संकटकाल : सोना और कितना नीचे जाएगा, बहुमूल्य धातु की खोती जा रही चमक के मायने

इसलिए सोना भारत में महंगा रहता है, वहीं बांग्लादेश, नेपाल में भी सोना भारत से सस्ता है।

Update: 2022-05-02 02:44 GMT

बहुमूल्य धातु सोना इन दिनों अपनी चमक खोता जा रहा है। दो साल पहले उसने अपनी चकाचौंध से सभी को हैरान कर दिया था। उस समय सोना 55,000 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया था और लोगों की पहुंच से बाहर हो गया था। उसकी वजह थी कि उस समय दुनिया कोरोना की चपेट में थी और यह कहना मुश्किल था कि कल क्या होगा। सोने को संकट का साथी माना जाता है और युद्ध या अन्य परिस्थितियों में यह भरोसा दिलाता है। हाल ही में रूस और यूक्रेन के युद्ध के कारण सोने की कीमतों में चमक आई थी, लेकिन धीरे-धीरे वह अपने पुराने स्तर पर पहुंच गया, क्योंकि यूरोप और अमेरिका इससे कन्नी काट गए।

सोना ने निवेशकों को कभी निराश भी नहीं किया। इसलिए दुनिया भर में निवेशक अपने पोर्टफोलियो में कुछ सोना जरूर रखते हैं। भारत में तो प्राचीन काल से लड़कियों को विवाह में सोना दिया जाता रहा है, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित रहे। यहां गहने पहनने की पुरानी परंपरा रही है और इसे नारी सौंदर्य बढ़ाने का साधन माना जाता रहा है। आज भी भारत में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गहने बनते और पहने जाते हैं। यही कारण है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा सोना आयातक देश है। उसके आयात बिल का बड़ा हिस्सा विदेशों से सोने की खरीद में चला जाता है।
सारी दुनिया के केंद्रीय बैंकों में सोना जमा रखा जाता है, ताकि आर्थिक उठापटक से बचा जाए। आपको याद होगा कि भारत ने अपनी गिरती हुई अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ जापान में 46.91 टन सोना गिरवी रखा था, जिससे उसे उस समय 40 करोड़ डॉलर मिले थे। उसने ही देश को संकट से बचाया और वह दिन भी आया, जब मनमोहन सरकार ने 6.7 अरब डॉलर मूल्य का 200 टन सोना खरीदकर जमा किया। वह सोना ही भारत के विशाल विदेशी मुद्रा भंडार का आधार बना।
दुनिया के कई देश समय-समय पर ऐसा ही करते हैं। उनके केंद्रीय बैंक कभी सोना खरीदते हैं, तो कभी बेचते हैं, जिसका बाजारों पर भी असर पड़ता रहता है। बहरहाल, अभी कोरोना महामारी का खतरा टला नहीं है, लेकिन पहले जैसा आतंक नहीं रहा और उद्योग-कारोबार ठप नहीं हुए। इसका सकारात्मक असर पड़ा है, जिसके नतीजे में सोने का भाव गिरने लगा। लेकिन अभी हाल में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के लक्षण दिखने लगे और डॉलर यूरो व पाउंड के मुकाबले मजबूत होने लगा।
यह एक सामान्य-सी बात है कि जब डॉलर मजबूत होता है, तो सोना गिरने लगता है, क्योंकि निवेशक डॉलर में पैसे लगाते हैं। दूसरी ओर सरकारी बॉन्ड की यील्ड यानी मुनाफा बढ़ गया है। अमेरिका में ट्रेजरी बॉन्डों में निवेशक बहुत धन लगाते हैं। इसका ही असर है कि सोना गिरता जा रहा है। ताजा खबरों के मुताबिक, वहां सोना 1,900 डॉलर प्रति औंस से नीचे जा गिरा है और उम्मीद की जा रही है कि यह अपने बहुत पुराने स्तर 1,800 डॉलर प्रति औंस पर आ जाएगा। इस समय सोना अंतरराष्ट्रीय सटोरियों के रडार में नहीं है और वे इसमें ज्यादा निवेश नहीं कर रहे हैं।
उनका ज्यादातर निवेश मुख्य रूप से डॉलर और सरकारी बॉन्डों में हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक, जिसे वहां फेड कहते हैं, अब काफी आक्रामक हो गया है और बढ़ती मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिए वह ब्याज दरें बढ़ा सकता है। उसकी सख्त नीतियों का असर सोने की कीमतों पर पड़ेगा और वे गिरेंगी। इसके अलावा, चीन, जो सोने का दूसरा बड़ा खरीदार है और वहां की जनता बड़े पैमाने पर सोना तथा इसके गहने खरीदने लगी थी, अब इस समय कोरोना के कारण खरीदारी बहुत कम कर रही है।
इससे सोने की मांग में काफी कमी आई है। कुछ अंतरराष्ट्रीय जानकारों का कहना है कि इस साल के अंत में सोना 1,600 डॉलर प्रति औंस तक जा सकता है। जहां तक भारत की बात है, तो यहां भी सोने के दाम धीरे-धीरे उतार पर हैं। फिलहाल शादियों का सत्र चल रहा है और इसलिए इसमें थोड़ी तेजी है, लेकिन बारिशों के दिन आते ही यहां भी इसकी कीमतें गिरने लगेंगी। यहां सोने पर कुल सरकारी टैक्स लगभग 15 प्रतिशत है और उसका ट्रांसपोर्टेशन भी महंगा है। इसलिए सोना भारत में महंगा रहता है, वहीं बांग्लादेश, नेपाल में भी सोना भारत से सस्ता है।

सोर्स: अमर उजाला 

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