फसल की बात: खाद के लिए आयात पर टिका भरोसा

ऐसे में जितनी जल्दी हो सके, खादों का आयात कर, गोदामों तक पहुंचाना इस खाद समस्या का समाधान है।

Update: 2021-10-27 01:46 GMT

रबी की बुआई सर पर है और पूरे देश में खाद के लिए हाहाकार मचा है। सहकारी समितियों पर सुबह से किसान लाइन लगाकर खड़े हो जाते हैं। खाद नहीं मिलती है, तो फिर दूसरे दिन लाइन में लगने के लिए सुबह-सुबह घर से निकल पड़ते हैं। इफको द्वारा मांग की तुलना में केवल चालीस प्रतिशत के आसपास डीएपी (डी-अमोनियम फास्फेट) और एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम) खादों की आपूर्ति हो पा रही है। इसी कारण दिन भर किसान खाद के इंतजार में समितियों पर बैठे रहते हैं, इससे खेती-किसानी का काम प्रभावित होता है।यह स्थिति तब है, जब हाल की बरसात ने खाद की मांग को थोड़ा नियंत्रित कर रखा है। खेतों के गीला हो जाने से जुताई-बुआई के काम में विलंब हो रहा है। जैसे ही खेत सूखेंगे, जुताई तेज होगी और सरसों, चना, गेहूं, आलू, प्याज आदि रबी फसलों की बुआई के लिए डीएपी की मांग और बढ़ेगी। डीएपी की कमी कई वर्षों से बनी हुई है। हमने इसका कोई स्थायी हल नहीं निकाला है। सहकारी समितियों से सब्सिडी युक्त खाद प्राप्त करना भागीरथ प्रयास हो चुका है।

अभी हाल में ललितपुर के एक किसान ने लाइन में लगे-लगे दम तोड़ दिया। दूसरी ओर खाद की कालाबजारी जोरों पर है। निजी दुकानों पर महंगे दामों पर खाद खरीद पाना हर किसान के बस में नहीं है। समस्या की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने इसी अक्तूबर महीने में रूस के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। इसका मकसद डीएपी की कीमतों को स्थिर रखना और जॉर्डन, चीन तथा मोरक्को से आयात भार को कम करना है। यह काम पहले ही कर लेना चाहिए था, जिससे रबी का सीजन शुरू होने के पहले पर्याप्त स्टॉक जमा हो जाता।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीएपी खादों के दाम बढ़ने से समस्या गंभीर हो गई है। फरवरी में आयातित डीएपी की कीमत 383 डॉलर प्रति टन थी, जो अप्रैल में 515 डॉलर प्रति टन हो गई। यानी पैंतीस प्रतिशत की वृद्धि मात्र दो महीने में हो गई। इस वृद्धि के कारण एक अप्रैल से डीएपी खाद की कीमत 1,200 रुपये से बढ़कर 1,900 रुपये प्रति बैग हो गई थी।
इसी कीमत को कम करने के लिए 19 मई को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय कमेटी की बैठक हुई थी और सरकार ने 14,775 करोड़ रुपये की अतिरिक्त खाद सब्सिडी बढ़ाने का निर्णय लिया था। औसतन प्रति वर्ष 80,000 से 85,000 करोड़ रुपये की खाद सब्सिडी का प्रावधान होता है। इस अतिरिक्त सब्सिडी को बढ़ाकर सरकार ने डीएपी खाद की कीमत को पुराने मूल्य 1,200 रुपये प्रति बैग पर ही उपलब्ध कराने का प्रावधान किया, मगर इससे खाद की उपलब्धता का कोई हल न निकल पाया।
मुख्य समस्या डीएपी आपूर्ति की है। अपने देश की कुल मांग का मात्र एक तिहाई उत्पादन इफको द्वारा किया जाता है, बाकी दो तिहाई की पूर्ति विदेशों से आयात द्वारा की जाती है। भारत में जितने डीएपी का उत्पादन होता है, उसके लिए कच्चा माल भी ज्यादातर विदेशों से आता है। विदेशों में दाम बढ़ने के कारण इफको के डीएपी की कीमत में भी 60 से 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। खादों के दामों में वृद्धि का सीधा असर कृषि लागत पर पड़ता है। एक अनुमान के अनुसार, केवल डीएपी के दाम बढ़ने से सोयाबीन उत्पादन में प्रति हेक्टेयर 1,400 से 2,000 रुपये की लागत वृद्धि हो जाएगी।
अब जबकि देश में उत्पादन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, समस्या का समाधान आयातित खादों की आपूर्ति पर ही निर्भर है, तब हमें इसकी तैयारी कर लेनी होगी कि बंदरगाहों से गोदामों तक खादों को पहुंचाने की त्वरित व्यवस्था हो। तब तक कृषि विभाग के अधिकारी डीएपी के विकल्प के रूप में सिंगल सुपर फॉस्फेट की दो बोरी और नाइट्रोजन फॉस्फोरस व पोटेशिययम की एक बोरी को मिलाकर खेतों में डालने का सुझाव दे रहे हैं। लेकिन ये खादें भी प्रर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं, जो किसानों की परेशानी बढ़ा रही है। ऐसे में जितनी जल्दी हो सके, खादों का आयात कर, गोदामों तक पहुंचाना इस खाद समस्या का समाधान है।
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