अर्थव्यवस्था स्पीड मोड पर
कोरोना काल से उबरने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से रफ्तार पकड़ रही है और अब भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज दौड़ रही है।
आदित्य नारायण चोपड़ा: कोरोना काल से उबरने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से रफ्तार पकड़ रही है और अब भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज दौड़ रही है। वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान कल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत रही जबकि पिछले वित्त वर्ष के दौरान इसमें 6.6 प्रतिशत का संकुचन देखने को मिला था। भारतीय रिजर्व बैंक ने गत वित्त वर्ष जीडीपी विकास दर के 9.5 फीसदी और अंतिम तिमाही के दौरान 6.1 फीसदी रहने का अनुभव जताया था। भारतीय अर्थव्यवस्था ने चीन, अमेरिका और ब्रिटेन को भी पछाड़ दिया है। इस दौरान चीन की अर्थव्यवस्था 8.1 फीसदी की दर से बढ़ी जबकि ब्रिटेन ने 7.4 फीसदी की दर से वृद्धि दर्ज की, अमेरिका 5.7 फीसदी के साथ और फ्रांस 7 फीसदी के साथ पीछे रहे। राष्ट्रीय साख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष में वास्तविक जीडीपी 147.36 लाख करोड़ रुपए हो गई जबकि एक वर्ष पहले 135.58 लाख करोड़ रुपए रही थी।एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने महामारी से पैदा हुई मंदी से उबरना शुरू ही किया था कि जनवरी में ओमिक्राेन के मामलों में वृद्धि से आशंकाएं गहरा गई थीं। फरवरी में यूक्रेन-रूस युद्ध ने संकट को और बढ़ा दिया जिससे वस्तुओं की कीमतें बढ़ गईं और सप्लाई में कमी आई। तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था के सभी संकेतक अच्छे हैं तो यह राहत की बात है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की बात करें तो गत वर्ष की तुलना में अप्रैल 2022 में कोयले, बिजली, रिफाइनरी, उत्पाद, उर्वरक, सीमेंट और प्राकृतिक गैस के उत्पादन में तेजी आई है। उत्पादन में तेजी गुलाबी तस्वीर तो रचते हैं लेकिन 31 मार्च को समाप्त हुई चौथी तिमाही में जीडीपी की रफ्तार महज चार फीसदी रही जिसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। हालांकि इसकी दो बड़ी वजह महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध को माना जा रहा है।संपादकीय :कश्मीर में निशाने पर कश्मीरीअश्विनी मिन्ना सिंगर अवार्ड की धूमभारत का सम्मानः काशी-मथुरासिविल सर्विसेज : देश का स्टील फ्रेमआतंक की खेती करता पाकिस्तानमहमूद मदनी की 'जमीयत'मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक विकास को सुस्त पड़ने नहीं देना है। सरकार की सबसे बड़ी चुनौती महंगाई में लगातार इजाफा होना है। बीते अप्रैल में खुदरा महंगाई दर आठ साल के सबसे उच्चतम स्तर पर यानि 7.79 फीसदी पर जा पहुंची तो वहीं थोक महंगाई दर 9 साल के उच्चतम स्तर 15.08 फीसदी पर पहुंच गई। महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने रेपो रेट बढ़ाया है लेकिन महंगाई बढ़ेगी तो कर्ज और महंगा होगा, जिसका असर डिमांड पर पड़ेगा। ऐसे में ब्याज दरों में होने वाली बढ़ौतरी से निवेश, रोजगार और आय में कमी आएगी जिससे मुद्रा स्फीति की स्थित लगातार बिगड़ती जाएगी। यद्यपि सरकार ने महंगाई कम करने के लिए पैट्रोल-डीजल की कीमतें कम की हैं। गेहूं की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए गेहूं का निर्यात रोका है और आयात किए जाने वाले खाद्य तेलों पर आयात शुल्क कम किया है। आंकड़ों के मुताबिक प्रति व्यक्ति निजी खपत अभी भी काफी कम है। यह स्वाभाविक है कि जब महंगाई बढ़ती है तो आम आदमी अपना खर्च घटाता है और वह रोजमर्रा की इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं कम खरीदना शुरू कर देता है। ब्रोक्रेज हाउस मार्गन स्टेनले ने भी कहा था कि बढ़ती महंगाई, उपभोक्ताओं की तरफ से कमजोर मांग और कड़े वित्तीय हालात से बिजनेस सैंटीमेंट पर बुरा असर पड़ेगा। कीमतों में उछाल और कॉमोडिटी के बढ़ते दामों के चलते महंगाई और बढ़ेगी ही साथ ही चालू खाते का घाटा भी बढ़कर दस साल के उच्चतम स्तर 3.3 फीसदी तक जा सकता है। मोदी सरकार का लक्ष्य कुछ वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डालर तक ले जाने का है। केन्द्र के इस लक्ष्य में बढ़े राज्यों के अर्थतंत्र की बहुत बड़ी भूमिका है। भारत की जनसंख्या कई देशों से ज्यादा है। यहां बाजार का इन्फास्ट्रक्चर काफी अच्छा है। अर्थव्यवस्था काे गति देने के लिए बड़े राज्यों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। अर्थव्यवस्था काे अभी भी कुछ गतिरोधों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार को मुद्रास्फीति को कम करने के लिए अप्रत्यक्ष करों में कटौती कम करने जैसे उपाय करने होंगे और साथ ही यह भी देखना होगा कि राजकोषीय घाटे को बढ़ाए बिना अप्रत्यक्ष करों में कटौती किस तरह से की जा सकती है। महंगाई और बेरोजगारी के संकट के बावजूद वित्त वर्ष 2021-22 में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 119.42 अरब डालर पहुंच गया है। इस अवधि में चीन के साथ भारत का व्यापार 115.42 अरब डालर रहा। निर्यात में बड़ी वृद्धि दर्शाती है कि खेती उद्योग और उद्यम के क्षेत्र में विकास बरकरार है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब 600 अरब डालर के पार निकल गया है। कुल मिलाकर कई मोर्चों पर निराशा के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था स्पीड मोड पर है और उम्मीद है कि सरकार द्वारा एक के बाद एक उठाए गए कदमों से अर्थव्यवस्था की गति और तेज होगी।