वार्ता ही रास्ता
यह बात प्रधानमंत्री ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बातचीत के दौरान कही।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | यह बात प्रधानमंत्री ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर बातचीत के दौरान कही। उन्होंने जी-20 की अध्यक्षता मिलने के बाद अपनी प्राथमिकताओं से अवगत कराने और ऊर्जा, रक्षा और व्यापार के क्षेत्र में समीक्षा के लिए औपचारिक बातचीत की थी।
इससे दो बातें स्पष्ट हुर्इं। एक तो यह कि भारत और रूस के संबंधों में किसी तरह की खटास नहीं है। इसलिए पिछले दिनों वार्षिक भारत-रूस शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री के इस बार न जाने को लेकर जो अटकलें लगाई जा रही थीं, उनके कोई गहरे निहितार्थ नहीं हैं। फिर यह कि भारत का सरोकार रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर बना हुआ है और वह चाहता है कि किसी भी तरह बातचीत के जरिए इसका समाधान निकाला जाए।
जबसे रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है, विभिन्न मौकों पर प्रधानमंत्री ने रूस और यूक्रेन दोनों को युद्ध का रास्ता त्याग कर बातचीत की मेज पर बैठने की सलाह दी है। शंघाई शिखर सम्मेलन के दौरान भी जब वे पुतिन से मिले तो यही सलाह दी थी कि वे बातचीत के जरिए समाधान निकालें। तब पुतिन ने उनकी सलाह पर अमल करने का भरोसा भी दिलाया था।
रूस-यूक्रेन युद्ध को लगभग दस महीने होने आए। इसकी वजह से पूरी दुनिया की आपूर्ति शृंखला बाधित हो गई है। खासकर भारत जैसे देश, जो र्इंधन और खाद्य तेलों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हैं, उन्हें खासी परेशानी झेलनी पड़ रही है। महंगाई पर काबू पाना पहले ही तमाम देशों के लिए मुश्किल बना हुआ है, उसमें युद्ध की वजह से आपूर्ति शृंखला बाधित होने से दोहरी मार पड़ रही है।
इसलिए रूस-यूक्रेन संघर्ष पर विराम न केवल भारत, बल्कि दुनिया के सारे देशों के हित में है। चूंकि इन दोनों देशों से भारत के रिश्ते मधुर हैं, इसलिए सबकी नजर उसी पर टिकी रहती है कि वही इस मामले में हस्तक्षेप करके कुछ सकारात्मक नतीजे ला सकता है। फिर भारत सदा से युद्ध के खिलाफ और वार्ता के जरिए समस्याओं का समाधान निकालने का पक्षधर रहा है, इसलिए वह लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हुए रूस-यूक्रेन संघर्ष को रोकने का लगातार प्रयास करता आ रहा है। हालांकि देखने की बात है कि रूस भारत की सलाह पर कितना और कब अमल करता है।
इससे पहले जितनी बार भारत ने युद्ध रोकने और बातचीत से हल निकालने की सलाह दी है, कभी न तो रूस ने और न यूक्रेन ने उस पर कोई एतराज जताया है। मगर बाद में रूस ने अपने हमले बढ़ा दिए हैं। दरअसल, युद्ध एक प्रकार की सनक होती है, जिसमें हमला करने वाला जानता तो है कि युद्ध मानवता के लिए अच्छी चीज नहीं है, मगर वह अपनी मूंछ ऊंची रखने के लिए करता वही है, जो उसने ठान रखा है।
इसलिए रूस भारत की सलाह सुन तो लेता है, मगर अभी तक उस पर गंभीरता से विचार करता नहीं देखा गया। यूक्रेन भी कहां झुकने को तैयार है। इसी जिद में वह अपना बहुत कुछ गंवा चुका है। उसकी भरपाई में बहुत वक्त लगेगा। ऐसे में मानवता की रक्षा के लिए भी इन दोनों देशों के बीच के संघर्ष को रोकना बहुत जरूरी है। मगर टेलीफोन पर या सम्मेलनों आदि में मिलने पर दी गई ऐसी सलाहें शायद ही कारगर साबित हों।