कश्मीर को साधने की कारगर कवायद: अब कश्मीरियत के बजाय हिंदुस्तानियत से बनेगी बात

अब कश्मीरियत के बजाय हिंदुस्तानियत से बनेगी बात

Update: 2021-11-08 16:55 GMT

आदित्य राज कौल। बीते तीन दशकों में पहली बार ऐसा हुआ कि मैंने जुलाई के दौरान पूरा एक महीना कश्मीर घाटी में बिताया। इस दौरान मैं श्रीनगर में लाल चौक के आसपास रहा और बिना किसी सुरक्षा कवर के पूरी कश्मीर घाटी में बेरोकटोक घूमा। मेरे जैसा पत्रकार, जो कश्मीर के अल्पसंख्यक समुदाय से हो और इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ सख्त नजरिया रखता हो, उसका पूरी वादी में बिना सुरक्षा के घूमने के बारे में कुछ साल पहले तक सोचा भी नहीं जा सकता था। नि:संदेह इसके पीछे अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए को हटाना एक बड़ी वजह है। आंकड़े गवाह हैं कि 5 अगस्त 2019 के बाद कश्मीर घाटी में आतंकी हिंसा की बड़ी घटनाओं में खासी कमी आई है। वर्ष 2018 में जहां 614 आतंकी घटनाएं हुई थीं वहीं 2020 में यह आंकड़ा 244 रहा। 2004 में 2565 आतंकी हमलों में 707 से ज्यादा नागरिक मारे गए थे। इस साल अब तक 24 नागरिक आतंकी हमलों में मरे हैं। बीते साल यह आंकड़ा 30 था।


हालांकि, गत अक्टूबर में अल्पसंख्यक हिंदू और सिख समुदाय के नागरिकों के अलावा गैर-कश्मीरी कामगारों की आतंकियों ने हत्या कर दी जिससे लोगों में डर बैठ गया। इसने बीती सदी के आखिरी दशक के रक्तपात की यादें ताजा करा दीं, जिसके कारण चार लाख से अधिक कश्मीरी पंडितों को घाटी से पलायन करना पड़ा था। हालांकि इस बार सुरक्षा बलों ने तत्परता से कार्रवाई करते हुए तीन हफ्तों में 20 से अधिक आतंकियों का सफाया कर दिया। इस बीच गृह मंत्री अमित शाह के दौरे ने भी सुरक्षा बलों और आम नागरिकों का हौसला बढ़ाने का काम किया। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति बाद यह शाह का पहला कश्मीर दौरा था, जिसके लिए इससे बेहतर और कोई समय नहीं हो सकता था। इस दौरे से एक अहम संदेश गया कि जो युवा लोकतांत्रिक भारत में विद्यमान अवसरों में यकीन करते हैं, उन तक पहुंचने में सरकार पीछे नहीं रहेगी। मोदी सरकार ने 2017 से ही स्पष्ट कर दिया कि अलगाववाद का रवैया उसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होगा। इसी कड़ी में 2019 में एनआइए ने छापेमारी की और जेकेएलएफ व जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाया। इसके बाद यासीन मलिक, शब्बीर शाह आदि सभी बड़े अलगाववादियों को हिरासत में लिया गया। साथ ही तमाम भूमिगत कार्यकर्ताओं की धरपकड़ की गई। इसी दौरान हुर्रियत कांफ्रेस भी अप्रासंगिक होती गई। इससे शांति एवं विकास की एक नई उम्मीद जगी।

श्रीनगर से शाह ने स्पष्ट कहा कि वह पाकिस्तान से बात करने के बजाय कश्मीर के युवाओं से सीधे बातचीत करेंगे। अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने महबूबा मुफ्ती और फारूक अब्दुल्ला को सख्त संदेश दिया जो कि अलगाववाद पर नरम रवैया अपनाकर इस्लामाबाद से वार्ता की वकालत करते आए हैं। शाह श्रीनगर हवाई अड्डे से सीधे जम्मू-कश्मीर के सीआइडी इंस्पेक्टर परवेज अहमद के परिवार से मिलने पहुंचे, जिनकी आतंकियों ने जून में हत्या कर दी थी। शाह ने पूरे देश की ओर से परिवार के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। उनका यह अंदाज सुरक्षा बलों के हौसले पर गहरा प्रभाव छोड़ेगा, क्योंकि अतीत में ऐसे बहादुरों के बलिदान को अक्सर भुला दिया जाता था। मोदी सरकार ने राज्य में सुरक्षा बलों के 100 से अधिक शहीदों की स्मृति में स्मारक बनाने की घोषणा की है। जनता से संवाद की अपनी अनूठी शैली को कायम रखते हुए शाह ने इस दौरे पर हेलीकाप्टर के बजाय सड़क मार्ग से ही सफर किया। साथ ही अपने संबोधन के दौरान बुलेट प्रूफ कवच हटाकर जो संदेश दिया उसकी धमक दूर तक सुनी गई होगी।

सुरक्षा अधिकारियों के साथ मुलाकात में शाह ने दो-टूक लहजे में कहा कि कश्मीर में अलगाववाद के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। नागरिकों को निशाना बनाने वाली हालिया घटनाओं पर नाराजगी व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि पुलिस आतंकियों से निपटने के लिए जमीनी स्तर पर मानवीय खुफिया तंत्र विकसित करने के साथ हर मोर्चे पर कारगर रणनीति बनाए। इस दौरान उन्होंने दक्षिण कश्मीर का आकस्मिक दौरा भी किया और पुलवामा स्मारक जाकर 2019 में शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की। घाटी में पत्थरबाजी को खत्म करने का सुरक्षा बलों को श्रेय देने के साथ ही शाह ने सैनिकों के साथ मैस में रात्रि भोज किया और उनसे उनकी बेहतरी और अन्य पहलुओं पर विमर्श किया। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार नि:संदेह एक नया कश्मीर बनाने की राह पर चल रही है। यह सरकारी कवायद उन पुराने तौर-तरीकों से अलग है, जब अलगाववादियों और कश्मीर केंद्रित नेताओं के मुताबिक काम होता था। तब गुपकार रोड पर सिर्फ कास्मेटिक कवायद की जाती थी और उसे नई दिल्ली कूरियर कर दिया जाता था। स्वाभाविक है कि वह कभी फलीभूत नहीं हो पाई।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कश्मीर को लेकर 'इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत' का जो नारा दिया था उसका दुरुपयोग घाटी में अलगाव, टकराव और मुख्यधारा में मौजूद उनके समर्थकों को छुपाने के लिए किया गया। कश्मीरियत के स्थान पर हिंदुस्तानियत यानी भारतीयता को आगे बढ़ाने के लिए मोदी ने अतिरिक्त प्रयास किए। शाह ने अपनी यात्र में भारतीयता का एक नया स्वर दिया है। इसका मर्म यही है कि जनतंत्र और मानवीयता को किसी मिथ्या नाम पर बंधक नहीं बनाया जा सकता। कश्मीरियत की आड़ में चरमपंथी इस्लामिस्ट विचारधारा को छुपाया गया और उन कश्मीरियों के खिलाफ अपराध किए गए, जो खुद को गौरवशाली भारतीय कहते हैं। कश्मीर को विशेषाधिकार या किसी 'हीलिंग टच' की जरूरत नहीं है। वस्तुत: कश्मीर को विकास और शांति के नए रास्ते की जरूरत है। कश्मीर में हिंदुस्तानियत या भारतीयता के संग जनतंत्र और मानवता के मेल से ही स्थायी शांति संभव है।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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