सतह पर कलह

पंजाब में कांग्रेस को जिस तरह की चुनौतियों का सामना कर पड़ रहा है, वह ज्यादा गंभीर इसलिए है

Update: 2021-06-03 03:03 GMT

पंजाब में कांग्रेस को जिस तरह की चुनौतियों का सामना कर पड़ रहा है, वह ज्यादा गंभीर इसलिए है कि यह मुश्किल पार्टी को अपने विपक्ष या किसी अन्य दल की ओर से नहीं पेश की जा रही है, बल्कि मुख्य वजह अंदरूनी स्तर पर मतभेदों का गहराते जाना है। हालत यह हो गई है कि कांग्रेस को इस कलह पर काबू पाने के लिए तीन सदस्यों की एक समिति गठित करनी पड़ी और संबंधित नेताओं को तलब करना पड़ा। मंगलवार को इस समिति के सामने पेश होने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने जिस तरह कहा कि 'सत्य प्रताड़ित हो सकता है, पराजित नहीं', उससे साफ लगता है कि आपसी खींचतान से उलझा मामला अभी आसानी से नहीं सुलझने वाला है।

गौरतलब है कि वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में कांग्रेस ने समिति को यह जिम्मेदारी सौंपी है कि वह पंजाब में पार्टी के भीतर आपसी कलह से गहराते संकट के बीच अलग-अलग पक्षों से बात करके मसले को सुलझाने की कोशिश करे। इसी क्रम में समिति के सामने पेश होने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा कि पंजाब के लोगों की जो ताकत सरकार के पास जाती है, वह लोगों के पास वापस आनी चाहिए… जीतेगा पंजाब और जीतेगी पंजाबियत! जाहिर है, सिद्धू यह संदेश देना चाहते हैं कि वे दरअसल पंजाब के लोगों के अधिकार का सवाल उठा रहे हैं और उनकी अपनी कोई महत्त्वाकांक्षा नहीं है। लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्धू के बीच जैसी खींचतान सामने आई है, उसमें इतने ही भरोसे के साथ नहीं कहा जा सकता है कि दोनों पक्षों के सवाल वास्तव में जनता के सरोकार से जुड़े हैं।
मामला अब केवल सिद्धू तक सिमटा नहीं हुआ है। विधायक परगट सिंह और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कुछ अन्य नेताओं ने भी मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। सच यह है कि पिछले कुछ समय से अमरिंदर सिंह और सिद्धू के बीच एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी में जिस स्तर की तल्खी देखी गई है, उसमें किसी सरोकार के बजाय महत्त्वाकांक्षाओं का टकराव ही ज्यादा दिखता है। यह जरूर कहा जा सकता है कि अगर पार्टी कलह का हल जल्दी नहीं निकाल सकी तो उसके बाद राज्य में जैसी राजनीतिक अस्थिरता पैदा होगी, उसका असर जनता के हित पर पड़ेगा। मगर अभी जो तस्वीर दिख रही है, उससे निपटने के लिए कांग्रेस को शायद ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी।
करीब चार साल पहले जब सिद्धू कांग्रेस में शामिल हुए थे, तब शायद उन्हें अपने लिए किसी उच्च पद की उम्मीद थी। वे पर्यटन सहित अन्य महत्त्वपूर्ण महकमे की जिम्मेदारी मिलने संतुष्ट नहीं थे और अमरिंदर सिंह को अपनी राह की बाधा मान रहे थे। इस बीच अपने विरोधाभासी बयानों से उपजे मतभेदों से पैदा हालात में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। लेकिन इसके बाद उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह को घेरना जारी रखा। खासतौर पर उन्होंने 2015 में बरगारी गोलीकांड के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई में ढिलाई करने का आरोप लगाया, जो सत्ता में आने के लिए कांग्रेस का एक अहम मुद्दा बना था।
वे सारी कड़ियां कलह की वजह बन रही थीं। लेकिन अब टकराव सतह पर आ चुका है। विचित्र यह है कि किसान आंदोलन के निशाने पर भाजपा के होने का सीधा फायदा उठाती कांग्रेस फिलहाल अपना ही घर संभालने के लिए जद्दोजहद कर रही है। हालांकि किसान आंदोलन के सवालों के निशाने पर राज्य सरकार भी रही है। बहरहाल, पंजाब में अगर अपने नेताओं के आपसी टकराव को समय रहते खत्म नहीं किया गया तो देश भर में पहले ही कमजोर हालत में पहुंच चुकी कांग्रेस के लिए स्थितियां ज्यादा जटिल हो सकती हैं।

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