लखीमपुर में धोबी पछाड़...मामले में देर से ही सही, लेकिन सही दिशा में काम हुआ।
लखीमपुर में धोबी पछाड़
नवनीत गुर्जर का कॉलम:
समय कौन है? वो धोबी है। जात से नहीं। कर्म से। जात से भी भला कोई कुछ हो सकता है? मेरी समझ में, जो भी, जो कुछ भी होता है, कर्म से ही होता है। जात से नहीं। फिर कम से कम धोबी तो कोई जात से नहीं ही हो सकता। छोटा हो या बड़ा, राजा हो या रंक, धोबी घाट पर सब की धुलाई होती है। कूट- कूटकर। पीट- पीटकर। कितना सख्त और मजबूत होता है ये धोबी। त्रेता युग से आज तक अकेला ही सारे जहान की धुलाई करता आ रहा है।
उसकी आवाज इतनी तीखी और दमदार कि खुद के हाल भी बयान कर दे तो सीता को वनवास हो जाए। उसकी मार इतनी सख्त कि समय की मार भी फीकी पड़ जाए। देर से ही सही, समय का धोबी पिल पड़ा और खूब धोया। लखीमपुर मामले को। जरिया बनी एसआईटी और मंत्री के बेटे की धुनाई कर डाली। जहां से भी, जो कुछ भी पकड़ में आया, धुन डाला। खूब धोया। जमकर पछीटा।
एक जमाना था जब जेसिका जैसे कई घातक और हृदय विदारक मामले हुए और राजनीतिक दबाव के कारण किसी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। कोई दोषी नहीं पाया गया। सब के सब बेदाग निकले। सब के सब बरी हो गए। एक राज्य में तो जुआरी को पकड़ने दौड़ रहा पुलिस जवान इसलिए सस्पेंड कर दिया गया कि उस अमुक वर्ग के जुआरी ने तालाब में छलांग लगाकर जान दे दी थी।
समदर्शी सरकार ने जुआरी के परिवार को भरपूर मुआवजा भी दिया और एक परिजन को सरकारी नौकरी भी। नतीजा यह हुआ कि पुलिस वाले जुआरियों को पकड़ने से कतराने लगे! हालांकि लखीमपुर वाला मामला भी टेढ़ा ही था। एक कोर्ट ही था जो सख्त से सख्त टिप्पणी करता जा रहा था। बाकी सब के सब चुप ही थे। लेकिन सच यह है कि चुपचाप कानून अपना काम कर रहा था।
संयोग देखिए कि एक दिन काशी- विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण हुआ और दूसरे ही दिन लखीमपुर पर एसआईटी का नया खुलासा। केस की तमाम धाराएं बदल डालीं। मंत्री पुत्र पर गैर इरादतन नहीं, बल्कि इरादतन हत्या का केस। सही है, यहां की एक ही सरकार है। महादेव। जो कुछ होता है महादेव ही करते हैं। हो सकता है लखीमपुर मामले में भी न्याय की राह महादेव ने ही सुझाई हो।
वरना केंद्रीय मंत्री के बेटे को हत्या के मामले में मुख्य आरोपी बनाना… तौबा, तौबा। मारे गए किसानों के परिवार तो वर्षों तक न्याय की आस में आंसू बहाते फिरते, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। बहरहाल, लखीमपुर मामले में देर से ही सही, लेकिन सही दिशा में काम हुआ। मंत्री का बेटा किसानों को गाड़ी से कुचल दे और कोई कुछ न बोले, कुछ न लिखे ऐसा हो तो सकता था, लेकिन नहीं हुआ।
कम से कम क़ानून का राज चला। न्याय के लिए सुगम राह बनी। मामला कैसा भी हो, आरोपी मंत्री हो या उसका बेटा, कानून की लाठी ऐसी ही चलनी चाहिए, जैसी लखीमपुर में चली या चलाई गई। लखीमपुर मामले में देर से ही सही, लेकिन सही दिशा में काम हुआ। मंत्री का बेटा किसानों को गाड़ी से कुचल दे और कोई कुछ न बोले, कुछ न लिखे ऐसा हो तो सकता था, लेकिन नहीं हुआ। कम से कम क़ानून का राज चला।