जुल्म की इबारत

अफगानिस्तान के जलालाबाद शहर में शांतिपूर्ण विरोध करते लोगों पर तालिबान द्वारा फायरिंग की घटना विचलित करती है।

Update: 2021-08-20 02:36 GMT

अफगानिस्तान के जलालाबाद शहर में शांतिपूर्ण विरोध करते लोगों पर तालिबान द्वारा फायरिंग की घटना विचलित करती है। इस घटना में कम से कम तीन लोगों के मारे जाने और करीब एक दर्जन के घायल होने की सूचना है। नागरिकों की ओर से तालिबान के शांतिपूर्ण विरोध की खबरें कुछ अन्य शहरों से भी मिल रही हैं। काबुल में भी कुछ महिलाओं के हाथों में पोस्टर लेकर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने का विडियो वायरल हो रहा है। ये तस्वीरें और विडियो बताते हैं कि हिंसा और दहशत का इतिहास रखने वाले तालिबान के खिलाफ वहां आवाजें उठ रही हैं और उससे यह बर्दाश्त नहीं हो रहा।

इससे यह भी पता चलता है कि तालिबान ने भले ही देश के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है, लेकिन सभी लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया है। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि पिछले 20 वर्षों में अफगानिस्तान में बड़े बदलाव आए थे। समाज में खुलापन आया था। लड़कियों को काम करने और पढ़ने की आजादी मिली थी। परदे में रहने की बंदिशें नहीं थीं। इस बीच, सड़क और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं बेहतर हुईं। अफगानिस्तान में 11 फीसदी लोगों की इंटरनेट तक पहुंच है, जो साल 2000 में शून्य फीसदी था। इन सबके बीच प्रशासन से लोगों की उम्मीदें भी बढ़ी हैं। वहीं, 1996-2001 के बीच जब तालिबान का देश पर राज था, तब अफगानिस्तान मध्ययुगीन दौर में चला गया था। औरतों पर तमाम बंदिशें थीं। पुरुषों को दाढ़ी रखनी पड़ती थी। अपराधों के लिए बीच सड़क पर सजा दी जाती थी।
इन प्रदर्शनों को देखकर लगता है कि लोग उस दौर के जुल्म को भूले नहीं हैं और वे पिछले 20 वर्षों में मिली आजादी भी गंवाने के लिए तैयार नहीं हैं। इन विरोध प्रदर्शनों को जिस तरह से दबाने की कोशिश हुई, उसने नई और सुधरी हुई छवि के तालिबान के दावों पर भी सवालिया निशान लगा दिया। यूं तो राजधानी काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने देश भर में आम माफी का ऐलान किया। लोगों से बेखटके सामान्य जीवन जीने की अपील की। महिलाओं को शरीयत के मुताबिक सरकार तक में हिस्सेदारी देने जैसी बातें भी कीं।
लेकिन जलालाबाद की घटना से लगता है कि तालिबान बदला नहीं है, वह सिर्फ बदलने का दिखावा कर रहा है। वह भी इसलिए कि देश पर शासन करने के लिए उसे लोगों का समर्थन और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से स्वीकृति चाहिए। जलालाबाद और अन्य शहरों में अगर तालिबान ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन होने दिया होता तो शायद उसे उसके बदलने का संकेत माना जाता। वह दुनिया को दिखा सकता था कि तालिबान असहमति का सम्मान करना जानते हैं। मगर निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग की यह घटना बताती है कि उसकी कथनी और करनी में काफी फर्क है। अभी तक के संकेत देखकर यह भी कहना मुश्किल है कि तालिबान बदल गया है।


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