अर्थव्यवस्था की डगर
अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए सरकार ने इस बार जो प्रोत्साहन पैकेज घोषित किया है,
ऐसे में सरकार की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। अब आने वाले दो महीने त्योहारी मौसम के हैं और इन्हीं डेढ़-दो महीनों में लोग घर, गाड़ी से लेकर तमाम उपभोक्ता और गैर-उपभोक्ता वस्तुएं खरीदते हैं। लेकिन अभी सबसे ज्यादा संकट इस बात का बना हुआ है कि लोग भविष्य को लेकर डरे हुए हैं और पैसा बचा कर रखने को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसके अलावा एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जिसके पास खर्च करने को पैसा ही नहीं है। ऐसे में बाजार में मांग कैसे जोर पकड़ेगी!
सरकार ने इस बार कर्मचारियों से पैसा खर्च करवा कर मांग पैदा करने का फार्मूला अपनाया है। हालांकि ये पैकेज कोई बहुत बड़ा नहीं हैं, लेकिन इसका महत्त्व इस लिहाज से है कि लोगों को पैसा दिया जाए और उसे वे खर्च करें। इसलिए कर्मचारियों को जो पैसा मिलेगा, वह सशर्त है। ऐसा नहीं कि वे उस पैसे को भी जमा करके रख लें। अभी तक हो यह रहा है कि लोग अर्थव्यवस्था की हालत को देख कर घबराए हुए हैं।
ऐसे में हर कोई पैसा बचा कर रख रहा है। इसलिए केंद्र ने जो अब कदम उठाया है, उसका संदेश यही है कि पैसा लीजिए और खर्च कीजिए। कर्मचारियों को यात्रा अवकाश भत्ता (एलटीसी) अब नगदी के रूप में मिलेगा, लेकिन इस रकम का उपयोग 31 मार्च 2021 तक उन्हें उन वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करना होगा जिन पर बारह फीसद या इससे ज्यादा जीएसटी लग रहा है। इसी तरह कर्मचारियों को जो दस हजार रुपए बतौर अग्रिम बिना ब्याज का दिया जाएगा, उसकी अदायगी भी दस किस्तों में होगी। अब देखना यह है कि सरकारी कर्मचारी इसका कितना लाभ उठाते हैं और बाजार को उठाने में भागीदार बनते हैं।
राज्य सरकारों के लिए भी केंद्र ने पिटारा खोला है। पूंजीगत खर्चों के लिए केंद्र राज्यों को बारह हजार करोड़ बिना ब्याज के कर्ज के रूप में देगा। राज्य सरकारें भी अपने कर्मचारियों के लिए रियायतों की घोषणा चाहें तो कर सकती हैं, लेकिन यह उनकी माली हालत पर निर्भर करेगा। देश में केंद्रीय कर्मचारियों, लोक उद्यमों में काम करने वालों, बैंकिंग क्षेत्र के कर्मचारियों की तादाद अच्छी-खासी है। लेकिन आबादी के हिसाब से नियमित आय वाला यह वर्ग छोटा है। देश में आबादी का बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों का है।
इसके अलावा निजी क्षेत्र के कामगारों की तादाद भी काफी बड़ी है। पर निजी क्षेत्र में भी कामगारों के बड़े हिस्से को सरकारी कर्मचारियों के समान न तो ज्यादा वेतन-भत्ते मिलते हैं, न पेंशन जैसी कोई सामाजिक सुरक्षा है, जबकि अर्थव्यवस्था में इस वर्ग की भागीदारी भी बड़ी है। अगर देश में हर तबके के हाथ में नगदी देने का उपाय हो तो खर्च बढ़ा कर जीडीपी को रफ्तार देना मुश्किल काम नहीं है।