चुनाव सुधार होते रहे हैं, लेकिन अब उनकी गति तेज करने का वक्त है। समयानुसार सुधार जीवंतता का लक्षण है। भारत एक विशाल और विविधतापूर्ण देश है। उसकी लोकतांत्रिक व्यवस्था विकासशील और गतिशील है। उसे नई-नई चुनौतियों से दो-चार होना पड़ता है। इसलिए उसमें समयानुसार सुधार करते रहना अपरिहार्य है।