भारत में नागरिक का क्या मतलब है, उसकी आजादी, उसका मान-सम्मान-गरिमा का पुलिस की ज्यादती, गिरफ्तारी से कैसे बाजा बजता है, कैसे वह देशद्रोही, आतंकवादी, हत्यारा, राजद्रोही, बलात्कारी, समाज में वैमनस्य, गृहयुद्ध बनवाने वाला कलंकी हो जाता है इसके अनुभव को सफेद-काली दाढ़ी वाले नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने बरसों झेला तो पी चिदंबरम ने भी भुगता है और अभी 21 साला लड़की दिशा रवि ने भी भुगता। हां, भारत के मौजूदा गृह मंत्री अमित शाह को 25 जुलाई 2010 को वैसे ही जेल में डाला गया था जैसे उनके पूर्ववर्ती गृह मंत्री चिदंबरम को अमित शाह की पुलिस ने जेल में डाला। बस एक बार जेल फिर भले अमित शाह आरोप मुक्त हुए हों या दंगों, जकिया जाफरी, इसरत जहां जैसे मामले मोदी-अमित शाह पर एफआईआर, एसआईटी, दस-दस घंटे लगातार पूछताछ, तड़ीपार आदेश का पूरा अनुभव हकीकत में सिविल लिबर्टी, इंसानी गरिमा का भट्ठा बैठाने वाला था। तभी दुनिया के हर सभ्य देश में, नागरिक अधिकारों की गारंटी देने वाले लोकतंत्र में, लोकतांत्रिक देशों में छोटी सी अदालत याकि दिल्ली के पटियाला कोर्ट के जस्टिस राणा से संविधान की पालना होती है। लोअर कोर्ट सिविल लिबर्टी की सरकार से पालना करवाने का अधिकार लिए होती है। उन देशों में सरकार माई-बाप नहीं होती। यह कभी नहीं होता कि कोई एक सरकार अमित शाह को जेल में डाले तो मोदी-अमित शाह बदला लेने के लिए चिदंबरम को जेल में डाले। मतलब चाहे जिस पर देशद्रोह का आरोप लगा दो, गद्दार करार दो, आंतकी करार दो, हत्यारा करार दो या भ्रष्टाचारी करार दो!
तभी 21 साला दिशा रवि को लोअर कोर्ट के जज राणा द्वारा जमानत पर रिहा करना व राजद्रोह या देशद्रोह के डंडे पर बेबाकी दिखाना सिर्फ सत्य और हिम्मत का मामला नहीं है, बल्कि 138 करोड़ नागरिकों की आजादी, मानवाधिकारों की मशाल की बानगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इमरजेंसी भले न लगाई हो लेकिन पूरी दुनिया में, भारत के जन-जन में यह हवा बनी है कि नागरिक आजादी आज केवल भक्तों-समर्थकों के लिए है और बाकी विरोधी हैं तो वे दुश्मन हैं इसलिए मौका मिले, हिमाकत करता दिखे तो अपराधी करार दे कर पुलिस से जेल में डलवाओ और न्यायमूर्तियों के संवैधानिक-प्रशासकीय मंदिर आंख-कान-नाक बंद किए कलम को सरकारी बनाए रखें।
मामला अघोषित इमरजेंसी का नहीं है। बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बतौर गृह मंत्री अमित शाह के बनते उस रिकार्ड का है कि कितने नौजवानों को, एक्टिविस्टों, विरोधियों, आलोचकों को जेल में डाल रहे हैं। अपने को भयावह आश्चर्य है कि जिस पुलिस, जिन जांच एजेंसियों से नरेंद्र मोदी, अमित शाह सालों जुल्म, दमन, घुटन झेलते रहे उसी से भारत माता के नागरिकों को चाहे जिस आरोप में जेल में डलवा दे रहे हैं! क्या इन्हें इतना भी समझ नहीं आ रहा है कि जो करा रहे हैं उससे दस-बीस साल बाद जब भी सत्ता बदलेगी तो उस सत्ता को संघ-भाजपा के लोगों को देश तोड़क, समाज तोड़क, आंतकी, सोशल मीडिया में वैमनस्य फैलाने जैसे आरोपों में जेल में डालने में कितना वक्त लगेगा!
तभी पटियाला हाउस कोर्ट के जज राणा से संघ-भाजपा-मोदी-शाह के लिए भी सोचने का मौका है कि कुछ भी हो जाए देश सिविल लिबर्टी की जी जान से रक्षा करने वाला बनें। नागरिक यदि इंसान की तरह नहीं जीये और 21 साला दिशा को भी यदि आजादी से सोचने, बोलने, आंदोलन करने के पंख नहीं मिले तो फिर पिंजराबंद पक्षी और इंसान में कैसे फर्क? हम लोकतंत्र में जीते हुए हैं या कम्युनिस्ट तानाशाही में? किस हिंदू विचार, किस सावरकर से मोदी-शाह ने समझा कि अभिव्यक्ति की आजादी पर कट्टरवादी इस्लामी देशों जैसी पाबंदी में राज करना ही हिंदू राष्ट्र बनाना है?
तभी न जानें क्यों अपने मन में यह गलतफहमी बनी है कि मोदी-शाह, चिदंबरम सब सिविल लिबर्टी में अपने साथ हुई ज्यादतियों, अनुभवों को याद कर सोचेंगे कि अच्छा हुआ जो दिशा की आजादी की छोटी अदालत ने चिंता कर चिराग बनाया।