तीसरी लहर के डर में न रहें; रिकवरी के लिए काम करें, कोरोना के साथ जीने की रणनीतियां बनें
कोरोना के साथ जीने की रणनीतियां बनें
शमिका रवि । कोरोना की तीसरी लहर को लेकर लोगों के मन में अभी भी शंकाएं हैं। इसके पीछे कारण यह है कि कोई खुलकर स्थिति को समझा नहीं रहा है। कोरोना के सक्रिय मामले लगातार गिर ही रहे हैं। इसका मतलब फिलहाल तीसरी लहर की आशंका नहीं दिखती। यह बार-बार जानना और जन-जन तक पहुंचना जरूरी है क्योंकि अभी भी डर बहुत है। अब तक काफी हद तक हर्ड इम्यूनिटी हासिल हो चुकी होगी क्योंकि दूसरी लहर बहुत बड़ी थी।
इसके साथ ही टीकाकरण अभियान भी बड़े पैमाने पर चला है, जिसमें 70% लोगों को कम से कम एक डोज तो लग गया है। हालांकि दोनों डोज जरूर लगवाने चाहिए क्योंकि इससे सुरक्षा और ज्यादा बढ़ेगी। कई राज्यों में 40-50% लोगों का पूर्ण टीकाकरण हो चुका है। यानी बड़ी संख्या में लोगों में एंटीबॉडी हैं। ये सब बातें बताती हैं कि फिलहाल तीसरी लहर की आशंका नहीं है। इसलिए सबसे पहले तो लोग अपने मन से डर निकालें।
जहां तक अर्थव्यवस्था की रिकवरी की बात है, माइक्रो डेटा तो यही बताता है कि रिकवरी हो रही है। लेकिन नीति के स्तर पर अभी और स्पष्टता की जरूरत है। उदाहरण के लिए अभी भी कई स्कूलों समेत अन्य संस्थान नहीं खुले हैं। कई राज्यों में अब भी हायर एजुकेशन ऑनलाइन चल रहा है। जहां स्कूल खुले भी हैं, वहां रोज या पूरे समय के लिए नहीं चल रहे।
इससे 'लॉस ऑफ लर्निंग' (सीखने का नुकसान) जारी है, जिसका लंबे समय में अर्थव्यवस्था पर असर नजर आएगा। इस समस्या को अभी तक संबोधित नहीं किया गया। सवाल यह है कि इन संस्थानों को पूरी तरह से खोलने के लिए किसका इंतजार किया जा रहा है? कहीं से कोई सर्टिफिकेट तो नहीं मिलेगा कि अब कोविड खत्म हो गया है या यह चलता रहेगा।
इससे बात आती है 'लर्न टू लिव विद द वायरस' यानी वायरस के साथ जीने की। अब सिंगापुर और न्यूजीलैंड समेत कई देश इसपर जोर दे रहे हैं। इसका मतलब है टीकाकरण पर जोर दें, टेस्टिंग की व्यवस्था मजबूत और सस्ती रखें और संस्थान खोलें। कई राज्य हैं जहां कोविड से पहले के स्तर की गतिविधियां और आवागमन हो रहे हैं। लेकिन कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्य, जो हमारे लिए काफी हद तक आर्थिक महाशक्ति हैं, ये जब तक पूरी रिकवरी नहीं कर पाएंगे, तब तक बाकी राज्य भी प्रभावित रहेंगे क्योंकि वे इन राज्यों पर नौकरी आदि के लिए काफी निर्भर है।
बेहतर रिकवरी के लिए अब यह जरूरी हो गया है कि जिम्मेदार लोग आगे आकर बोलें कि तीसरी लहर का खतरा नहीं है और संस्थान तथा कंपनियां इसी के मुताबिक रणनीतियां बनाएं। तीसरी लहर के डर से अब भी आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं। 'लिविंग विद वायरस' का यह भी मतलब है कि अब संस्थान, कंपनियां या उद्योग, उत्पादन या निवेश संबंधी फैसले लेने के लिए इंतजार न करें। अब इंतजार करते हुए परिस्थिति का आंकलन करने की रणनीति सही नहीं है। कई सेक्टर ने एडजस्टमेंट कर लिया है, उनमें ग्रोथ है।
टेक सेक्टर अच्छा काम कर रहा है। लेकिन एजुकेशन समेत कुछ सेक्टर इंतजार कर रहे हैं कि कोई घोषणा होगी या सोच रहे हैं कि तीसरी लहर का डर है। त्योहारों के दौरान अलग-अलग राज्यों में प्रतिबंध के अलग-अलग स्तर होंगे लेकिन कुलमिलाकर ज्यादा प्रतिबंध लगाने का कोई कारण फिलहाल नहीं दिखता। हां, मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और दूसरे डोज पर जोर देना जारी रखना होगा।
मिजोरम छोड़कर ज्यादातर राज्यों में केस घट रहे हैं और टीकाकरण बढ़ रहा है। इसलिए सबकुछ खुल जाना चाहिए। इसके लिए सरकार की ओर से स्पष्ट संवाद होना चाहिए। अभी बेशक अर्थव्यवस्था वी-शेप की रिकवरी कर रही है, लेकिन यह उतनी मजबूत नहीं है यानी धीमी है। इसलिए इंतजार न किया जाए, अब वायरस के साथ रहने की रणनीति पर काम करते हुए काम पर लगना चाहिए।