धराशायी रुपया

डालर के मुकाबले भारतीय रुपया लगातार गिर रहा है। यह अब तक के सबसे निचले स्तर पर गिर गया और अस्सी रुपए के मनोवैज्ञानिक निशान को तोड़ दिया। रूस-यूक्रेन संघर्ष, गैसोलीन और डीजल की बढ़ती कीमतें तथा वैश्विक मुद्रास्फीति सभी गिरावट में योगदान दे रहे हैं। इसका मुख्य कारण महंगाई भी है।

Update: 2022-07-22 06:15 GMT

Written by जनसत्ता; डालर के मुकाबले भारतीय रुपया लगातार गिर रहा है। यह अब तक के सबसे निचले स्तर पर गिर गया और अस्सी रुपए के मनोवैज्ञानिक निशान को तोड़ दिया। रूस-यूक्रेन संघर्ष, गैसोलीन और डीजल की बढ़ती कीमतें तथा वैश्विक मुद्रास्फीति सभी गिरावट में योगदान दे रहे हैं। इसका मुख्य कारण महंगाई भी है। कच्चे तेल की कीमतें अस्थिर रही हैं और रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के चलते अब भी बढ़ रही हैं।

वस्तुओं की कीमतों में वैश्विक बाजार में वृद्धि हुई है। नतीजतन, भारत का आयात बिल बढ़ गया है। रुपए के अवमूल्यन में योगदान देने वाला एक अन्य प्रमुख कारक विदेशी निवेशकों के विश्वास में कमी है। इस साल भारतीय शेयरों में विदेशी निवेश डालर के मुकाबले ऐतिहासिक निचले स्तर पर आ गया। अगर कई विदेशी निवेशक अपना पैसा बाजार से अधिक तेजी से निकालना शुरू करते हैं, तो इससे शेयर बाजार में खलबली मच सकती है। इसके अलावा, रुपए के मूल्यह्रास के परिणामस्वरूप, लाखों और अरबों रुपए बाजार से गायब हो सकते हैं, जो छोटे निवेशकों के लिए विनाशकारी होगा। फिर भारत में गैसोलीन और डीजल के आयात की लागत अधिक हो सकती है।

हालांकि, अन्य प्रमुख विश्व मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत कम गिरी है। ऐसे में हम वैश्विक बाजार में हो रही उथल-पुथल से पूरी तरह बच नहीं पा रहे हैं। कई व्यवसाय अपनी व्यावसायिक प्रथाओं को बदल रहे हैं, क्योंकि वे डालर के मुकाबले रुपए की गिरावट के बारे में चिंतित हैं। ऐसे में ये व्यवसायी आने वाले महीनों में अपने सामान की लागत बढ़ाने का फैसला कर सकते हैं, जिसका सीधा असर उपभोक्ता के बटुए पर पड़ेगा।

छुट्टियों का मौसम शुरू होने से पहले टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं, मोबाइल फोन और अन्य उपकरणों के कुछ निर्माता कीमतें बढ़ाने के मूड में हैं। भारतीय रुपए की गिरावट के परिणामस्वरूप जनता ने अपनी खरीद पर और भी अधिक कटौती करने का प्रयास करना शुरू कर दिया है, जिसका बिक्री पर प्रभाव पड़ता है। ऐसे में सरकार को भारतीय अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए कई नीतियां लागू करनी चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक को रुपए की गिरावट रोकने के लिए कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

ग्रेट ब्रिटेन की राजनीति में इस समय जो हो रहा है, वह वैसे तो वहां की कंजर्वेटिव पार्टी का अंदुरूनी मामला है, मगर इसके चलते पूरे देश और वहां के लोगों का नुकसान हो रहा है। इस समय देश में कोई स्थायी और मजबूत सरकार नहीं है। यह सिलसिला आगामी पांच सितंबर तक चलता रहेगा। जिस दिन एक लाख साठ हजार टोरी पार्टी सदस्यों के मतों की गिनती होगी, जिसमें उन्हें दो लोगों, पूर्व वित्तमंत्री ऋषि सुनक और विदेश मंत्री लीज ट्रस में से किसी एक को चुनना है, जो कार्यवाहक पीएम बोरिस जानसन का स्थान लेंगे। बहुत संभव है कि भारतीय मूल के ऋषि सुनक को ही पार्टी सदस्य चुनें, क्योंकि इन्होंने जानसन कैबिनेट से इस्तीफा दिया। मगर लीज ट्रस का जानसन के प्रति निष्ठा पूर्व की भांति बनी हुई है, इसीलिए उन्होंने अब तक इस्तीफा नहीं दिया है।

मगर जो मुख्य समस्या है, उस पर कोई बात करने को तैयार नहीं है। पिछले बारह वर्षों से वहां टोरियों की सरकार है। उनके रूढ़िवादी सोच की वजह से देश इस समय स्थिर सरकार से वंचित है। यहां तक कि गलत ब्रेक्जिट के कारण आम ब्रिटिश लोगों का हाल बेहाल होता जा रहा है। यूरोपीय यूनियन से अलग होने के जो फायदे गिनाए गए थे, जो सपने दिखाए गए थे, उन सबका कहीं कोई अता-पता नहीं है। इसलिए अगला आम चुनाव जब भी होगा, ब्रिटिश लोग टोरियों को जरूर पराजित करेंगे।


Tags:    

Similar News

-->