डूब गया शिक्षा ऋण
भारत में कोरोना महामारी का एक वर्ष पूरा हो गया है लेकिन महामारी की चुनौती खत्म होने का नाम नहीं ले रही।
भारत में कोरोना महामारी का एक वर्ष पूरा हो गया है लेकिन महामारी की चुनौती खत्म होने का नाम नहीं ले रही। अर्थव्यवस्था की चुनौतियां सामने खड़ी हैं लेकिन समस्याएं एक-एक करके सामने आ रही हैं। कोरोना काल में सरकारी बैंकों को काफी नुक्सान हुआ है। अब यह बात सामने आ रही है कि शिक्षा ऋण में जितना कर्ज दिया गया, उसका 9.95 फीसदी पैसा एनपीए हो गया। यानी यह पैसा डूब गया। इसकी कुल रकम 8587 करोड़ रुपए रही है। एनपीए वह रकम होती है जो बैंकों को वापिस नहीं मिलती। सरकार ने संसद में यह जानकारी दी है कि 31 दिसम्बर 2020 तक कुल एजुकेशन लोन में 3.66 हजार 260 खाते ऐसे रहे जिन्होंने ऋण का पैसा नहीं चुकाया है। पैसा न चुकाने की मुख्य वजह यह है कि कोरोना में एक तो लोगों के रोजगार छिन गए और दूसरी ओर उनकी आय भी घट गई। देश में बैंकों ने 2019 तक एजुकेशन सैक्टर को 66902 करोड़ का ऋण दिया था। हालांकि 2017 सितम्बर में यह 71975 करोड़ रुपए था। दरअसल एजुकेशन लोन में अगर 4 लाख रुपए तक का लोन है तो बैंक इसके लिए कोई भी गारंटी या कोलैटरल की मांग नहीं करता। 4.75 लाख रुपए तक के लोन पर बैंक पर्सनल गारंटी मांगी जाती है। आंकड़ें बताते हैं कि 2018-19 में एजुकेशन लोन में एनपीए 8.29 फीसदी था। जबकि 2017-18 में यह 8.11 फीसदी था। 2019-20 में यह 7.61 फीसदी था। पिछले तीन वर्षों के मुकाबले इस साल एनपीए बहुत बढ़ गया है। वैसे तो हाउसिंग सैक्टर से लेकर कंज्यूमर डयूरेबल और रिटेल लोन का एनपीए 1.50 फीसदी से लेकर 6.91 फीसदी रहा है।