कोरोना का खतरनाक वैरिएंट

वायरस का म्यूटेशन कोई नई बात नहीं है

Update: 2021-03-27 05:50 GMT

वायरस का म्यूटेशन कोई नई बात नहीं है। वायरस लम्बे समय तक जीवित रहने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को संक्रमित करने के लिए अपने जीनोम बदलते रहते हैं। ऐसे ही बदलाव कोरोना वायरस में भी हो रहे हैं। वायरस जितना मल्टीप्लाई होता है, उसमें म्यूटेशन होते हैं। इससे नए और बदले रूप में वायरस सामने आता है, जिसे वैरिएंट कहते हैं। देश में जिस ढंग से कोरोना के एक्टिव केस बढ़ रहे हैं, इसका कारण वायरस के नए वैरिएंट के कारण भी हो सकते हैं। 18 राज्यों में कोरोना के वैरिएंट्स मिले हैं, इन्हें वैरिएंट्स आफ कंसर्न यानि चिंताजनक वैरिएंट्स कहा जा सकता है। महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में खतरनाक वैरिएंट्स सामने आया जिसे डबल म्यूटैंट वैरिएंट्स कहा गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी कोरोना की नई लहर से चिंतित हो उठे हैं और देशवासियों में भी दोबारा डर का माहौल बन गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि सिंगल म्यूटेशन की तुलना में डबल म्यूटैंट वैरिएंट में इन्फैक्शन की दर बढ़ाने की सक्षमता ज्यादा होती है। अब तक 771 वायरस आफ कंसर्न सामने आ चुके हैं। कोरोना पर एसबीआई की 28 पृष्ठों की रिपोर्ट ने लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी कर दी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर सौ दिनाें तक चल सकती है। इसका अर्थ यही है कि कोराना का खतरनाक वैरिएंट चार या पांच माह तक और कहर बरपाएगा।


देश और दुनिया ने पहले ही सख्त लॉकडाउन झेला था ​जिसकी पीड़ा का अहसास हम सबको आज भी है। दुनिया की बड़ी आबादी गरीबी की ओर बढ़ चुकी है। बेरोजगारी की दर काफी बढ़ चुकी है। अभी तक लोग सम्भल नहीं पा रहे। अगर कोरोना की मार लम्बे समय तक पड़ी तो मानव के लिए बड़ी चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं।

राज्यों ने 10,787 पॉजिटिव सैम्पल शेयर किए थे। जीनोम सीक्वेंसिंग में सबसे ज्यादा 736 सैम्पल ब्रिटेन वैरिएंट्स के मिले हैं। पंजाब से विश्लेषण ​किए गए 400 सैम्पल्स में 320 ब्रिटेन वैरिएंट के मिले। यह सैम्पल उन लोगों के थे जो विदेश यात्रा करके आए या लोग उनके सम्पर्क में आए। नए वैरिएंट पर इम्यूनिटी का असर भी नहीं रहा। यद्यपि स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि स्वदेशी वैक्सीन नए वैरिएंट में भी कामयाब है। अब प्रभावित राज्य नए सिरे से बचाव के उपाय सख्त कर रहे हैं। निःसंदेह ऐसी स्थिति में बचाव ही बड़े उपचार की भूमिका निभा सकता है।

कोरोना महामारी के खिलाफ जंग जीतने का केवल एक ही तरीका है कि वैक्सीनेशन की स्पीड बढ़ाई जाए। एक दिन में अधिकतम 34 लाख लोगों को कोरोना वैक्सीन दी जा रही है। अगर इसे बढ़ाकर 40 से 45 लाख किया जाए तब भी 45 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों को वैक्सीन देने में चार माह का समय लगेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि वायरस में म्यूटेशन की वजह से रीइंफेट होने का खतरा भी बढ़ रहा है। यानी जिन्हें कोरोना वायरस का इंफेक्शन हो चुका है और निगेटिव हो चुके हैं, उन्हें भी इन नए वैरिएंट्स की वजह से दोबार इंफेक्शन होने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

25 मार्च को ही कोरोना का एक साल पूरा हुआ। इस दौरान हमने दर्द के पहाड़ लांघे, संकटों से समुद्र नापे और बेबस के घने अंधेरे में भी उम्मीदों के ​दीये जलाए रखे। हमारी इच्छा शक्ति ने अजेय दिख रही महामारी को घुटनों पर ला दिया था। खतरा अभी टला नहीं है, इसलिए हमें बहुत संयम रखने की जरूरत है। लोगों को यदि लॉकडाउन से बचना है तो उन्हें कोविड-19 से जुड़े प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए। वैक्सीन लगाना भी जरूरी है। वैक्सीन हमें भीतर से मजबूती देती है लेकिन बाहरी सावधानी हमें बनाए रखनी है। यदि लोगों ने सामाजिक दूरी की जिम्मेदारी भी नहीं निभाई तो सरकारें लॉकडाउन लगाने को विवश होंगी। चुनावी राज्यों में स्थिति काफी विकट है। केरल और तमिलनाडु में संक्रमण तेजी से फैल रहा है। सार्वजनिक आयोजनों में भी सावधानी बरती जानी चाहिए। चुनाव प्रचार के दौरान कोई मास्क नहीं पहन रहा, कहीं कोई सोशल डिस्टेंसिंग नजर नहीं आ रही। अगर ऐसे ही चलता रहा तो देश की मुश्किलों से हासिल सफलता पर पानी फिर सकता है।

एक वर्ष बाद हम फिर उसी मोड़ पर आ गए हैं जहां हमारे सामने अनेक चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं। कोविड-19 प्रोटोकॉल को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना ही सबसे बड़ी देशभक्ति है। क्योंकि मानव रक्षा ही पहला धर्म होना चाहिए, इसी में देशभक्ति निहित है।


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