मानवता को और डाक्टरों को समर्पित जो रिश्ता संजीव शर्मा ने रखा मुझे फख्र है कि भारतीयता और भारतीय संस्कृति और मानवता का रिश्ता जो संजीव ने स्थापित किया उससे न केवल उनका बल्कि भारत में हमारा सिर भी गौरव से ऊंचा हो गया है। संजीव शर्मा नौटिंघम अस्पताल गए वहां के सभी डाक्टरों विशेष रूप से डाक्टर नाईजेल, नर्स रूथ ब्रुटा और राशेल तथा अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के प्रति एक सम्मान समारोह में उनके प्रति आभार व्यक्त किया। जो लंदन के बीबीसी चैनल की हैडलाइन बनी। इसके बाद 42000 डालर्स उन्होंने नोटिंघम अस्पताल में चैरिटी के लिए भेंट करते हुए कहा कि मेरी जिंदगी बचाये जाने के बदले में यह रकम कुछ भी नहीं है लेकिन मैं इस अस्पताल को समर्पित हूं जिसके हर सदस्य ने सेवा और मानवता का धर्म निभाया है। जब मेरे परिवार के सदस्य मुझे मिल नहीं सकते थे तो सबने डाक्टर और नर्सों ने परिवार से बढ़कर सेवा की। कृपया इसे मेरी चैरिटी के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। इसे कहते हैं मानवता का धर्म निभाने वाले डाक्टरों के प्रति सम्मान। इस भावना को मेरी कलम सैल्यूट कर रही है, आंखों में आंसू हैं मगर खुशी के हैं और सिर ऊंचा है यह भारतीयता का गौरव है।
डाक्टर भगवान का ही रूप है। क्योंकि मरीजों की आस और आस्था उन पर होती है कि वे उनकी जान बचा लेंगे। दूसरों काे नया जीवन दान देने वाला ईश्वर से कम नहीं होता। कोरोना काल में डाक्टरों ने बड़ी विषम परिस्थितियों में दिन-रात संक्रमितों को बचाने के लिए काम किया। पीपीई किट पहन कर कई-कई घंटे ड्यूटी देना आसान नहीं होता। पीपीई किट पहकर वे पानी भी कम पीते थे ताकि उन्हें बार-बार टायलट न जाना पड़े। हजारों डाक्टर घर नहीं जाते थे ताकि वे अपने परिवार के सम्पर्क में नहीं आएं। अगर घर गए भी तो परिवार से अलग रहे।
एमबीबीएस के फाइनल वर्ष के छात्रों ने पहली बार विशेषज्ञ डाक्टरों के साथ काम किया। मरीज की मौत होने पर युवा डाक्टरों ने आंसू भी बहाए, उन्हें घबराहट भी हुई लेकिन मरीजों की जान बचाने में पीछे नहीं हटे।
कोरोना की दूसरी लहर की विकरालता के बीच डाक्टरों, नर्सों और अन्य स्टाफ ने जिस तालमेल के साथ काम किया, अनेक डाक्टरों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी। वे भी किसी के बेटे, पति और बच्चों के पिता थे। आज अगर भारत में कोरोना संक्रमण कम हुआ है तो इसका श्रेय डाक्टरों को जाता है। डाक्टर्स-डे पर प्रधानमंत्री ने भी कोराेना काल में जान गंवाने वाले डाक्टरों को श्रद्धांजलि दी थी। अब देश में सबसे बड़ी चुनौती हैल्थ सैक्टर को मजबूत करने की है।
हमारे देश में भी जो लोग डाक्टरों या अन्य हैल्थ कर्मियों के दम पर ठीक हो जाते हैं उन्हें डाक्टरों को कम से कम डाक्टर दिवस पर याद जरूर करना चाहिए। बहुत से लोग ऐसा करते भी होंगे लेकिन यह तय है कि अच्छी और बुरी बातें हमेशा याद रहती हैं। जब कोरोना की पहली लहर चल रही थी तो पिछले साल हमारे डाक्टर, हैल्थ कर्मी और नर्से इसी दिल्ली के कुछ भागों में उन मकान मालिकों की गलत सोच का शिकार हुए जिन्होंने उनसे मकान खाली यह कहकर करवाये कि आप कोरोना का इलाज कर रहे हैं तो हमें भी कोरोना हो सकता है परंतु मोदी सरकार के कड़े एक्शन के बाद सब कुछ सामान्य हुआ। देश के कुछ हिस्सों में डाक्टरों की टीम पर कोरोना की दवा के बारे में तथा इलाज को लेकर कोरोना जांच किये जाने को लेकर पथराव भी हुए जो बहुत शर्मनाक है लेकिन एक सकारात्मक सोच सब कुछ बदल देती है। सारी जिंदगी किताबों में खोकर और फिर लैबों में और दवाओं के प्रयोग में अपनी जिंदगी गुजार देने वाले डाक्टरों के प्रति हमारा सिर ऐसे झुक रहा है जैसे भगवान के समक्ष झुकता है। डाक्टर ही भगवान है और फिर भी डाक्टरों की यह सोच कितनी महान है जब वह यह कहते हैं कि मैं तो केवल इलाज कर रहा हूं ठीक तो भगवान कर रहा है।