लोकतंत्र और राजद्रोह
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि बात-बात पर राजद्रोह की संगीन धाराओं में मुकदमा करने की प्रवृत्ति गलत है
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि बात-बात पर राजद्रोह की संगीन धाराओं में मुकदमा करने की प्रवृत्ति गलत है और इस पर रोक लगनी चाहिए। पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज किए गए राजद्रोह के मामले में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हरेक पत्रकार इस मामले में संरक्षण का हकदार है। कोर्ट ने इस मामले में केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार केस में 1962 में दिए अपने फैसले का भी हवाला दिया। उस फैसले में ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि राजद्रोह की धाराएं सिर्फ उन्हीं मामलों में लगाई जानी चाहिए, जिनमें हिंसा भड़काने या सार्वजनिक शांति को भंग करने की मंशा हो। इससे यह बात रेखांकित होती है कि शीर्ष अदालत ने आजाद भारत में इस कानून के इस्तेमाल पर कोई रोक भले न लगाई हो, छह दशक पहले ही इसके प्रयोग की सीमाएं पूरी सख्ती से निर्धारित कर दी थीं।