ड्रैगन से खतरा

प्रवीण साहनी जैसे रक्षा विशेषज्ञ लंबे समय से इसकी चेतावनी दे रहे हैं

Update: 2021-03-04 07:09 GMT

प्रवीण साहनी जैसे रक्षा विशेषज्ञ लंबे समय से इसकी चेतावनी दे रहे हैं। उन्होंने बार- बार कहा है कि चीन के बरक्स भारत की सैनिक तैयारियां निरर्थक हैं। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी अब युद्ध की धारणा को दूसरे स्तर पर ले गई है। उसमें सीमा पर युद्ध का महत्त्व है, लेकिन उसकी सामरिक नीति में दुश्मन देश की व्यवस्थाओं को ठप कर देना ज्यादा अहम है। जानकार इसे साइबर और इलेक्ट्रोनिक- मैग्नेटिक युद्ध कहते हैं। जानकारों के मुताबिक इस मामले में भारत की तैयारी बेहद कमजोर है।

बहरहाल, चीन की युद्ध नीति में ये बातें हैं, इसकी पुष्टि अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट से हो गई है। इस रिपोर्ट में दावा किया कि अक्टूबर 2020 में मुंबई में बड़े पैमाने पर बिजली की सप्लाई में जो खराबी आई थी, उसके पीछे चीन से हुए साइबर हमले का हाथ था। अखबार ने यह दावा एक अमेरिकी रिसर्च कंपनी की रिपोर्ट के आधार पर किया है। खबर छपने के बाद महाराष्ट्र सरकार में गृह मंत्री अनिल देशमुख ने भी कहा कि इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता और मुंबई पुलिस ने इस बारे में जांच शुरू कर दी है। उसके बाद केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने भी एक तरह से इस तरह के हमले की पुष्टि कर दी। मंत्रालय ने न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट पर तो कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन इस बात को माना कि चीनी सरकार से समर्थन प्राप्त कुछ हैकरों ने भारत में कई ऊर्जा केंद्रों को निशाना बनाया था।
नेशनल टेक्निकल रिसर्च आर्गेनाईजेशन (एनटीआरओ) के नेशनल क्रिटिकल इन्फॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर (एनसीआइआइपीसी) ने ऊर्जा मंत्रालय को पिछले 12 फरवरी को बताया कि चीनी सरकार से समर्थन प्राप्त "रेड एको" नाम के एक चीनी समूह ने "शैडो पैड" नाम के मैलवेयर से भारतीय ऊर्जा क्षेत्र के रीजनल लोड डिस्पैच केंद्रों (आरएलडीसी) और स्टेट लोड डिस्पैच केंद्रों (एसएलडीसी) को निशाना बनाने की कोशिश की थी। मंत्रालय का दावा है कि कई तरह के कदम उठा कर इस खतरे को नाकाम कर दिया गया। अगर ऐसा हुआ तो यह अच्छी बात है। लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चीनी हमला महज यह संदेश देने के लिए है कि चीन तनाव की स्थिति में क्या कर सकता है। यानी इस हमले का मकसद सचमुच भारतीय सिस्टम को ठप करना नहीं था। इसलिए इस मामले में सरकारी दावे से संतुष्ट होने की कोई वजह नहीं है।


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