उम्र घटाता प्रदूषण: तत्काल कारगर नीति की आवश्यकता
एक अमेरिकी शोध समूह का निष्कर्ष उस धारणा की पुष्टि करता है, जो बताती है कि देश में प्रदूषण जानलेवा साबित हो रहा है
एक अमेरिकी शोध समूह का निष्कर्ष उस धारणा की पुष्टि करता है, जो बताती है कि देश में प्रदूषण जानलेवा साबित हो रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा किये गए अध्ययन में बताया गया है कि कुछ शहरों में वायु प्रदूषण भारतीयों की जीवन प्रत्याशा को नौ साल तक कम कर सकता है। कह सकते हैं कि वायु प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित लोग अपनी जीवन प्रत्याशा को तेरह प्रतिशत अधिक खो सकते हैं। उम्र में कमी के अलावा लोग कई तरह के असाध्य रोगों की भी चपेट में आ जाते हैं, जिसका दंश उन्हें सालों-साल भुगतना पड़ता है। फलत: परिवारों को भावनात्मक व आर्थिक संकट भी झेलना पड़ता है। यह अध्ययन स्मरण कराता है कि भारत में गंगा के मैदानी इलाकों के शहरों में करीब 48 करोड़ लोग जिस प्रदूषित वातावरण में सांस ले रहे हैं, उसका स्तर यूरोप व उत्तरी अमेरिकी की तुलना में कई गुना अधिक है। निस्संदेह, समय-समय पर सामने आने वाले तथ्यों के दृष्टिगत नागरिकों व नीति-निर्माताओं को इसे खतरे की घंटी मानते हुए सजग हो जाना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि हाल के वर्षों में देश के लोगों की जीवन प्रत्याशा में आशातीत वृद्धि हुई है। दुनिया में बहुचर्चित मेडिकल जर्नल लैंसेट के अनुसार वर्ष 1990 और 2019 के बीच भारत में जीवन प्रत्याशा 59.6 से बढ़कर 70.8 हुई है। हालांकि यह प्रत्याशा राज्यों के स्तर पर अंतर रखती है। यह भी हकीकत है कि दुनिया में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में एक बड़ा हिस्सा भारत का भी है। वहीं संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि वर्ष 2100 तक भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 81 वर्ष होगी। लेकिन यह भी हकीकत है कि बेहतर जीवन के लिये हमें प्रदूषण की समस्या का कारगर समाधान तलाशना होगा। हालांकि, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की रिपोर्ट का आकलन वर्ष 2019 की स्थिति पर आधारित है, ऐसे में हवा में पीएम कणों की मौजूदा स्थिति का आकलन करके नीतियों का निर्धारण करने की जरूरत है क्योंकि अब प्रदूषण महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश आदि को भी चपेट में लेने लगा है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।