सम्पादकीय: कश्मीर का चुनाव परिसीमन

सम्पादकीय

Update: 2021-07-03 17:11 GMT

जम्मू-कश्मीर समस्या पर गतिरोध तोड़ने के लिए पिछले सप्ताह केन्द्र सरकार और राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच जो बैठक हुई थी उसमें अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद राजनीतिक प्रक्रिया के पुनः शुरू होने का रास्ता खुलता नजर आया था। इस रास्ते को अब और अधिक अवरोध मुक्त इस तरह बनाये जाने की सख्त जरूरत है जिससे सूबे की अवाम की सत्ता में सीधी भागीदारी का सिलसिला जोरदार तरीके से शुरू हो। राज्य की नेशनल कान्फ्रेंस से लेकर पीपुल्स कान्फ्रेंस व पीडीपी पार्टी तक इस प्रक्रिया से सहमत हैं हालांकि मोहतरमा महबूबा मुफ्ती ने बैठक से बाहर आकर कुछ तल्खी लाने की कोशिश की थी मगर पूरा मुल्क जानता है कि महबूबा की पीडीपी पार्टी का यह काम सिर्फ रियासत की सियासत में खुद को मौजूं बनाये रखने के अलावा कुछ नहीं था क्योंकि 370 का मसला अब सीधे मुल्क की सबसे बड़ी अदालत के पेशे नजर है। इस बैठक में ही यह तय हुआ था कि सूबे में चुनाव परिसीमन का काम पूरा होने के बाद विधानसभा के चुनाव कराये जायेंगे। मौजूदा हालात में रियासत का खास रुतबा 370 के साथ चले जाने के बाद इसकी हैसियत दिल्ली जैसी विधानसभा वाले राज्य की है। फिलहाल जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 114 सीटें हैं जिनमें 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के लोंगों के लिए आरक्षित हैं। इस तरह मौजूदा विधानसभा की प्रभावी क्षमता 90 सीटों की है। इनमें जम्मू व कश्मीर के अलावा लद्दाख क्षेत्र की सीटें भी शामिल थीं।


अब लद्दाख अलग केन्द्र शासित इलाका बन गया है, इसलिए चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन में सिर्फ जम्मू व कश्मीर इलाकों के चुनाव क्षेत्रों को ही हिसाब में लिया जायेगा। नये राज्य जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सदस्य शक्ति क्या होगी इसका फैसला परिसीमन आयोग करेगा। इन्ही सब मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए आयोग आगामी 6 से 9 जुलाई तक श्रीनगर जा रहा है जहां वह सभी राजनीतिक दलों व चुने हुए प्रतिनिधियों व सरकारी अफसरों से सलाह-मशविरा करेगा। आयोग के साथ बातचीत करने को सभी प्रमुख दल राजी से हैं क्योंकि सूबे को पूर्ण राज्य का दर्जा देर-सबेर जरूर दिया जायेगा। इसका वादा संसद में गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने विगत 5 अगस्त, 2019 के दिन ही कर दिया था जब 370 को हटाया गया था और सूबे को दो हिस्सों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर में बांटा गया था। बेशक नेशनल कान्फ्रेंस के नेता व पूर्व मुख्यमन्त्री श्री उमर अब्दुल्ला ने बैठक के बाद इस मुद्दे पर मतभेद प्रकट करते हुए कहा था कि पहले तो सूबे में चुनाव परिक्षेत्र परिसीमन के बिना ही चुनाव कराये जायें तो बेहतर होगा और दूसरे चुनाव कराये जाने से पहले जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाये तो बहुत सारी चीजें साफ हो जायेंगी।

मगर अब्दुल्ला साहब एक हकीकत भूल गये कि अब लद्दाख जम्मू-कश्मीर से बाहर हो चुका है और सूबे में चुनाव परिसीमन का मामला पिछले लगभग दस सालों से अटका पड़ा है। इस काम को जब पूरा कराने की केन्द्र सरकार ने ठान ली है तो उसमें अड़ंगा लगाया जाना उचित नहीं कहा जा सकता। चुनाव परिसीमन का काम चुनाव आयोग की निगरानी और उसके बनाये गये पैमाने पर होगा जिसमें किसी भी सरकार का कोई दखल नहीं हो सकता क्योंकि चुनाव आयोग एक खुद मुख्तार और स्वतन्त्र संस्था है। इसलिए परिसीमन आयोग को शक की निगाह से देखना वाजिब नहीं कहा जा सकता। बेशक यह बात काबिले गौर है कि आधी-अधूरी विधानसभा के चुनावों में भाग लेना नेशनल कान्फ्रेंस व पीडीपी जैसी पार्टियों को अपने रुतबे के काबिल न लगे क्योंकि इन पार्टियों के नेता बाअख्तियार विधानसभा के चुने हुए वजीरे आल्हा ही नहीं रहे बल्कि खास दर्जा प्राप्त रियासत के मुखिया भी रहे हैं। मगर हकीकत से मुंह चुराना भी बाजाब्ता सियासतदानों का किरदार नहीं होता। संसद के फैसले को बदलना अब मुमकिन नहीं है और इसे उमर साहब ने बहुत साफगोई के साथ माना भी है और कहा है कि 370 की लड़ाई कानूनी लड़ाई है जो मुल्क की सबसे बड़ी अदालत में लड़ी जायेगी इसलिए सवाल सिर्फ रियासत को पूर्ण राज्य का दर्जा कब और किस मौके पर देने से बन्धा हुआ है। रियासत के लोगों की भलाई को देखते हुए ही इस बारे में आम सहमति से फैसला किया जाये तो वह मुल्क व रियासत दोनों के लिए बेहतर होगा। हालांकि दलीलें पेश की जा रही हैं कि चुनाव से पहले पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर रियासत की अवाम के दिल में केन्द्र सरकार के लिए जगह बढे़गी मगर दूसरी तरफ यह भी सच्चाई है केन्द्र ने ही सूबे में पिछले साल जिला विकास परिषदों के चुनाव कराये थे जिनमें सभी राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया था। अब जब केन्द्र और रियासत की सियासी पार्टियां दो-दो कदम आगे बढ़ा रही हैं तो हर फैसला बहुत नाप-तोल कर होना चाहिए क्योंकि पूरे मुल्क की आवाम बड़ी बेसब्री के साथ जम्मू-कश्मीर के सियासी हालात का जायजा रही है।

यह बात भी गौर करने लायक है कि आजाद हिन्दोस्तान में यह पहला मौका ही था जब किसी पूर्ण राज्य की हैसियत केन्द्र प्रशासित राज्य की बनाई गई है। अतः पूर्ण राज्य का दर्जा पाना रियासत की अवाम का जायज हक भी है और इसे देश के गृहमन्त्री ने बाकायदा संज्ञान में भी लिया है तभी तो उन्होंने संसद में पूर्ण राज्य बनाने का वादा किया था। अतः सूबे की सियासी पार्टियों को सब्र से काम लेना चाहिए और परिसीमन आयोग के साथ पूरा सहयोग करते हुए नई विधानसभा को ताकत बख्शनी चाहिए। क्योंकि यह सारी कवायद भी तो लोगों को ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व देने के लिए ही हो रही है।


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