लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
दो दिन अधीर रंजन जी की जुबान की फिसलन ने लिए। संसद में हंगामा होता रहा। सांसद निलंबित होते रहे… कुछ बहाल होते रहे!
सुधीश पचौरी: दो दिन अधीर रंजन जी की जुबान की फिसलन ने लिए। संसद में हंगामा होता रहा। सांसद निलंबित होते रहे… कुछ बहाल होते रहे! लेकिन अधीर सर भी क्या करें? उनका अंदाजेबयां ही कुछ ऐसा है, जो कहता है: 'दे दिल उनको जो न दे मुझको जुबां और!'
हम तो हंगामे को भी बहस का एक तरीका मानते हैं। अपने हंगामाखेज लोकतंत्र में इस 'शोर' का ही तो मजा है! बहरहाल, इसी बीच स्मृति ईरानी को अदालत ने सही माना, लेकिन क्या कांग्रेसी नेताओं पर मानहानि का मामला अब भी जारी है?
फिर एक दिन एक एंकर ने कांवड़ियों के बीच 'फरमानी रानी' के एक सुपरहिट भजन 'हर हर शंभू शंभू… कर्पूर गौरं, करुणावतारं, संसार सारं, भुजगेंद्र हारं…' सुनवा दिया! ताल नई, धुन नई कि सुना तो मजा आ गया। क्या कच्ची खनकदार आवाज और कैसी बुलंदी! संस्कृत का कैसा साफ-सुथरा उच्चारण और वह भी एक 'मुसलमानी' के कंठ से!
ऐसे में एक फतवे वाले भी फरमा गए कि इस्लामिक कायदे के अनुसार यह ठीक नहीं। दूसरे फतवे वाले चैनल से ही ललकारते रहे कि यह सब हदीस के हिसाब से ठीक नहीं। इस पर उनको एंकर ने ही जम के ठोका!