बृहद अर्थशास्त्रीय आंकड़े दिखा रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती की ओर है। निवेशकों व उद्योग क्षेत्र के आशावाद और सरकारी खर्च के कारण वित्त वर्ष 2022 में भारत की आर्थिक विकास दर 8.5 से 10 फीसदी तक हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने भारत की आर्थिक विकास दर के बारे में कमोबेश यही अनुमान व्यक्त किया है। अगर हमारी आर्थिक विकास दर इतनी होती है, तो फिर भारत पचास खरब डॉलर की, और अगले दशक में सौ खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है।
वित्त वर्ष 2022 के लिए ताजा सकल मूल्य वर्धित अनुमान बताता है कि मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में न्यूनतम सकल मूल्य वर्धित पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के -20.2 फीसदी की तुलना में 26.8 प्रतिशत रहा है। बेशक पिछले वित्त वर्ष की आर्थिक बदहाली का कारण कोविड-19 महामारी और उससे निपटने के लिए लगाया गया लॉकडाउन था। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही की तुलना में 31.7 फीसदी था, इसके बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड से पहले के दौर की स्थिति में अभी नहीं पहुंच पाई है और इसका कारण है कोविड की दूसरी लहर के दौरान लगे आंशिक लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था पर असर।
क्षेत्रवार विश्लेषण बताता है कि मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कृषि क्षेत्र में पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 5.7 फीसदी वृद्धि के मुकाबले 11.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के उस कृषि क्षेत्र के लिए बहुत बड़ा सहारा है, जिस पर 43 प्रतिशत श्रमबल की निर्भरता है। इसी अवधि में उद्योग क्षेत्र में पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही की -38.2 प्रतिशत वृद्धि की तुलना में 67.1 प्रतिशत वृद्धि हुई। जबकि आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका निभाने वाले सेवा क्षेत्र का प्रदर्शन पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के -19 प्रतिशत की तुलना में मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 17.8 प्रतिशत वृद्धि हुई। बेशक, इस साल आर्थिक विकास दर के बढ़े हुए आंकड़े कमोबेश अतिरंजित लगते हैं, जिसका मुख्य कारण पिछले वित्त वर्ष में आर्थिक विकास दर में आई भारी गिरावट रही, उसमें भी खासकर पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही को महामारी का तात्कालिक असर झेलना पड़ा था। इस लिहाज से मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के विश्लेषण से अर्थव्यवस्था की कहीं सटीक तस्वीर सामने आएगी।
सेवा क्षेत्र में व्यापार, होटल, परिवहन आदि उप-क्षेत्र का प्रदर्शन लचर है। दरअसल हवाई यात्रा, अतिथि-सत्कार तथा होटल, रेस्टोरेंट्स व ढाबे महामारी में सबसे अधिक प्रभावित हुए। इस साल महामारी की दूसरी लहर भी इस क्षेत्र को झेलनी पड़ी, लिहाजा इसकी आर्थिक विकास दर धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रही है। बैंकिंग उप-क्षेत्र में भी उम्मीदजनक वृद्धि देखी जा रही है। विगत सितंबर तक बैंक जमाराशियों में पिछले वर्ष की तुलना में 9.3 फीसदी और कर्ज में 6.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है-ये दरें उत्साहजनक तो हैं, लेकिन उच्च विकास दर के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए काफी नहीं हैं। मार्च, 2018 तक बैंकों में कुल गैरनिष्पादित परिसंपत्ति का आंकड़ा 12 प्रतिशत था, जो मार्च, 2021 में घटकर आठ फीसदी रह गया है। अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए भी तमाम कदम उठाए जा रहे हैं, जैसे-ब्याज दरों में महामारी के पहले की तुलना में डेढ़ से दो फीसदी की कमी की गई है। ऐसे ही, होम लोन की ब्याज दर अभी सबसे कम करीब 6.5 फीसदी है, जबकि महामारी से पहले ब्याज दर औसतन 8.5 प्रतिशत थी।
अर्थव्यवस्था के व्यापक संकेतक भी उतने गौरतलब हैं। मुद्रास्फीति कम हो रही है, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक अगस्त के 5.3 फीसदी के मुकाबले सितंबर में घटकर 4.35 प्रतिशत रह गया। उद्योग क्षेत्र का प्रदर्शन भी सुधरा है, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक अगस्त में 11.8 फीसदी रहा। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 640 अरब डॉलर के साथ सर्वकालीन ऊंचाई पर है। वित्त वर्ष 2021 में 82 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी एक रिकॉर्ड है। कॉरपोरेट क्षेत्र भी मजबूती से उभर रहा है। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कंपनियों के मुनाफे में वृद्धि पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 51 प्रतिशत अधिक रही। ज्यादातर कंपनियों ने रिकॉर्ड अवधि में कर्ज चुकाए और कॉरपोरेट कर्ज में भी कमी आई। कॉरपोरेट कर को घटाकर 25 फीसदी पर ले आने का भी फायदा हुआ है।
विदेशी व्यापार भी बढ़ रहा है। पिछले साल के 125 अरब डॉलर की तुलना में विगत सितंबर तक हमारा निर्यात 198 अरब डॉलर का हो चुका है। हालांकि इसी अवधि में पिछले साल की तुलना में हमारा आयात भी बढ़ा है। नतीजतन व्यापार घाटा भी पिछले साल के 26 अरब डॉलर से बढ़कर 78 अरब डॉलर हो चुका है। व्यापार घाटा बढ़ने का एक कारण कच्चे तेल के मूल्य में आई तेजी भी है। अर्थव्यवस्था की मजबूती का एक संकेतक कर संग्रह में वृद्धि भी है। मौजूदा वित्त वर्ष में अगस्त तक कर संग्रह पिछले साल की समान अवधि के 5.04 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 8.59 लाख करोड़ रुपये हो चुका है। इस वित्त वर्ष में अगस्त तक राजकोषीय घाटा पिछले साल के 8.7 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 4.68 लाख करोड़ रुपये ही रहा। दरअसल राजकोषीय घाटा सरकारी खर्च पर निर्भर करता है। सरकार खर्च बढ़ाने का फैसला लेती है, तो इससे उपभोग और विकास
बढ़ता है, जिससे आर्थिक विकास में गति आती है। हमारे शेयर बाजार का मूल्य निर्धारण करें, तो यह करीब 260 लाख करोड़ रुपये बैठता है-जो मौजूदा जीडीपी 210 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक है। भारतीय शेयर बाजार की यही रफ्तार रही, तो इस साल यह ब्रिटेन के शेयर बाजार को पीछे छोड़ दुनिया के शीर्ष चार देशों में पहुंच जाएगा। इस साल देश में आर्थिक सुधार की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं।
जाहिर है, सरकार के बढ़े हुए खर्च से अर्थव्यवस्था पर कोविड के बचे-खुचे असर को कम किया जा सकता है। यह परिदृश्य भारतीय उद्योग क्षेत्र के लिए भी बहुत उत्साहित करने वाला है, जिससे मौजूदा वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है।
टी. वी. मोहनदास पई एरिन कैपिटल के चेयरमैन और निशा होला सी-कैंप की टेक्नोलॉजी फेलो हैं।