'स्वतंत्र' पत्रकारिता के खतरे
स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया को जमानत मिल गई है। लेकिन
स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पुनिया को जमानत मिल गई है। लेकिन उनकी गिरफ्तारी और उन्हें जेल भेजे जाने की घटना से कई अहम सवाल उठ खड़े हुए हैं। ये सवाल मीडिया की आजादी और पत्रकारों के दमन से संबंधित हैं। मनदीप के बचाव पक्ष ने शुरू से कहा कि पुलिस की एफआईआर में कई गंभीर समस्याएं हैं। एफआईआर के मुताबिक कथित मारपीट और खींचतान की घटना और एफआईआर दर्ज होने के बीच करीब सात घंटे देर है। इससे पता चलता है कि एफआईआर दर्ज करने का फैसला बाद में लिया गया। जबकि आरोप पुलिसकर्मियों से मारपीट करने का था। ऐसी घटनाओं में इतनी देर आम तौर पर नहीं होती। पुलिस के मुताबिक सिंघु बॉर्डर पर बीते शनिवार को पुनिया ने सुरक्षा के लिए लगाए बैरिकेड को तोड़कर घुसने की कोशिश की और पुलिस कांस्टेबल को घसीटा। पुलिस का कहना है कि मनदीप ने अपना प्रेस पहचान पत्र भी नहीं दिखाया, जबकि उनके दूसरे साथी को प्रेस कार्ड दिखाने पर जाने दिया गया। लेकिन प्रेसकार्ड न होना मनदीप की गिरफ्तारी का कोई आधार नहीं हो सकता।