कोरोना काल में सामने आईं शैक्षणिक विसंगतियां और विषमताएं, इन पर मंथन करना जरूरी
कोरोना काल में सामने आईं शैक्षणिक विसंगतियां और विषमताएं
राकेश कुमार पांडे। कोरोना संक्रमण के दौर में देश के सारे विद्यालय या तो बंद थे या फिर आनलाइन मोड में चल रहे थे। अधिकांश सरकारी विद्यालय लगभग बंद थे, जबकि शहरों के अधिकांश निजी स्कूलों में आनलाइन माध्यम से पढ़ाई कराई जा रही थी। अब जब देश के अधिकांश विद्यालयों में पठन-पाठन का कार्य पहले ही तरह पटरी पर आ चुका है, ऐसे में कुछ शैक्षणिक विसंगतियां और विषमताएं भी सामने आ रही हैं जिन पर विमर्श आवश्यक है। कोरोना काल में लाकडाउन के बाद निजी विद्यालयों ने आनलाइन माध्यम से पढ़ाई शुरू करने का फैसला किया। उस हालात में अभिभावकों पर दोहरी मार पड़ी। शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के निजी विद्यालयों में आनलाइन पढ़ाई की स्थितियां अलग-अलग रहीं।
अभिभावकों को अपने एक से ज्यादा बच्चे होने की स्थिति में सभी के लिए अलग-अलग स्मार्टफोन की खरीदारी करनी पड़ी, क्योंकि अधिकांश शहरी लोगों के लिए स्मार्टफोन उनके कामकाज का एक अभिन्न अंग बन चुका है। ऐसे में बच्चों की आनलाइन पढ़ाई के लिए अलग स्मार्टफोन की आवश्यकता महसूस हुई। इसके अलावा स्मार्टफोन में इंटरनेट की व्यवस्था आदि के लिए अभिभावकों को अतिरिक्त खर्च भी करना पड़ा। ग्रामीण क्षेत्रों या छोटे शहरों में स्थित निजी विद्यालयों में कोरोना काल में या तो आनलाइन पढ़ाई शुरू ही नहीं हो सकी या अगर शुरू भी हुई तो अभिभावकों ने इस नए प्रयोग को अपनाने में अनिच्छा दिखाई।
कोरोना काल में इन क्षेत्रों में बच्चों का पठन-पाठन लगभग ठप रहा और बिना पढ़ाई के ही बच्चे अगली कक्षाओं में प्रोन्नत कर दिए गए। इस तरह बड़े शहरों के निजी विद्यालयों के बच्चों और छोटे शहरों व कस्बे के निजी विद्यालयों के समान कक्षाओं के बच्चों के शैक्षणिक स्तर व बोध में कोरोना काल ने बड़ी विसंगतियों व असमानताओं को जन्म दिया।अब सभी विद्यालयों में आफलाइन मोड में पठन-पाठन शुरू होने के बाद ग्रामीण और छोटे शहरों के सरकारी और लगभग सभी निजी स्कूलों में विद्यार्थियों को एक नई समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है।
कोरोना काल में विद्यालयों के बंद रहने से विद्यार्थियों की पिछली कक्षाओं के पाठ्यक्रम की पढ़ाई नहीं हुई। वैसी स्थिति में अगली कक्षाओं में प्रोन्नत कर दिए गए सारे विद्यार्थियों को विषय वस्तु को समझने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही, शिक्षकों के सामने भी विगत कक्षा के अध्ययन सामग्री के साथ नई कक्षा के पाठ्यक्रम को पढ़ाने में भरपूर दिक्कतों और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि विद्यालयी शिक्षा में अगली कक्षा का पाठ्यक्त्रम पिछली कक्षा के आधार पर ही विस्तार पाता है।
ऐसे में जब पिछली कक्षा के पाठ्यक्त्रम की पढ़ाई कोरोना काल में नहीं हो सकी, तो नई कक्षा के पाठ्यक्रम को सुचारु रूप से पढ़ना और पढ़ाना छात्रों और शिक्षकों के लिए चुनौती का कार्य साबित हो रहा है।कोरोना के बाद भौतिक कक्षाओं के प्रारंभ होने के साथ ही देश में संक्रमण की तीसरी लहर की प्रबल होती आशंका को देखते हुए विद्यालय में होने वाला आफलाइन पठन-पाठन कार्य एक बार फिर से संकट में दिखाई दे रहा है। हालांकि कोरोना के दुष्प्रभाव से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहा है, किंतु शिक्षा और शैक्षणिक जगत को सबसे ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ा है।
खासकर विद्यालयी शिक्षा पर कोरोना का दुष्प्रभाव सबसे ज्यादा रहा है। बहरहाल, केवल दुष्परिणामों पर चिंता व्यक्त करने से कुछ भी नहीं होने वाला है। अब हमें इस बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए कि कोरोना काल में जनित शैक्षणिक विषमताओं की खाई को पाटने की दिशा में कैसे आगे बढ़ा जा सकता है। इस पर सरकार और शैक्षणिक जगत के चिंतकों को विचार करना होगा। वैसे विद्यालयों में शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन अवकाश की अवधियों में अतिरिक्त कक्षाएं लगाना शैक्षणिक स्तर की विषमता को पाटने की दिशा में एक छोटा और प्रभावी प्रयास साबित होगा।
(शैक्षिक मामलों के जानकार)